संकलन : Abhishek Rai तिथि : 25-07-2024
जगत के सांसारिक जीवन चक्र में धर्म, सुरक्षा, संचालन और गति को संचालित व संरक्षित रखने के निमित्त जिन्होंने दैवीय समर्थवान् होकर भी साधारण सा मानव रूप धर अनेकोंनेक रूपों में धरा पर बारम्बार अवतरण लिया है। पौराणिक वैदिक ग्रंथों और शास्त्रों में ऐसे अद्भुत त्रिदेवो में से एक श्रीहरि विष्णु को सम्पूर्ण ब्रहमांड का शासक, सृष्टि के पालनकर्ता और सर्वोच्च शक्तिशाली रक्षक परिभाषित किया गया है और जनश्रुतियों में भी विष्णु जी के अवतरण और महिमाओं के अनुसार ही उनके अनेकों नाम प्रतिपादित हुए, जिनके बार बार उच्चारण से ही उनका प्रभाव जीवन में संचालित होना आरम्भ हो जाता है। सनातन संस्कृति में पवित्र, महात्मय, पूजनीय व प्रचलित संस्कृत भाषा में रचित ग्रंथ विष्णु सहस्रनाम भगवान विष्णु के सहस्र नाम वर्णित प्रमुख एक स्तोत्र है।
वैदिक पुराणों में पद्म पुराण, मत्स्य पुराण और गरुड़ पुराण में विष्णु सहस्रनाम का संस्करण उपलब्ध है। सनातनी वेदो और शास्त्रों की मान्यता अनुसार विष्णु सहस्रनाम का उपासना में अर्थ व मर्म सहित सहजता के साथ जाप या वाचन या श्रवण करने से जीवन निर्वाहन में आयी हुई या आने वाली प्रत्येक प्रकार की बाधायें नष्ट होती हैं तथा याचक / वाचक/ श्रवणकर्ता के स्वयं की एकाग्रता, मन:शान्ति, सहनशीलता, आंतरिक ऊर्जा को बढ़ावा मिलता है व साथ ही जीवन में सुरक्षात्मक कवच की भांति प्रत्येक कार्य के आत्मनिरीक्षण में सहायक प्रदान करता है। द्वापर युगीन प्रमुख काव्य ग्रंथ महाभारत के अनुशासन पर्व का सबसे लोकप्रिय या संस्करण विष्णु सहस्रनाम भी है। अनुशासन पर्व के 141 वें अध्याय के अनुसार महाभारत के प्रमुख पात्र भीष्म पितामह द्वारा युधिष्ठिर को विष्णु सहस्रनाम का समुचित वृहद ज्ञान दिया गया था।
कुरुक्षेत्र युद्ध में हुई विनाश देख धर्मराज युधिष्ठिर विचलित हुए तो भगवान वेदव्यास और श्रीकृष्ण की प्रेरणा से उचित समय पाकर कुरुक्षेत्र में बाणों की शय्या पर लेटे अपने प्राण त्याग की प्रतीक्षा कर रहे पितामह भीष्म के पास कृष्ण सहित सभी भाई पहुँच कर नमन करते हुए सर्वोच्च ज्ञानी भीष्म से धर्म व नीति के विषय में उपदेश देने की याचना करते हुए प्रश्न पूछे, जिनके प्रत्युत्तर में पितामह देवव्रत ने वृहद् विवरण सहित उत्तर दिया, वह समस्त उत्तर या उपदेश ही यह सहस्रनाम स्तोत्र है, जिनको उनके समकालीन संस्कृत विद्वान ऋषि व्यास ने ज्ञात व संकलित कर विष्णु के सहस्र नामों का स्तोत्र अथवा विष्णु सहस्रनाम की रचना की, जो स्वयं बाल्मीकि रामायण, महाभारत और भगवत गीता जैसे अद्भुत पौराणिक ग्रंथों के अद्भुत रचनाकार भी हैं। भीष्म पितामह देवव्रत के कथनानुसार विष्णु के समस्त नामों का अर्थ व महिमा को ज्ञात कर निरंतर जप, गान, भजन करने व सुनने मात्र से ही पाप और भय से मुक्ति मिलती है और सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं।
