संकलन : Abhishek Rai तिथि : 25-07-2024
उपनिषदों, वेदों से लेकर कई तंत्रग्रंथों तक शक्ति उपासना की महिमा से सनातन संस्कृति ओतप्रोत हैं। मात्र भारत में ही नहीं, बल्कि समूचे विश्व में शक्ति-उपासना होती आ रही है। संसार के कई देशों में उत्खनन से विभिन्न देवी के स्वरूपों की प्रतिमाएं का प्राप्त होना, इस तथ्य का ठोस प्रमाण हैं कि सनातन धर्मियों का अभिन्न अंग यह उपासना रही है। जिनका महत्व प्राचीनतम काल में जितना था, उतना ही आज भी है। राजा से लेकर रंक तक सभी शक्ति प्राप्ति हेतु देवी उपासना किया करते थे और वर्तमान में भी क्रमागत है। इस प्रसांगिकता को अब कोई भी झुठला नहीं सकता है कि देवियों की उपासना का भव्य प्रभामंडल और उनकी सत्ता का प्रभाव लौकिक-पारलौकिक शक्ति जनमानस पर दिखाई देता है। जिसके प्रति शक्ति या देवियों की उपासना करने वालों का शाक्त सम्प्रदाय एवं सनातन धर्मियों का समर्पण समय-समय पर प्रमाण रूप में स्पष्ट प्रदर्शित होता है।
नवरात्री भक्त-गणों के लिए केवल धार्मिक भक्ति और साधना का प्रतीक ही नहीं है, बल्कि वैदिक काल से ही सांस्कृतिक परंपराओं का पालन कराते हुए सामूहिक सामाजिक धरोहर के रूप में पर्यावरणीय जागरूकता के साथ साथ पर्यावरण को सुरक्षित और संरक्षित रखने का अमूल्य उपहार पौराणिक तपस्वी, ऋषि मुनियों व सिद्ध ज्ञानियों ने विरासत रूप में सभी सनातनियों को समर्पित किया हुआ है अर्थात् पौराणिक ऋषि मुनियों, तपस्वियों और सिद्ध ज्ञानियों की विरासत, पर्यावरणीय जागरूकता के साथ साथ पर्यावरण को सुरक्षित और संरक्षित रखने का अमूल्य उपहार है। जिनका मात्र पालन कर, स्वयं का और भावी पीढ़ियों के जीवन में अदम्य साहस, शक्ति, एकाग्रता और ममता का सदैव उदय रख सकते हैं।
प्रत्येक संवत्सर वर्ष में चार नवरात्रियों का प्राविधान पौराणिक कालीन प्रचलन में हैं, जिनमें दो मूर्त रूप में और दो अमूर्त रूप में नवरात्रियों की उपासना का विधान है। इन चारों नवरात्रों में शक्ति के साथ-साथ इष्ट की आराधना का भी विशेष स्थान है। बहुधा लोग शक्ति उपासना हेतु मात्र दो ही नवरात्रियों के विषय में ही जानते हैं, जो सात्विक सिद्धि और उपासना की दृष्टि से अतिविशेष मानी जाती है। चैत्र मास शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तक (चैत्री नवरात्र) एवं आश्विन मास शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से महानवमी तक (शारदीय नवरात्र) मूर्त नवरात्र के अतिरिक्त भी माघ एवं आषाढ माह में आने वाली दो और नवरात्रियां भी हैं, जिन्हें गुप्त नवरात्र या अमूर्त नवरात्र कहा जाता है।
