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Pooja Path भगवती सेवा / भगवती जागरण / देवी जागरण


Celebrate Deepawali with PRG ❐


संकलन : Abhishek Rai तिथि : 26-07-2024

लौकिक परालौकिक भव्य प्रभामंडल और उनकी सत्ता का प्रभाव प्राप्त करने का एक सरल और सहज उत्सव मार्ग भगवती या देवी जागरण है।

देवियों की उपासना का लौकिक-पारलौकिक भव्य प्रभामंडल और उनकी सत्ता का प्रभाव प्राप्त करने का एक सरल और सहज उत्सव मार्ग दैवीय जागरण भी है,जो परंपराओं का पालन करते हुए पर्यावरणीय जागरूकता के साथ पर्यावरण को सुरक्षित और संरक्षित रखने का सांस्कृतिक, सामूहिक एवं सामाजिक धरोहर के रूप में अमूल्य उपहार सनातनियों को विरासत के रूप में प्राप्त है, जिनका पालन स्वयं का और भावी पीढ़ियों के जीवन में अदम्य साहस, शक्ति, एकाग्रता और ममता का सदैव उदय रखता है। जागरण का तात्पर्य जगराता और जगाना भी कहलाता है, जिसमें एक सम्पूर्ण रात्रि जागते हुए विभिन्न लोक देवी-देवता का पूजन-पाठ, महिमा-गीत, शक्ति भजन-कीर्तन, नृत्य-संगीत एवं आरती सम्मिलित रहता है।

जीवनचक्र के रक्षक, शक्तिप्रदात्री, सुखदात्री चेतन को रात्रिकाल में कुछ क्षण के लिए एकाग्रता और एकान्त साधना से जोड़कर अभ्यास और प्रार्थना

सामूहिक भक्ति व ध्यान लगाकर मानसिक-शक्ति, मनोबल को बढ़ाते हुए समृ‌द्धि का आशीर्वाद और सामर्थ्य की भावना प्राप्त करना और उसको बढ़ावा देना, इन सबका मुख्य उद्‌देश्य है। जिसे आध्यात्मिक दृष्टिकोण से उत्साह और नव चेतना, धार्मिक संगीत का आनंद के साथ मनाते हुए जीवन में खुशहाली, समृद्धि और सम्मान वृ‌द्धि का महत्वपूर्ण अनुष्ठान है। दैवीय जागरण के भजन, कीर्तन और ध्यान शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य लाभप्रद होने के साथ ही आत्मिक शांति भी उन्नत होती है। सामान्यतः दैवीय जागरण सर्वदा रात्रि में ही संपादित कराए जाने की प्रथा है, क्योंकि जैविक चक्र के केंद्र को नियंत्रित करके रात्रिकाल में ही जीवन चक्र में रक्षक, शक्तिप्रदात्री, सुखदात्री चैतन को कुछ क्षण के लिए एकान्त, एकाग्रता और साधना से जोड़कर पूजन पाठ, भजन कीर्तन, कुछ विशेष प्राणायाम, अन्य यौगिक क्रियाओं के अभ्यास और प्रार्थना करने से वर्तमान के संताप, कष्ट, कुंठा, दारिद्रय, दोष, रोग और व्याधियों से मुक्ति होती है। इस प्रकार जागरण की गहराई व्यक्तिगत जीवन चेतना में निहित स्वार्थ को कम या समाप्त करता है।

भक्त में भक्ति की तरलता का प्रभाव उसमें सामर्थ्य, भावना, आत्मिक शांति, आनंद व उत्साह बढ़ाता है। 