वैष्णव भक्त अथवा विष्णु के अनुयायियों के लिए व्यापक प्रार्थना का एक प्रमुख हिस्सा विष्णु सहस्रनाम सनातनी लोकप्रिय पूजनीय पाठ है। वैष्णव पंथों की मान्यता है कि ब्रहमांड में शिव और अन्य देवी देवताओं के अस्तित्व के बावजूद विष्णु की अभिव्यक्ति सर्वोच्च है। अन्य सहस्रनामों के अपेक्षा में अकेले विष्णु सहस्रनाम सर्वाधिक लोकप्रियता, बहुउपयोगी और जनश्रुतियों में संदर्भित है। विष्णु सहस्रनाम का पाठ भक्तों के लिए अत्यंत पवित्र और लाभकारी माना जाता है। यह भगवान विष्णु के महानता का गुणगान, स्तुति का पाठ है, जो जीवन में शांति, समृद्धि और आध्यात्मिक उन्नति की दिशा में मार्गदर्शन देता है। जीवन में सकारात्मक परिवर्तन पाने के लिए विष्णु सहस्रनाम का नियमित रूप से पाठ करने से भगवान विष्णु की कृपापात्रता तो मिलती ही है, साथ ही श्री हरि विष्णु की नियमित उपासना भी हो जाती है। इसीलिए पीड़ित को लाभ, संतान दोष या विवाह दोष, गृह क्लेश व संतान हीनता, बुरे स्वप्न, भय एवं अन्य बाधाओं में मुक्ति के लिए अतिफलदायी मार्ग विष्णु सहस्रनाम को ही बताया गया है। ज्योतिष शास्त्रों के अनुसार विष्णु सहस्रनाम के अद्भुत श्लोक प्रत्येक ग्रह और नक्षत्र को नियंत्रित कर सकते हैं, किन्तु बृहस्पति दोष के निवारण में इसका पाठ सटीक अमोघ व लाभप्रद माने जाते हैं।
भक्ति, श्रद्धा व सरल हृदय से विष्णु के अनगिनत नाम के पठन करने से प्रत्येक नाम के गुणों में कुछ ना कुछ गुणों की महिमा याचक या भक्त में स्वयं समाहित हो जाती है, जिनके सत्प्रभावों से श्री हरि विष्णु के समान ही याचक या भक्त की संचारी व्यवस्था में शनै-शनै सुधार आता जाता है, जिससे भक्त या याचक की प्रत्येक मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं। श्री हरि विष्णु के कृपापात्रों को माँ लक्ष्मी का भी आशीर्वाद स्वतः ही मिलने लगता है, क्योकि क्षीरसागर में विष्णु जी की अर्धांगिनी माँ लक्ष्मी स्वयं उनकी सदैव सेवा में निवासित रहती हैं। इसीलिए विष्णु जी के कृपापात्र होने पर माँ लक्ष्मी और विष्णु जी का संयुक्त आशीर्वाद मिलता रहता है। सामान्यतः विष्णु सहस्रनाम को जीवन का हिस्सा बनाने से जीवन स्वस्थ और खुशहाल होता है।
देवियों उपासना की लौकिक परालौकिक शक्ति का भव्य प्रभामंडल और उनकी सत्ता का प्रभाव राजा से लेकर रंक तक सभी पर दिखाई देता है। उपनिषदों, वेदों से लेकर कई तंत्रग्रंथों तक शक्ति उपासना की महिमा से सनातन संस्कृति ...
व्रत और उपवास का सर्वश्रेष्ठ तथा सुगम मार्ग, ब्रह्मांडीय हितों में रत, त्रिकालज्ञ ऋषि, मुनियों एवं तपस्वियों द्वारा मानव कल्याण हेतु विरासत है। मानवीय परिस्थितियों को आत्मसात कर मानव के कल्याण हेतु त्रिकालज्ञ व ब्रह्मांडीय हितों ...
जहाँ शंख पूजित होता है, वहां लक्ष्मी अवश्य होती हैं और माँ लक्ष्मी के कृपापात्रों को श्री हरि विष्णु का भी संयुक्त आशीर्वाद स्वतः ही मिलने लगता है सनातन संस्कृति का अतिपवित्र प्रतीक शंख, जगत के ...