आदि शक्ति जगत जननी जगदम्बा भगवती माँ दुर्गा के मुख्यतः नौ प्रमुख रूपों की अनुकंपा प्राप्ति हेतु प्रभृति समस्त आवश्यक नियमों का सात्विक व शुद्धता के साथ पालन करते हुए विशेष यत्न-प्रयत्न, पूजा साधना व आराधना की पूजन अवधि को नवरात्रि के नाम से चिन्हित किया जाता है, नवदुर्गा के अलग-अलग वाहनों, अस्त्र-शस्त्र सहित शास्त्रोक्त विधान के अनुसार सभी पापों की विनाशिनी की आराधना व उपासना होती हैं, परन्तु धार्मिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से यह आराधना व उपासना समयावधि भक्ति और साधना का अत्यंत महत्वपूर्ण उत्सवपर्व दैवीय मातृत्व का समय होता है, जैसे एक माँ अपने सभी संतानों के लिए प्रतिबद्ध और कल्याण हेतु समर्पित रहती है, ठीक वैसा ही प्रवाह उपासक को नवदुर्गा पूजा उपासना से मिलता है, जो भक्त में सामाजिक, पारिवारिक सद्भाव, सौहार्द, प्रेम, भक्ति का अविरल संदेश उत्पन्न और प्रवाहित करता है। इसीलिए भक्तगण देवी की मातृत्व कृपा, शक्ति, और आशीर्वाद की अभिलाषा में देवस्थल, घरों और सार्वजनिक स्थानों पर एकल अथवा सामूहिक पूजा अनुष्ठान का आयोजन पूर्ण करते हैं। मूर्त / प्रगट नवरात्र से उपासक अपने जीवन में अदम्य साहस, शक्ति, एकाग्रता और ममता का उदय करता है, जिनसे वह शत्रु पर विजय, मनोवांछित फल प्राप्ति, नौकरी व व्यापार में उन्नति, परिवारिक कलह-क्लेश व अन्य प्रकार के कष्टो से लड़कर मुक्ति आदि का मनोरथ व इच्छा की पूर्ति करता है।
शक्ति उपासना व साधना को गुप्त रूप में जाग्रत करने हेतु सनातन पंचांग अनुसार माघ एवं आषाढ माह में गुप्त नवरात्र का विधान है। प्रकट और प्रत्यक्ष नवरात्रि से अधिक गुप्त नवरात्र में शक्ति साधना करके साधकों के लिए मनोवांछित सिद्धियाँ प्राप्ति का विशिष्ट अवसर होता है, जिसमें सामान्य नवरात्र के समान ही साधना और तांत्रिक शक्तियों को सशक्त करने के विचार से शक्ति के नौ रूपों का नियम से विशेष विधियों के साथ अत्यधिक गोपनीय, पैशाचिक, वामाचार क्रियाओं व पद्धति से उपासना सम्पादित होती हैं। शाक्त एवं शैव धर्मावलंबियों हेतु गुप्त नवरात्रि की समयावधि अधिक शुभ एवं उपयुक्त होती है। गुप्त नवरात्र में शक्ति पूजा एवं अराधना सरल नहीं है क्योकि पूजन विधि व्यक्त नहीं की जाती है, जिस कारण से ही इसे गुप्त नवरात्र की संज्ञा प्राप्त है। इन अवधियो में शक्ति स्वरूपा, विद्यापारंगत माँ महाकाली सहित प्रलय व संहार के देव महाकाल को स्थान भी दिया जाता है और इनके साथ ही संहारकर्ता देवी-देवताओं के गणों एवं गणिकाओं अर्थात् भूत-प्रेत, पिशाच, बैताल, डाकिनी, शाकिनी, खण्डगी, शूलनी, शववाहनी, शवरूढ़ा आदि की भी साधना पूरे निष्ठा से बहुत ही गुप्त स्थल अथवा किसी सिद्ध श्मशान में संचालित होती है, जहां तंत्रक्रियाओं का परिणाम अल्पावधि में सिद्ध होता है। इस प्रकार आदिशक्ति जगतजननी जगदम्बा भगवती माँ दुर्गा को गुप्त तंत्र साधना में तांत्रिक देवी का रूप मानते हुए गुप्त नवरात्र में साधक की समस्त तांत्रिक ऊर्जा संचालित और एकत्रित होती है।
