संकलन : जाह्नवी पाण्डेय तिथि : 31-07-2024
गणपति गणनायक गणेश जी - बुद्धि के देवता एवं सभी देवताओं में प्रथम देवता।
अनादि काल से ही गणपति गणनायक गणेश जी को बुद्धि के देवता एवं सभी देवताओं में प्रथम देवता के रूप में सर्वोपरि व अग्रिणी स्थान मिला हुआ है तथा इन्हें सभी कष्टों का निवारक और निराकरणकर्ता माना जाता है। गणेश महाराज की कृपा से प्रत्येक याचक को ज्ञान, विद्या, विज्ञान, विवेक, यश, कीर्ति, पराक्रम, वैभव, ऐश्वर्य, सौभाग्य, सफलता, धन, धान्य, तेजस्विता, प्रखर बुद्धि, एवं आत्मचेतना में शुभता एवं वृद्धि मिलती है। गणेश को विद्यावारिधि, शुभगुणकानन, गुणिन, बुद्धिप्रिय, बाल गणपति इत्यादि नामों से पुकारा जाता है।
केतु नामक छाया ग्रह के स्वामी देवरूप गणेश जी।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार केतु सदैव राहु छायाग्रह के हठात् बल प्रयोग के गुण का विरोध करता है क्योंकि केतू नामक छाया ग्रह के स्वामी देवरूप गणेश जी माने गए हैं। जीवन में ज्ञान जीव के मुक्ति का मार्ग होता है अर्थात् विरोध के बिना ज्ञान नहीं उपजता और अज्ञानता बंधन और दुःख का मार्ग बनाती है। गणेश जी ज्ञान के प्रतीक, शुभ के स्थापक, विघ्नहरण, बुद्धि, विज्ञान, शांति, और समृद्धि के देवता हैं, जो भक्त की सरसता और सरलता में जीवन रस की उन्नति का मार्ग प्रशस्त करते हैं। क्योंकि भगवान गणेश मन को पढ़ने मे निपुण माने जाते है, इसलिए भक्त के मन की कोई बात गणपति जी से गुप्त नहीं रह सकती है।
गणेश जी प्रत्येक याचक में ज्ञान और अज्ञान के रहस्य का भेद अनुभूत कराकर भीतरी सभी सकारात्मक गुण जागृत करते हैं।
भगवान शिव का मार्ग रोककर गणेश जी ने ज्ञान और अज्ञान के रहस्य को जानने मे ज्यादा जिद की, तो इसी बात को दर्शाने के लिए शिवजी ने गणेश जी का सिर काटकर पुनः गजपति के नवस्वरूप के साथ उन्हे बताया कि अज्ञानता मस्तिष्क का प्रमुख गुण है, जो ज्ञान को बिना परीक्षा लिए नहीं पहचानता, ऐसे में विनय, सरलता और आत्मचेतना से उपजे आत्मबोध से अज्ञान को परास्त किया जा सकता है। विशालकाय सिर, बुद्धिमत्ता, सहजता, ज्ञानशक्ति और कर्मशक्ति का प्रतीक गज (हाथी) में अपनी स्मरण शक्ति, भावनात्मक प्रतिक्रियाओं (प्रेम, करुणा, दुःख और क्रोध) की सीमा व तीव्रता अन्य जीवो की तुलना में मनुष्यों से अधिक मिलती-जुलती है। गहरे प्रेमपूर्ण बंधन, अपने समूह-संतान की रक्षा व पालन-पोषण के लिए गज किसी भी प्रकार के जोखिम का सामना करने मे नहीं हिचकता है और कभी भी अवरोधों से बचकर नहीं भागता, न ही रुकता हैं। वे अवरोधों को अपने मार्ग से हटा देते हैं और आगे ही बढ़ते हैं। इसलिए भगवान गणेश की पूजा से प्रत्येक याचक में भीतरी सभी गुण जागृत होकर भक्त को सक्षम बनाते हैं।
अतिप्रिय चतुर्थी तिथि को गणेश जी ज्ञान-विज्ञान से जुड़े एवं बच्चों को नया संचार दिलाते हैं।
ज्योतिष शास्त्रों के मतानुसार चतुर्थी तिथि को शिव व गौरी पुत्र भगवान गणेश अवतरित हुए थे। इसीलिए उनकी अतिप्रिय चतुर्थी तिथि को गणेश पूजा पाठको, शिक्षार्थियों, ज्ञान-विज्ञान से जुड़े एवं बच्चों को नया संचार दिलाने में महत्वपूर्ण माना गया है। सतयुग के आरम्भ में कश्यप व अदिति के गर्भ से महोत्कट विनायक नामक रूप में जन्म लेकर देवांतक और नरांतक का वधकर त्रेतायुग प्रारंभ से पूर्व महोत्कट विनायक ने उमा के गर्भ में स्थान प्राप्त कर गुणेश रूप मे जन्म लिया। सिंधु नामक दैत्य का विनाश करने के बाद