संसार में प्रत्येक पदार्थ के तीन रूप हैं-1. सघन व कठोर, 2. प्रवाहमान, तरल 3. अदृश्य ऊर्ध्वगामी। ठीक वैसे ही चेतना की तीन दशाएं हैं  1. भक्त, 2. भक्ति और 3. भगवान। भक्त में सदैव भाव रहते हैं, जिसमें गति नहीं होती है, किन्तु वो कठोर या निर्मल (धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष युक्त) हो सकते हैं, परन्तु भक्त में भक्ति तरलता के सामान है, जिसमें गति, यात्रा, अविरल तरलता, बहाव होता है, जो किसी भी निर्मल भावयुक्त भक्त से पूजन पाठ, गीत-संगीत, भजन कीर्तन, नृत्य,आरती करवाता है। भक्ति के प्रभाव से सामर्थ्य भावना, आत्मिक शांति, आनंद, उत्साह बढ़ जाता है और भक्त का भक्ति के रूप में उठाया गया पहला कदम सरलतापूर्वक संकट से भरे सैकड़ों मील की यात्रा भी पूरी करवाने में सक्षम बनाता है। क्योंकि पहला कदम ही कठिन है, लेकिन भक्त का प्रत्येक कदम सीढ़ी के उच्चता की ओर ऊँचाई तक ले जाता है। इस प्रकार से सत्भावयुक्त भक्त कोई भी अधूरी यात्रा पूरी कर लेता है।

परिवर्तित बाहुपाश की तीव्रता ही दुर्बल और असहाय बनती है, किन्तु भक्त का भक्ति करने का लक्ष्य, ईश्वरीय शांति व तृप्ति प्रदान करता है।

भक्त का भक्ति करने का लक्ष्य, ईश्वरीय शांति व तृप्ति ही होता है, जिसमें ईश्वर सदैव से ही अदृश्य वाष्प की दशा में प्रतीत हुआ है। इसीलिए सत्भाव रहित भक्त ईश्वरीय सत्ता को बिना भक्ति के प्राप्त करने में असमर्थ रहता है, किन्तु जब भी भक्त ईश्वर के नजदीक तक पहुंचता है, तो अदृश्य वाष्प की दशा को अनुभूत कर सभी विकारों से मुक्ति पा ही लेता है। सांसारिक आपाधापी, कामधंधों या परिस्थितियों का मनुष्य दास है, जो उसमें परिवर्तनीय बदलाव, विषय-संसर्ग से परिवर्तित बाहुपाश को दर्शाता है। परिवर्तित बाहुपाश की तीव्रता ही स्वयं को दुर्बल और असहाय बना देती है, इसीलिए सत्भाव संसर्ग दैवीय जागरण मात्र ही पुनः दृढ अपरिवर्तनीय अकम्प आत्मबल चेतना जाग्रत कर सकती है, जिसके बल पर ही ईश्वरीय शांति, तृप्ति मार्ग मिलता है। इसी बात से आकर्षित होकर जिज्ञासु, पिपासु, मुमुक्षु, भयग्रस्त मानव सत्य की खोज की ओर जाकर बाहुपाश को पूर्ण समाविष्ट कर मजबूती की विपरीत दिशा से दौड़ने लगता है और भरभराकर रेत के समान हो जाता है। अर्थात सत्य के प्रति असहमति ही मजबूरी और सत्य के प्रति सहमति मजबूती है, अन्यथा संसार में कोई भी मजबूरी या मजबूती नहीं होती। बस भक्त के आत्मभाव को भक्ति का छोटा सा मार्ग ही चाहिए, जो उसे जरा सी हिम्मत देकर मज़बूती की दिशा में ले उड़ता है।

प्रकृति की रात्रि में शान्ति और गंम्भीरता ब्रह्मांडीय तरंगों से जुड़ने की समस्त बाधाओं स्वत: न्यूनतम कर साधना को सघन व उपयोगी बनाती है।

