संकलन : नीतू पाण्डेय तिथि : 07-12-2021
उदया तिथि को ही पर्व की तिथि क्यों माना जाता हैं। सनातन संस्कृति मे शास्त्री पंचाग एक अतिमहत्वपूर्ण अंग है, जिसके अनुसार ही तिथियो, योगो, मुहूर्त और दिन रात के मान की गणना निर्धारित की जाती हैं। उन्ही गणनाओ के आधार पर ही उदया और अस्त तिथि का भी आगणन दिया जाता हैं। सारे सनातनी व्रत और त्योहार पंचांग के अनुसार ही मनाए जाते हैं। तिथि, वार, नक्षत्र, योग और करण से मिलकर बनायी गई सारणी को ही पंचांग (कैलेंडर) कहा जाता है। अधिकतर ज्योतिषी उदया तिथि से शुरू होने वाले व्रत और त्योहार को मनाने की सलाह देते हैं, चाहे उस व्रत या त्योहार की तिथि एक दिन पहले ही क्यों न प्रारम्भ हुई हो। यह सामान्य धारणा ही है कि किसी भी त्योहार या तिथि को उदया तिथि के अनुसार ही मनाना चाहिए।
उदया तिथि का अर्थ है सूर्योदय के साथ आरम्भ होने वाली तिथि, जिसमे ज्योतिषियों के अलग-अलग मत स्थापित हैं। उदया तिथि को सूर्य के उगने अथवा चन्द्र उदय से जोड़ा जाता हैं। पंचांग अनुसार कोई भी उदया तिथि की समयावधि 19 से 24 घण्टे से अधिक नही हो सकती हैं। तिथियो का ये अंतराल सूर्य और चंद्रमा के अंतर से तय होता है। यदि दिवस के अन्तराल मे कोई भी तिथि चल रही हो और उक्त दिवस के मध्य से अगली तिथि का प्रारम्भ हो गया हो, तो उसका मान पहली तिथि से अधिक नहीं होगा। अर्थात अगली तिथि का मान अगले दिवस सूर्योदय से ही मान्य होता हैं क्योंकि पंचांग के अनुसार भी सूर्योदय के साथ ही दिवस बदलता है। कोई भी तिथि, चाहे कभी भी आरम्भ हो, उसकी गणना सूर्योदय के आधार पर अगणित की जाती है, क्योंकि पंचांगानुसार भी सूर्योदय के साथ ही दिन बदलता है। ऐसे में सूर्योदय के साथ जो तिथि शुरू होगी, उसका पूर्ण प्रभाव पूरे दिवस माना जाएगा। उदाहरण के लिए जैसे आज सूर्योदय के समय दशमी तिथि है और वह प्रातः 10:32 पर समाप्त हो रही है और अगली तिथि एकादशी का आरम्भ प्रातः 10:33 से हो जाएगा, तो ऐसे मे पूरा दिवस दशमी तिथि का प्रभाव मान्य होगा और अगले दिवस सूर्योदय के उपरान्त एकादशी तिथि का प्रभाव मान्य होगा। उदया तिथि स्पष्ट रूप से सूर्योदय के साथ ही उक्त तिथि का उदय ही माना जाता हैं। अर्थात सूर्य के साथ उत्पन्न होने वाली तिथि को उदया तिथि कहा जाता हैं। सामान्य भाषा मे उदया तिथि सूर्योदय काल से जो त्योहार की तिथि लगती हो, उस दिवस उक्त त्योहार का मान होता है। अनेकों मान्यताओ मे ऐसा ही माना जाता है, किन्तु यह तर्क हर स्थिति में उचित सम्भव नहीं है। सनातनी शास्त्रों में उदया तिथि का विशेष महत्व अवश्य है, किन्तु प्रत्येक त्योहार या व्रत को उदया तिथि के अनुसार नहीं किया जा सकता है वास्तव में तिथि का मान त्योहार काल व्यापिनी तिथि पर आधारित होता है।
धर्मशास्त्रों के अनुसार कर्म, पूजा, व्रत, उत्सव, त्योहार उदया काल तिथियो को व्यापिनी तिथि अथवा अवधि पर किए जाने का विधान है। जिसमे 1. मध्य व्यापिनी (किसी भी तिथि के मध्याह्न भाग मे)
2. प्रदोष व्यापिनी (किसी भी तिथि के अपराह्न काल/भाग मे)
3. अर्द्ध व्यापिनी (किसी भी तिथि के सायान्ह भाग मे)
4. निशीथ व्यापिनी (किसी भी तिथि के रात्रि भाग मे) को प्रमुखता दी गई है। जैसे राम जी का जन्म चैत्र शुक्ल नवमी तिथि को दोपहर में हुआ था, तो मध्य व्यापिनी नवमी तिथि के दोपहर में जन्मोत्सव मनाया जाता है। ठीक इसी प्रकार से श्री-कृष्ण का जन्म भाद्रपद मास कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मध्य रात्रि में हुआ, इसलिए निशीथ व्यापिनी अष्टमी तिथि की रात्रि में जन्मोत्सव मनाया जाता है। करवा चौथ व्रत में कार्तिक मास कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथी को चंद्रमा के पूजन का विधान है, तो ऐसे में यह व्रत उक्त वर्ष मे कार्तिक मास कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथी को चंद्रमा का उदय ही चौथ तिथि का पर्व समय है, ना कि चौथ तिथि के सूर्योदय काल से। अर्थात सूर्योदय के साथ चौथ आरम्भ होने के दिवस को करवा चौथ व्रत ना होकर उसी दिवस को होगा जिस दिवस मे चतुर्थी तिथि को चांद की पूजा हो सके।
सनातन संस्कृति के वेदांग अथर्ववेद, तैत्तिरीय संहिता, शतपथ ब्राह्मण और लगध ज्योतिष में नक्षत्रो का व्यापक वर्णन मिलता है।आकाश गंगा मे खगोलीय स्थिर पिंडो को तारा कहा गया है और इन्हीं तारों के समूह को नक्षत्र की संज्ञा दी गयी ...
विवाह का सीधा संबंध भावी जीवन की सम्पूर्ण संगति से है, जिसमे दु:ख-सुख, आपदा-विपत्ति, लाभ-हानि, उन्नति का साझा समन्वय सम्मिलित होता है, ऐसा ही एक विवाह शालिग्राम और तुलसी के पौधे का भी हैं। वनस्पति ...
दीपावली पर्व के उपरांत पड़ने वाला सनातनी पर्व देवउठनी एकादशी अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसे देवोत्थान एकादशी, देव प्रबोधिनी एकादशी, देवउठनी ग्यारस आदि नामो से जाना जाता है। वैदिक पुराणोंनुसार कार्तिक मास शुक्ल पक्ष की एकादशी ...