संकलन : जया मिश्रा Advocate तिथि : 17-11-2021
सनातन संस्कृति के वेदांग अथर्ववेद, तैत्तिरीय संहिता, शतपथ ब्राह्मण और लगध ज्योतिष में नक्षत्रो का व्यापक वर्णन मिलता है।आकाश गंगा मे खगोलीय स्थिर पिंडो को तारा कहा गया है और इन्हीं तारों के समूह को नक्षत्र की संज्ञा दी गयी है। ऋग्वेद में एक स्थान पर सूर्य को भी नक्षत्र कहा गया है। नक्षत्रो का सीधा तात्पर्य चन्द्रमा अथवा सूर्य के समान चमकने वाले स्थिर पिंड का समूह जो आकाश गंगा मे चहुओर फैला हुआ दिखता है। वेदों में नक्षत्र की सूची और ज्ञान मिलता हैं।
आकाश मंडल के 27 नक्षत्रों की एक अपनी संख्या, रूपरेखा और आकृति है। जिन्हें आसानी से पहचाना जा सकता हैं। उन नक्षत्रों में से रोहिणी नक्षत्र चौथा नक्षत्र है, जिनका स्वामी चंद्रमा है और नक्षत्र की राशि का स्वामी शुक्र है। वैदिक ज्योतिष शास्त्रानुसार तारों के समूह को ही नक्षत्रों के रूप मे दर्शाया गया है। प्रत्येक वर्ष में सभी नक्षत्र तेरह बार आवर्तित होते हैं, उन नक्षत्रों में से रोहिणी भी एक नक्षत्र है। रोहिणी नक्षत्र पांच तारों का एक समूह है और यह नक्षत्र फरवरी माह के मध्य भाग में आकाश गंगा के पश्चिम दिशा में रात के 6 बजे से लेकर 9 बजे तक दिखाई देता है। वार्षिक रूप से प्रत्येक मास शुक्ल पक्ष मे रोहिणी नक्षत्र के प्रबल होने की स्थिति मे रोहिणी व्रत किया जाता है। रोहिणी व्रत का आरम्भ रोहिणी नक्षत्र से होता है और रोहिणी नक्षत्र के समाप्त होने पर मार्गशीर्ष नक्षत्र में पारण किया जाता है। जैन सम्प्रदाय के लिए यह व्रत विशेष होता है। रोहिणी व्रत दिवस तिथि को जैन सम्प्रदाय के बारहवें तीर्थंकर भगवान वासुपूज्य स्वामी का पूजन अर्चन किया जाता है।
ऐसा प्रचलित है कि रोहिणी व्रत से आत्मा के विकारों को दूर किये जा सकते हैं एवं मनुष्य का ह्रदय एवं मन पवित्र होता है। साथ ही साथ ये कर्म बंध से भी छुटकारा दिला मोक्ष की ओर गति दिलाता है। रोहिणी नक्षत्र के समयावधि मे भक्ति भाव और सात्विकता से रोहिणी व्रत पूजन पाठ किया जाता है, तो वैवाहिक जीवन में पति-पत्नी से पूर्ण अनुराग और पूर्ण सुख के साथ मन से ईर्ष्या, द्वेष जैसे भाव दूर होते हैं और आयु, धन, धान्य एवं सुखों में वृद्धि होती है। रोहिणी व्रत स्त्री व पुरूष दोनों के लिए समान रूप से फलदायी है, इसलिए यह एक साधारण व्रत न होकर एक पर्व है। जैन सानुदाय के अनुयायियों द्वारा इस व्रत को विशेष महत्वपूर्ण माना जाता है। इस व्रततिथि पर ज़्यादातर सुहागिन स्त्रीयां अच्छे स्वास्थ्य की कामना से माता रोहिणी देवी व्रत रखती हैं।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार नक्षत्र कन्याएँ प्रजापति दक्ष की पुत्री थी, जिनका विवाह चन्द्रमा से हुआ था, जिनसे चन्द्रमा अधिक प्रेम करते थे। जिस कारण से अन्य सभी कन्याओं ने दुःखी होकर अपने पिता दक्ष से चन्द्रमा की शिकायत की थी। तब क्रोधित होकर दक्ष ने उन्हें क्षय रोग का श्राप दिया था। जिसकी वजह से उनकी कलाएं क्षीण होने लगी। जिसके बाद ऋषियों मुनियों के कहने पर चंद्रदेव ने दक्ष द्वारा प्रदत्त श्राप से मुक्ति पाने के लिए भगवान शिव की तपस्या की और क्षय रोग से मुक्ति तो मिली ही साथ ही शिव भगवान ने उन्हें मस्तिष्क पर धारण किया। मान्यताओं के अनुसार आज भी दक्ष के उस श्राप के चलते ही चंद्रमा का आकार घटता और बढ़ता रहता है लेकिन आज भी पूर्णिमा के दिन चंद्रमा अपने पूर्ण आकार में नजर आते है।
सनातन ज्योतिष शास्त्रानुसार खगोलीय व्यवस्थाओ में चन्द्रमा और सूर्य सीधा प्रभाव मनः स्थिति, शारीरिक एवं मानसिक चेतना को प्रभावित करता है। चन्द्रमा का प्रभाव जलीय तत्वो पर और सूर्य का प्रभाव स्थूल तत्वो पर सीधा पड़ता है। चन्द्रमा, मन (जलीय तत्व) का कारक होता हैं और सूर्य, निर्णय (स्थूल तत्व) का कारक होता हैं। खगोलीय ग्रहो मे सबसे तेज गति करने वाला ग्रह चन्द्रमा को ही माना गया है। मनुष्य के स्वभाव में सर्वाधिक परिवर्तन लाने की क्षमता चन्द्रमा मे मानी जाती हैं। चन्द्रमा गतिमान होकर पृथ्वी की परिक्रमा कर रहा होता हैं, उस समय चन्द्रमा जिस नक्षत्रों के पास होता है या उस तारों के समूहों के पास गुजर रहा होता हैं, तो उनके प्रभाव से मन की गति का निर्धारण किया जाता है। रोहिणी व्रत से आत्मा के विकारों को दूर किये जा सकते हैं एवं मनुष्य का ह्रदय एवं मन पवित्र होता है। साथ ही साथ ये कर्म बंध से भी छुटकारा दिला मोक्ष की ओर गति दिलाता है। संभावतः इन्ही तथ्यो पर आधारित रोहिणी नक्षत्र के समयावधि मे भक्ति भाव और सात्विकता से रोहिणी व्रत पूजन पाठ किए जाने से मन से ईर्ष्या, द्वेष जैसे दूषित भावो से मुक्ति होती है और समयान्तराल आयु, धन, धान्य एवं सुखों में भी वृद्धि होती है। इसका सीधा प्रभाव वैवाहिक जीवन में पति-पत्नी के मध्य पूर्ण अनुराग और सुख होता है।
रोहिणी व्रत मे पूजा एवं उद्यापन विधि से जुड़े तथ्य।
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