संकलन : जया मिश्रा Advocate तिथि : 08-12-2021
सनातनी परम्पराओ में सृष्टि के निर्माण का आधार, ईश्वरीय कल्पनाओ पर आधारित है, जिसमे ब्रह्माण्डिय ऊर्जा और संरचनाओ का अद्भुत योगदान है। उसमे मनुष्य का जन्म सिर्फ ईश्वरीय रचना मात्र नहीं है, बल्कि सम्पूर्ण सौरमंडल, जैविक, रसायनिक एवं भौतिक अणुओ और परमाणुओ का सहयोग और योगदान भी परिलक्षित होता है। जीवजगत मे जब अंडाशय रूप में माँ के गर्भाशय मे जीव स्थान प्राप्त कर गर्भधारक माँ के द्वारा जो कुछ भी अन्न, वायु, जल अथवा जलवायु ग्रहण करता है, उससे ही एक जीव लगातार जन्म की गति की ओर विकसित एवं अग्रसारित हो रहा होता है, तब से ही सम्पूर्ण सौर मण्डल के जैविक, रसायनिक एवं भौतिक अणुओ और परमाणुओ की क्रियाऐ भी अपना उतना ही योगदान देना आरम्भ कर देती हैं। उन सभी के संयुक्त प्रभाव से एक चैतन्य नवजीवन का धरा पर अपना आगमन होता है। जीव के अंडाशय रूप से ही समस्त सांसारिक ऊर्जा और चेतना भी लगातार कार्य करती है। समस्त सांसारिक ऊर्जा और चेतना मे क्षणिक ब्रह्माण्डिय परिवर्तन और गति से जीवजगत के क्रिया-कलापों में भिन्नता आ जाती है, और सांसारिक ऊर्जा और चेतना छिन्न-भिन्न भी हो जाती है। इन्ही क्षणिक ब्रह्माण्डिय परिवर्तन और गति को नक्षत्रो से ज्ञातकर आगामी काल, समय की गणना होती है। ग्रहो का नक्षत्रो में भ्रमण, क्षणिक ब्रह्माण्डिय परिवर्तन और गति को स्पष्ट करता हैं, जिसके आधार पर ही कोई भिज्ञ ज्योतिर्विद काल खण्ड मे सटीक जानकारी देता है।
सनातन संस्कृति के वेदांग ज्योतिष (अथर्ववेद, तैत्तिरीय संहिता, शतपथ ब्राह्मण और लगध) में नक्षत्रो का व्यापक वर्णन मिलता है। आकाश गंगा मे स्थिर खगोलीय पिंडो को तारा कहा गया है और इन्हीं तारों के समूह को नक्षत्र की संज्ञा दी गयी है। ऋग्वेद में एक स्थान पर सूर्य को भी नक्षत्र कहा गया है। नक्षत्रो का सीधा तात्पर्य चन्द्रमा अथवा सूर्य के समान चमकने वाले स्थिर पिंडो का समूह, जो आकाश गंगा मे चहुओर फैला हुआ दिखता है। वेदों में नक्षत्रो की सूची और ज्ञान मिलता हैं।
सनातनी ज्योतिष शास्त्रानुसार खगोलीय व्यवस्थाओ मे चन्द्रमा और सूर्य सीधा मन: स्थिति और शारीरिक चेतना को प्रभावित करते हैं। चन्द्रमा का प्रभाव जलीय तत्वो पर और सूर्य का प्रभाव स्थूल तत्वो पर सीधा पड़ता है। चन्द्रमा मन (जलीय तत्व) का कारक होता हैं और सूर्य आत्म निर्णय (स्थूल तत्व) का कारक होता हैं। खगोलीय ग्रहो मे सबसे तेज गति करने वाला ग्रह चन्द्रमा को ही माना गया है। मनुष्य के स्वभाव में सर्वाधिक परिवर्तन लाने की क्षमता चन्द्रमा से मानी गई हैं, इसीलिए किसी भी शिशु के जन्मकाल पर उसका नक्षत्र ज्ञात करने की चेष्ठा की जाती है।
उसी के अनुसार उस शिशु की राशि तय होती हैं। उसे चन्द्र राशि कहा जाता हैं। विद्वानों द्वारा नामकरण संस्कार में शिशु की चन्द्र राशि को तय किया जाता है। चन्द्र राशि से उसके भाग्य का निर्धारण किया जाता हैं। चन्द्रमा और नक्षत्रो का चक्र मनुष्य के जन्म से मृत्यु तक सीधा संबद्ध रखता हैं।
उदया तिथि को ही पर्व की तिथि क्यों माना जाता हैं। सनातन संस्कृति मे शास्त्री पंचाग एक अतिमहत्वपूर्ण अंग है, जिसके अनुसार ही तिथियो, योगो, मुहूर्त और दिन रात के मान की गणना निर्धारित की ...
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विवाह का सीधा संबंध भावी जीवन की सम्पूर्ण संगति से है, जिसमे दु:ख-सुख, आपदा-विपत्ति, लाभ-हानि, उन्नति का साझा समन्वय सम्मिलित होता है, ऐसा ही एक विवाह शालिग्राम और तुलसी के पौधे का भी हैं। वनस्पति ...