अनन्तकाल से सांसारिक गति में दिवारात्री का क्रमागत-कालचक्र चल रहा है, जिसमें दिन स्पष्ट, वेगवान, अशांत, कोलाहलयुक्त, शक्तिशाली, क्रियाशील, उन्नतिशील, प्रगतिशील और शारीरिक वेगवान है, किन्तु रात्रि एकान्त, एकाग्र, धीरगंभीर, कोलाहलमुक्त, मनःशक्तियुक्त, साधक, भक्ति और ब्रहमांडीय तरंगों से सीधे संपर्क वाला काल है। रात्रि में पूरी प्रकृति ही शान्त और गंम्भीर वातवारण लिए होती है, जिसमे ब्रह्मांडीय तरंगों से जुड़ने की समस्त बाधायें स्वत: न्यूनतम रहती हैं, जो साधना की और भी सघन व उपयोगी बनाती हैं, जिनके आधार पर ही शिवरात्रि नवरात्रि, होलिका, दीपावली आदि पर्वो पर रात्रि में दैवीय जागरण कर पूजन-पाठ, साधना, भजन-कीर्तन कर अनन्तशक्ति की भक्ति, ध्यान, चेतना से अष्टसिद्धीयां, नवनिधियां, विलक्षण मनोवांक्षित के फल को पाने का प्रयत्न पौराणिक काल से प्रचलन में है।

सांसारिक सत्य है कि अस्पृश्य सत्य परमात्मा का स्पर्श ही एक मात्र शांति, तृप्ति का मार्ग बनाना है। 

रात्रि की महिमा का वर्णन इस किवदंती से भी स्पष्ट होता है कि भोगी, योगी, और रोगी के लिए रात्रि अतिमहत्वपूर्ण है। जिसके सन्दर्भ में अश्वत्थामा ने कृपाचार्य को बताया था कि 1. शोकग्रस्त मनुष्य को 2. अमर्ष यानि क्रोधयुक्त मनुष्य को 3. कामनायुक्त अथवा काम आसक्त मनुष्य को 4. चिंताग्रस्त मनुष्य को रात्रि में नीद नहीं आती है, किन्तु रात्रि योगी को अलौकिक आनंद और भोगी को लौकिक आनंद देती है। इसीलिए भोगी प्रत्येक क्षण हर वस्तु को भोग की दृष्टि से देखता है और योगी भोग के स्थान पर केवल अंतर्मुखी योग को ढूंढता है, परन्तु रोग, व्याधि, विकार या पीड़ायुक्त प्राणी को रात्रि काटने के लिए आत्मबल, धैर्य व शांति आवश्यक होती है। सांसारिक सत्य है कि मनुष्य जिस भी चीज को शांति, तृप्ति का साधन बनायेगा, वो संतुष्टि अदृश्य व असफल होती है, ऐसे में मात्र अस्पृश्य सत्य परमात्मा का स्पर्श ही एक मात्र शांति, तृप्ति का मार्ग बनाना है।

देवी जागरण का शास्त्रोक्त विधि व विधान 

सारांश में सांस्कृतिक व धार्मिक भक्ति, साधना का अमूल्य उपहार शक्ति या देवियों की उपासना सत्भाव दैवीय जागरण शांति, तृप्ति का साधन बनकर लौकिक परालौकिक भव्य प्रभामंडल सत्ता का एक सरल और सहज उत्सव मार्ग है। जिनका केवल पालन कर स्वयं को और भावी पीढ़ियों को अदम्य साहस, शक्ति, एकाग्रता और ममता का सदैव उदय रखेगा। एक सम्पूर्ण रात्रि जागकर विभिन्न लोक देवी-देवता पूजन-पाठ, महिमा-गीत, शक्ति भजन कीर्तन, नृत्य संगीत एवं आरती में सम्मिलित रहते हुए आध्यात्मिक दृष्टिकोण से उत्पन्न शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य, मनोबलवृद्धि, समृ‌द्धि का आशीर्वाद और सामर्थ्य की भावना को बढ़ाये और आत्मिक शांति, आनंद, उत्साह, नव चेतना, समृद्धि, जीवन में खुशहाली और सम्मान वृ‌द्धि प्राप्त कर व्यक्तिगत जीवन के निहित स्वार्थ को कम या समाप्त कर सकते हैं।

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