संकलन : जया मिश्रा Advocate तिथि : 12-11-2021
विवाह का सीधा संबंध भावी जीवन की सम्पूर्ण संगति से है, जिसमे दु:ख-सुख, आपदा-विपत्ति, लाभ-हानि, उन्नति का साझा समन्वय सम्मिलित होता है, ऐसा ही एक विवाह शालिग्राम और तुलसी के पौधे का भी हैं। वनस्पति का देव के साथ विवाह कराये जाने का विधान सनातन संस्कृति मे बड़ा ही अदभूत पर्व, तुलसी विवाह है। लगभग सभी धार्मिक सनातनी कार्तिक माह शुक्ल पक्ष देवउठनी एकादशी पर तुलसी विवाह का आयोजन अवश्य करते है। देवउठनी एकादशी के संबंध मे मान्यता है कि भगवान विष्णु चतुर्मास के उपरान्त गहरी शयननिद्रा से जागकर सृष्टि का संचालन अपने हाथों में ले लेते हैं और सांसरिक व्यवस्था को सुचारु गति बनाए रखे जाने हेतु भगवान विष्णु का शालिग्राम रूप मे भगवती तुलसी का विवाह संपन्न कराया जाता है। विवाहोपरान्त पूजन कर उनसे कामना की जाती है कि गृह-परिवार में मंगल कार्य निर्विघ्न संपन्न होते रहे।
सनातन शास्त्रानुसार जीव के जीवित रहने की मूल आवश्यकताओ में भोजन सर्वोपरि है, क्योकि भोजन ही जीवन की गति को चलायमान रखने के साथ ही शक्ति, निरोगिता और आयुवृद्धि भी देता है। इसलिये भोज्य द्रव्यों का चयन केवल जीवन जीने के लिये ही नही, अपितु शक्ति, निरोगिता और आयुवृद्धि के लिये भी किया जाना नितान्त आवश्यक है। सनातन संस्कृति में ऋषि मुनियो ने पहले ही पुराणो में विशेष रूप से ध्यान देकर प्रमाण सहित सूत्रो को स्थापित कर दिया था, जिसे आज इस आधुनिक युग में सिर्फ ज्ञात कर पालन किये जाने मात्र से ही अद्भुत और चमत्कारी परिणाम के साथ घर में सुख-शांति और वृद्धि-समृद्धि के द्वार खुल जाएगे, जिनसे गृह में लक्ष्मीवास स्थायी हो जाता है। तुलसी के औषधीय गुणों को जानकर ही पूर्वजो ने इसे धर्मसम्मत बना दिया, जिस के आधार पर ही प्रत्येक सनातनी गृह में तुलसी का पौधे अवश्य मिलेगा। सनातनी भोज्य द्रव्यों में तुलसी का महत्व स्वास्थ्य, धर्म, एवं वैज्ञानिक दृष्टि से बहुत बड़ा हैं। तुलसी का पौधा पर्यावरण तथा प्रकृति का भी द्योतक है। तुलसी विवाह तिथि को औषधीय तुलसी के माध्यम से सभी में हरियाली एवं स्वास्थ्य के प्रति सजगता का प्रचार प्रसार किए जाने हेतु तुलसी के पौधों का दान भी किया जाता है। पौराणिक मतानुसार धूम-धाम के साथ तुलसी पूजा करने से सभी पारिवारिक दोष से मुक्ति होती है और तुलसी विवाह मे कन्यादान के समानान्तर ही पुण्यफल प्राप्त कर सुख-संपदा, वैभव-मंगल जीवन मिलता हैं। शालिग्राम का पूजन सौभाग्य और चिकित्सा से भी जुड़ा हैं।
चिकित्सा विज्ञान मे तुलसी का पौध एंटीबैक्टीरियल, एंटीफंगल व एंटीबायोटिक गुणो की संयुक्त संक्रमण से लड़कर शरीर को सक्षम बनाता है और तुलसी के कारण गृह में रोगाणु-विषाणुओ की संख्या की कमी से रोग-व्याधियाँ ना के बराबर होती है। अध्ययनों से स्पष्ट हुआ है कि तुलसी में मौजूद विभिन्न रासायनिक यौगिक शरीर में संक्रमण से लड़ने वाली प्रतिरोधक उत्पादनो में 20% तक की वृद्धि करते हैं। जिसमे यह भी स्पष्ट हुआ है कि टी.बी-मलेरिया व अन्य संक्रामक रोगों मे तुलसी रामबाण औषधि सिद्ध होती है। तुलसी के नियमित सेवन से शरीर में ऊर्जा का प्रवाह नियंत्रित रहता है। तुलसी की पत्तियों में मौजूद विटामिन ए में एंटीऑक्सीडेंट गुण शरीर की मृत कोशिकाओं को ठीक कर स्वास्थ्य को उन्नत करता है और तुलसी दल मृत्यु से बचाता है। तुलसी एक प्राकृतिक वायुशोधक पौधा भी है, जो गृह के वायु प्रदूषण को न्यूनतम करता है। तुलसी पौधे का यूजेनॉल नामक कार्बनिक यौगिक मच्छर, मक्खी और कीड़े भगाने का काम भी करता है।
