संकलन : Abhishek Rai तिथि : 28-07-2024
शगुन दिए जाने की परम्परा मानवीय सभ्यता के साथ ही विकसित हुए हैं, जिसको पौराणिक व्यवस्था भी कहा जा सकता है। समान्यतः सभी मांगलिक आयोजनों और कार्यक्रमों में शगुन लेने और देने की परम्परा सभी धर्म संप्रदायों में प्रचलित है। सामाजिक या पारिवारिक कृत्यों में शगुन प्रसन्नता, समृद्धि और शुभकामनाओं का प्रतीक होता है और जीवन में खुशियों की ओर संकेत या चिन्ह को संदर्भित करने में यह अहम भूमिका निभाता है। जिसका तात्पर्य भाग्यशाली, शुभत्व सूचक, शुभ अवधि और सर्वोत्तम गुणों इत्यादि से युक्त किसी भी नवसृजन, नवनिर्माण और नवविस्तार से पूर्व शुभत्व की इच्छा से वैदिक विधियों के अनुसार शगुन उठाने और शगुन दिये जाने की प्रथा का निर्वहन सनातन संस्कृति में धर्मसम्मत है। अर्थात् शगुन सामाजिक और धार्मिक किसी कल्याण या शुभ घटना को सांकेतिक करने के लिए प्रयुक्त आदर्शों का प्रतिबिम्ब है।
शगुन का मिलना शुभता और सौभाग्य के लक्षण या संकेत की निशानी माना जाता है। कोई भी समर्थ और सम्पन्न मनुष्य अपने अर्जन का सूक्ष्म अंश शुभचिंतकों, परिजनों, अग्रजों और नवीनं पीढ़ी को उनकी वृद्धि, सुख, समृद्धि, शांति और अष्ट सिद्धियों, नवनिधियों की कामना व आशीर्वाद के निमित्त दिये जाने वाले शुभ संकेत, वस्तु, उपहार एवं आभूषणों को शगुन के रूप में परिभाषित किया जाता है। जिसमें शगुन मिलना शुभता और सौभाग्य के लक्षण का संकेत प्रतीक है एवं शगुन देना वृद्धि, सुख, समृद्धि, शांति और अष्ट सिद्धियों, नवनिधियों व आशीर्वाद का प्रत्यक्ष प्रतीक है। शगुन चार प्रकार के होते हैं 1. धार्मिक शगुन 2. परंपरागत शगुन 3. पारिवारिक शगुन तथा 4. सामाजिक शगुन।
सभी संस्कृति में विवाहों की एक अनिवार्य परंपरा शगुन प्राचीन और महत्वपूर्ण रस्म है, जिसमें वर वधु के परिवारों के मध्य आपसी समझ और प्रेम को बढ़ाने की सघन प्रथा है। इस रस्म को वैवाहिक जीवन की शुरुआत अथवा नए जीवन के आरम्भ का प्रतीक में माना जा सकता है। धार्मिक प्राथमिकता और मान्यताओं के अनुसार इस रस्म में शगुन के तौर पर भविष्य की शुभ संकेत के साथ ईश्वर और घर के बड़ों का आशीर्वाद मिलता है। इसे उत्सवों या आशीर्वाद की रस्म भी कह सकते हैं। सामाजिक संदेश को संवाहित करता है कि जीवन में खुशियों को साझा करना और दूसरों को भलाई करना हमारा कर्तव्य है।
सनातनी परम्परा में पारिवारिक स्तर पर परम्परागत वातावरण में विशेष अवसरों और उत्सवों, विवाह, गृह प्रवेश, नवजात शिशु की आगमन गोद भराई आदि के समय ज्योतिषी या पंडित द्वारा निर्धारित अनुकूल शुभ मुहूर्त में शगुन को संपादित किया जाता है। पूर्वाभिमुख आसन पर आसीत होकर स्थापित वेदिका पर लौकिक रीति रिवाजों से कमर्काण्ड जानकार वैदिक विप्र की अध्यक्षता या उपस्थिति में मंगलाचरण, कलश पूजन, गुरु वन्दना, गौरीगणेश पूजन, सर्वदेव नमस्कार, स्वस्तिवाचन आदि कृत के रचनात्मक सहयोग से व्यक्तिगत और सामूहिक दोनों ही ढंग से भावसंयोग को पुष्ट करने के उद्देश्य से यथोचित ढंग से देव अभिनन्दन, पुष्पोपहार इत्यादि धार्मिक कृत्य कराए जाते हैं, जिसके बाद पारिवारिक या सामाजिक तौर पर उपहार, दान, सेवा और उपयोगी गहने, कपड़े या धनराशि का आदान प्रदान होता है अर्थात् शगुन सामाजिक संदेश को भी संदर्भित करते हैं। पारिवारिक स्तर पर रस्मों के अनुसार भोजन, विदाई अन्य औपचारिकताएँ आपसी सौहार्द से सम्पूर्ण किए जाते हैं।
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