शिवपुराण में उल्लेखनीय है कि पौराणिक काल में दैत्य दुर्ग ने कठोर तप के बल ब्रह्मा जी को प्रसन्न कर चारों वेद प्राप्त कर संसार मे उपद्रव करने लगा। वेदों की अनुपलब्धता के कारण देवता व ब्राह्मण पथ भ्रष्ट होते चले गए, जिसके परिणाम स्वरूप देव लोक और भूलोक पर वर्षों तक अनावृष्टि बढ़ती गई। दारुण दुर्दशा मे सभी देवता एकत्रित होकर माँ जगदम्बा के शरणागत होकर दैत्य दुर्ग का वध करने का अनुरोध करने लगे, तब ममतामयी, परम दयालु मां उमा ने दुष्ट दैत्य दुर्ग के वध के निमित्त अपने ही अंगो से काली, तारा, छिन्नमस्ता, श्रीविद्या, भुवनेश्वरी, भैरवी, बगला, धूमावती, त्रिपुरसुंदरी और मातंगी नामक दस महाविद्याओं मे पारंगत शक्तिस्वरूपा गुप्त देवियो को अवतरित किया। श्रुति पुराणो के अनुसार महाविद्या सिद्धियाँ प्रदान करने वाले भगवान शिव हैं, जिनसे देवी उमा (दुर्गा) के उग्र व विध्वंसक प्रवृत्ति के प्रत्येक दस महाविद्या को तंत्र साधना में बहुउपयोगी और महत्वपूर्ण मानते हुए प्राणियों के समस्त संकटों का हरण करने वाली अद्वितीय प्रलय व संहार अनेक रुप धारण किये हुए हैं।
समान्यतः नवदुर्गा पूजनम में घट स्थापना, पंचांग, ब्राहण वरण, मण्डपस्थदेव पूजन से आरम्भ होकर अग्नि प्राकटय, हविर्द्रव्य अथवा हवन तक सम्पन्न होता है। नवदुर्गा उपासना में शतचंडी पाठ हेतु सर्वतोभद्र मंडल, षोडशमात्रिका मंडल, नवग्रह मंडल, वास्तु मंडल, क्षेत्रपाल मंडल,पंचांग मंडल तथा सार्वभौमिक ऊर्जा के देवी देवताओ, धरती,गणेश-गौरी,अग्नि, ब्रह्मा, पंच तत्व और दशों दिशाओं इत्यादि का विधिनुसार मंत्रोच्चारण से आवाहन करा कर पूजन के इच्छा के आधार पर पाठ संपन्न करा कर अंतिम दिन अग्नि आवाहन, यज्ञ (हवन) पूर्णा-हुति, बलिदान, आरती, ब्राह्मण एवं कन्या को महाप्रसाद, दान इत्यादि के उपरान्त छोटा सा पौधा लगा कर यह अनुष्ठान को सम्पन्न कराते हैं, किन्तु गुप्त नवरात्र के पूजन मे भी नौ दिनों तक अखंड जोत प्रज्वलित कर ब्रह्म मुहूर्त, संध्या तथा रात्रिकाल में शक्ति का पूजन-अर्चन, दुर्गा सप्तशती का पाठ होता है एवं अष्टमी अथवा नवमी तिथि में व्रत पूर्ण कन्या पूजन भी किया जाता है।
व्रत और उपवास का सर्वश्रेष्ठ तथा सुगम मार्ग, ब्रह्मांडीय हितों में रत, त्रिकालज्ञ ऋषि, मुनियों एवं तपस्वियों द्वारा मानव कल्याण हेतु विरासत है। मानवीय परिस्थितियों को आत्मसात कर मानव के कल्याण हेतु त्रिकालज्ञ व ब्रह्मांडीय हितों ...
जहाँ शंख पूजित होता है, वहां लक्ष्मी अवश्य होती हैं और माँ लक्ष्मी के कृपापात्रों को श्री हरि विष्णु का भी संयुक्त आशीर्वाद स्वतः ही मिलने लगता है सनातन संस्कृति का अतिपवित्र प्रतीक शंख, जगत के ...
लक्ष्मी का अवतरण दिवस हर्ष,उल्लास,मनोविनोद,वैभव व सम्पन्नता का आध्यात्मिक पर्व है। दीपों के जगमग से सुसज्जित माँ लक्ष्मी जी का अवतरण दिवस दीपावली पर्व का महत्व और महात्मय सनातनियों के लिए अतिमहत्वपूर्ण उत्सव है। आध्यात्मिक रूप ...