सत्य नारायण जी पूजन समय पंडित जी द्वारा एक काला पत्थर (शालिग्राम) को विनाश, अशांति, असामयिक मृत्यु से बचाव का मार्ग और पाप शमन के साथ मुक्ति प्रदाता मानते हुए विष्णु प्रतिमा के स्थान पर रखकर पूजन पाठ करते है, जिसके विषय मे जनसामान्य को ज्ञात ही है। शालिग्राम, श्रीधर, सुकर, वाम, हरिवर्ण, वराह, कूर्म और अन्य भिन्न-भिन्न आकार-प्रकार के होते हैं, जिन्हे विष्णु के अवतारों के अनुसार माना जाता है (जैसे-गोल शालिग्राम विष्णु का गोपाल रूप, मछली आकार श्री विष्णु के मत्स्य अवतार, कछुए के आकार मे कच्छप और कूर्म अवतार, चक्र और रेखाएं भी विष्णु के अन्य अवतारों और श्रीकृष्ण को इंगित करती हैं)। इस तरह लगभग 33 प्रकार के शालिग्राम होते हैं, जिनमें से 24 प्रकार के शालिग्राम को विष्णु के 24 अवतारों से संबंधित मानते हुए वर्ष की 24 एकादशी व्रत से जोड़ा गया हैं।
हर गोल पत्थर शालिग्राम नहीं होता, कई वर्षो की प्रक्रिया से शालिग्राम का विकास होता है। प्राकृतिक रूप से शालिग्राम सदा विस्तृत होते ब्रह्मांड का एक प्रतिकांकन है। शालिग्राम तत्व भूविज्ञान, जीव विज्ञान तथा सांस्कृतिक तीनों ही विषयो मे मीमांसीय गुण रखते है। शालिग्राम गंडकी नदी से प्राप्त गोल छोटे, कपिल वर्ण के बहुत कम नरम ऊतको से बना जीवाश्म है, जो रासायनिक रूप से कैल्साइट संबंधित तीन या पाँच धारियो से युक्त होते हैं। जीवाश्म दीर्घायु, स्मृति और पिछले जीवन को याद कराते हैं। उनका उपयोग पूर्वजों का सम्मान करने या ज्ञान के प्राचीन स्रोतों से जुड़ने के लिए भी किया जाता है। शालिग्राम विशेष रूप से पिछले जन्म के काम हेतु अनुकूल है। आधुनिक पुस्तकों में जीवाश्म पत्थरो की उपेक्षा हो रही है, जबकि वे खनिज और रासायन का अद्भुत और शक्तिशाली भंडार हैं।
कुछ शालिग्राम जीवित जीवों से आते हैं (जैसे पाचन तंत्र में उत्पन्न होने वाले खनिज तत्व व अन्य प्रकार के जीवाश्म)। कुछ विद्वान व वैज्ञानिको अनुसार सांप या अजगर के मस्तक में पाए जाने वाला पौराणिक ड्रैकोनाइट वास्तविक शालिग्राम पत्थर होता है। जिसके प्रभाव से जहर, विषैले जीव या विपत्तियों से बचा जाता था। 19 वीं शताब्दी के आरम्भ मे सांप के काटने, प्रसव पीड़ा को कम करने और प्रजनन क्षमता वृद्धि के लिए पूरे यूरोप में शालिग्राम तत्व का उपयोग किया जाता था। शालिग्राम स्पंदित होते ही जीवित और सक्रिय हो जाते है। अगर प्राणी संवेदनशील है, तो वह स्वयं एक साधारण पत्थर और शालिग्राम को हाथ में लेकर अंतर साफ-साफ महसूस कर सकते हैं। ध्यानलिंग प्रक्रिया के बाद जब शरीर रहने लायक नहीं रहता, तब कई बार शरीर को ठीक करने मे शालिग्राम का प्रयोग लाभकारी है।
प्राचीन संस्कृत ग्रंथों और लोक परंपराओं में शालिग्राम को स्वर्ग की सीढ़ी के नाम से पुकारा गया है। शालिग्राम, नाग देवता के निर्माण और पृथ्वी को धारण करने वाले शेषनाग का भी परिसूचक है, जिन्होने क्षीरसागर मे विष्णु जी को धारण कर रखा है। इसीलिए शालिग्राम पत्थर को निचली दुनिया से ऊपरी दुनिया मे जाने का सूत्र माना गया हैं। पौराणिक वर्णन है कि शालिग्राम का पूजन किया जाय, अथवा ना किया जाए, मात्र शालिग्राम शिला के स्पर्श से ही करोड़ों जन्मों के पाप का नष्ट होते हैं। शालिग्राम का उपयोग गृह की आध्यात्मिक सुरक्षा प्रतीक रूप में प्रयोग होता है, जिससे विपत्तियों या मानवीय मृत्यु उपरान्त भी परिवार मे आनंद और संपन्नता बनी रहे। इस प्रकार संस्कृति रूप मे शरीर के सभी चक्रों की नाड़ियो में ऊर्जा के प्रवाह को सांकेतिक संरचनात्मक समायोजित करने हेतु शालिग्राम का उपयोग होता रहा है। ब्रह्मचारी के लिये शालिग्राम का पूजन वर्जित है।
पद्मपुराण अनुसार जिस प्रकार सदा काठ (लकड़ी) के भीतर छिपी हुई अग्नि मन्थन करने से प्रकट होती है, उसी प्रकार से शालिग्राम शिला में विशेष रूप से भगवान विष्णु अभिव्यक्त होते हैं। प्रतिदिन सात्विकता से शालिग्राम के पूजन करने से सबसे घृणित पापकर्म (ब्रह्महत्या व गौहत्या) को भी कुछ अंश तक घटाया जा सकता है और भाग्य, समाज में मान-प्रतिष्ठा, धन-धान्य बढ़ता है।
शालिग्राम और तुलसी विवाह से जुड़े कुछ अन्य तथ्य : -
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