गुणेश मयुरेश्वर नाम से विख्यात हुए। द्वापर तक आते आते गुणेश जी, गणेश कहलाने लगे। पुराणों में गणेश के 64 अवतारों का वर्णन है। गणेश देवो में देव महादेव-गौरी जी के कनिष्ठ पुत्र की पत्नियाँ रिद्धि और सिद्धि है और रिद्धि व सिद्धि ब्रह्मा के सुपुत्र विश्वकर्मा भगवान की पुत्रियां हैं। अर्थात मात्र गणेश जी को प्रसन्न कर शिव-पार्वती, ब्रह्मा, विश्वकर्मा का आशीष तो मिलता ही है, इनके साथ ही रिद्धि और सिद्धि सदा गणेश भक्त की सहायता करती रहती है, जिससे गणाधिपति के किसी भी भक्त को घनघोर संकट, रोग व्याधियाँ और शत्रु निष्प्रभावी रहते है। इसीलिए विघ्नहर्ता रूप में शिव-पार्वती के प्रियपुत्र शुभगुणकानन गणेश की कृपा से बिगड़े कार्य भी बनने लगते हैं, सभी कार्यों में आने वाले विघ्नों का नाश होता है।
कण कण में गणेश विद्यमान होकर साधन रूप में यत्र, तत्र, सर्वत्र हैं।
प्रत्येक गणेश याचक का मानना है कि कण कण में गणेश विद्यमान होकर साधन रूप में यत्र, तत्र, सर्वत्र हैं, अर्थात् जीवन को चलाने के लिये अगर अनाज की आवश्यकता है, तो अनाज गणेश हैं। अनाज की उपज के लिये किसान आवश्यक है, तो किसान गणेश हैं। किसान को अनाज बोने के लिये खेत और बैलों की आवश्यकता है, तो खेत और बैल भी गणेश है। अनाज भण्डारण, चक्की, तवा, चीमटे और रोटी भी गणेश है। खाना बनाने और खाने वाले हाथ, मुँह दाँत गणेश है। कहने के लिये जो भी साधन जीवन में प्रयोग किये जाते वे सभी गणेश है। अर्थात् प्रथमेश गणेश की सजीव रूप में पूजा और आराधना होती है।
अग्रिणी देव गणेश समस्त औषधियों और मन की चेतनाओं के स्वामी हैं।
शास्त्रों के अनुसार अकेले अग्रिणी देव गणेश समस्त औषधियों और मन की चेतनाओं के स्वामी है, जिनके अधीन चंद्रमा देवता भी दास है। जिसके सानिध्य मात्र से मन भी नयी क्रियाओं ,विषयों एवं नव सृजन की ओर जाने लगता है और मन की गति, स्थिति निर्मल व शुद्धता से पूर्ण हो जाती है। इन्ही पर आधारित विद्या और बुद्धि के देव गणेश जी की आवाहन एवं पूजन कर नव चेतना से बौद्धिक स्थिरता को अर्जित किया जा सकता है।
शास्त्रोक्त पूजा विधि व नियम।
गणपति गणनायक गणेश का विधि-विधान पूर्वक आराधना, स्तुति व्रत, पूजा और महिमा के प्रसंग से मनुष्य के बौद्धिक प्रखरता, अध्यात्म, उन्नति, आनंद और संजीवनी शक्ति में सहायता होती है। कार्य अनुरूप प्रगति, समस्याओं के अंत, मनोकामना पूर्णता या सिद्धि में, स्वास्थ्य लाभ में, जीवन को सफल बनाने की प्रेरणा में और भगवान के साथ एक पवित्र संबंध का अनुभव कराने में गणेश जी मित्र हैं। गणेश जी को ध्यान में रहकर मनुष्य अपने जीवन में सुख-समृद्धि, सफलता, और मनचाहा वरदान प्राप्त करता है। धर्म में बिना शंका के गणेश जी को प्रमुखता दिया जाता है। बिना इनके आराधना के कोई भी धार्मिक कार्य पूर्ण नही होता है, बिना गणेश पूजा विधि अधूरी होती है। उनकी पूजा से शुभ कार्यों में सफलता के साथ उन्नति के अवसरों में बाधाएं नहीं आती हैं। इसलिए नवकार्य आरम्भ में गणेश जी उपासना या आराधना होती है। सभी प्रकार के विघ्नों, दारुण दुःख और पारिवारिक संकटों को गणेश जी को संकट हरने और सर्वत्र शुभता और भाग्य में वृद्धि कराने वाले विघ्ननाशक है। बारम्बार विद्या एवं बुद्धि के देव गणेश का ध्यान कर मन से सभी नकारात्मक विचार, दुर्भावना को निष्कासित कर जीवन को सफलता से भावी शीर्ष तक लेकर जा सकते हैं।
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