संकलन : Abhishek Rai तिथि : 24-06-2024
मनुष्यों एवं देवताओं के परस्पर कल्याण हेतु यज्ञकर्म आवश्यक है, क्योंकि दैवलोक के सभी देवों को आहार यज्ञ की आहुतियों से ही प्राप्त होता है। प्रभावशाली मंत्रो और शास्त्रोक्त विधि से यज्ञ की पूर्णता से जन्म जन्मांतर के पाप, नकारात्मक ऊर्जा, जीवन में आयी और आने वाले समस्त संताप व दोष नष्ट होते हैं और परिवार को सुख, शांति, समृद्धि, धन और सफलता का आशीर्वाद मिलता है।
वैदिक अनुष्ठान शतचंडी यज्ञ विशेष रूप से देवी दुर्गा की आराधना व कृपा प्राप्त करने, शत्रुनाश, शांति, समृद्धि, रोगों व बाधाओं से मुक्ति, कल्याण की प्राप्ति और आध्यात्मिक उन्नति के लिए किया जाता है। शाक्त सम्प्रदाय की प्रमुख देवी शिव जी की अर्धासनी दुर्गा या आदिशक्ति, अंधकार व अज्ञानता रुपी राक्षसों से रक्षा करने वाली, ममतामयी, मोक्षप्रदायनी तथा परम कल्याणी को माता, नवदुर्गा, देवी, शक्ति, आध्याशक्ति, भगवती, मातारानी, पार्वती, जगतजननी जग्दम्बा, परमेश्वरी, परम सनातनी देवी, परम भगवती, परब्रह्म आदि नामों से भी जाना जाता हैं। सिंह पर सवार अष्ट भुजी देवी दुर्गा धर्माघाती राक्षसी प्रवृत्ति एवं शक्तियों का विनाश करतीं हैं। इसीलिए ज्योति र्लिंगों में स्थापित देवी दुर्गा को सिद्धपीठ कहते है, जहाँ सभी संकल्प पूर्ण होते है। योग्य कर्मकाण्ड विशेषज्ञ अथवा विद्वान के मार्गदर्शन में इस यज्ञ को संपन्न कराने से जीवन में गहन और शक्तिशाली सकारात्मक ऊर्जा, आध्यात्मिकता, मानसिक और भौतिक सुख-समृद्धि का संचार बढ़ जाता है।
सामान्यतः शतचंडी महायज्ञ घट यात्रा से आरम्भ होकर घट स्थापना, पंचांग पूजन, ब्राहण वरण, मण्डपस्थदेव पूजन तथा अग्नि प्राकटय तक सम्पन्न होता है। समयाभाव में संकल्प, अंगान्यास, सिद्धकुंजिका स्त्रोतयज्ञ (हवन) पूर्णाहुति, बलिदान आरती, ब्राह्मण एवं कन्या को महाप्रसाद, दान इत्यादि से शतचंडी यज्ञ पूर्ण हो सकता है। सामान्यतः शतचंडी यज्ञ से पूर्व संकल्प, गणेश सहित अन्य ईष्ट देवो और आदिशक्ति जगत जननी माँ जगदम्बा की सूक्ष्म उपासना सहित, शाप-विमोचन, कवच, अर्गला, कीलक, न्यास एवं नर्वाण मंत्र पाठ के समापन न्यास, नवार्ण मंत्र-जप, देवी-सूक्तम रहस्यत्रय, सिद्ध-कुंजिका स्त्रोत, क्षमा प्रर्थना का पाठ करने से शतचंडी पाठ की पूर्ति होती है, किन्तु हवन कुंड का पंचभूत संस्कार, अग्नि प्रज्वलन और स्थापन कराते हुए उपद्रवों का विनाश, विश्व कल्याण व शांति, सभी दोष और रोग मुक्ति हेतु देवों की प्रसन्नता हेतु विस्तृत संस्करण होमा या यज्ञ (हवन) इत्यादि कराने के उपरान्त छोटा सा पौधा रोपित कराकर ही यज्ञ सम्पन्न या पूर्ण होता हैं।
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