संकलन : नीतू पाण्डेय तिथि : 20-06-2024
पुराणोक्त विधि-विधान के साथ अष्ट सिद्धिधियों की देवी माँ लक्ष्मी की आराधना करने से धन- धान्य और प्रसन्नता की देवी से समृद्धि का आशीष भक्त के गृह भण्डार को अक्षय बनाता है और सदैव सुख-समृद्धि धन, यश, कीर्ति तथा ऐश्वर्य के साथ समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति का सुख मिलता है। मुहावरा है कि उन्नत-माया, निरोगी काया, जिसका प्रत्यक्ष संबंध माया रुपी लक्ष्मी जी के स्वास्थ्य और धन से जुड़ता है, क्योंकि अगर स्वास्थ्य न हो. तो धन भी कम ही आता है और यदि आ भी जाए, तो टिक नहीं पाता। संभवतः इसी तथ्य पर सनातनी परंपरा में स्वास्थ्य को ही सर्वोत्तम धन कहा जाता है।
समुद्र मंथन के समय निष्कर्ष रूप से माँ लक्ष्मी का अवतरण हुआ था, जो उन्हें चिकित्साविद् भी बनाता है। मनुस्मृति में भी लक्ष्मी को दारिद्रय- नाशक और रोग-नाशक कहा गया है। इस प्रकार तीनों लोकों के संचालन चक्र की संचालिका लक्ष्मी जी को स्वयं ही प्रसन्नता, सकारात्मकता और उर्जा देने वाली दैवीय शक्तियों में से एक माना जाता है, जिनकी कृपा मात्र से ही सभी कार्य पूर्ण होते हैं। जिससे स्पष्ट है कि निवास अथवा कार्य स्थली पर इनकी उपस्थिति कार्य । गृह संचालन में भी प्रतीकात्मक भूमिका का निर्वहन करती हैं। इनकी उपस्थिति आस-पास की नकारात्मक शक्तियों को अपने में समाहित कर लेने का गुण, कलह-कलेश, पितृ-दोष, दृष्टि-दोष, भूत-प्रेत, जादू-टोना, बुरी शक्तियों का साया अथवा अन्य किसी भी प्रकार की हानिकर शक्तियां स्वतः नष्ट होती हैं. जिनसे सौभाग्य कर्ज मुक्ति और सांसारिक गति में सद्गति की प्रेरणा जागृत होती है।
लक्ष्मी जी का प्रत्यक्ष प्रभाव गृह सुख-शांति के आन्तरिक सभी चक्रों में सद्गति के रूप परिलक्षित होता है। अकूत संपदा, समृद्धि प्रचुर धन, ऐश्वर्य, ख्याति का मिश्रित परिणामी प्रदर्शन ही वैभव है, जिसे सांसारिक जीवन में प्रत्येक कर्मठ, परिश्रमी, ज्ञानी जीव पाने की अभिलाषा रखता है, किन्तु बिना दैवीय कृपा के वैभव हर किसी को मिल पाना संभव नहीं होता है। ठीक उसी प्रकार पौराणिक शास्त्रों में लक्ष्य को प्राप्त कराने वाली सक्रिय चेतन को ही लक्ष्मी रूप में परिभाषित किया गया है अर्थात वैभव और लक्ष्मी का संयोग जिस भी भाग्यशाली को प्राप्त हो जाए, तो वह इस कलिकाल में जीवित अवस्था में ही मोक्ष और स्वर्गिकआनंद को भोग लेता है। इसीलिए वैभव लक्ष्मी समृद्धि, सौभाग्य, संपत्ति और सफलता की देवी के रूप में विख्यात हैं। जिनके केवल कृपामात्र से ही रोग दोष, दुख संताप, चिंता,दारिद्रय से क्षणभर में मुक्ति मिलती है। ऐसा वैभव लक्ष्मी का दैवीय प्रताप ज्ञानी ध्यानी और सिद्ध महात्मा बताते हैं।
वैभव लक्ष्मी को नकारात्मक ऊर्जा से सुरक्षा व बुरी शक्तियों को नष्ट करने वाला मानते हैं। वैभव प्रतीक लक्ष्मी जी के पास नाना प्रकार की शक्तियाँ संचित रहती हैं, जो दारिद्रय, कर्ज, अपयश को न्यूनतम करती हैं। इस प्रकार वैभव लक्ष्मी व्रत से भक्त के आस-पास में विकास. एकाग्रता, सुरक्षा, शांति, चेतना, स्वास्थ्य व प्रतिष्ठा सदैव स्थापित रहती है। मन की शांति. अधिक चेतना, बेहतर भक्ति, सभी प्रकार की सुरक्षा, समाज में प्रतिष्ठित, वित्तीय विकास. एकाग्रता, व्यापार वृद्धि, बच्चों की सुरक्षा, पूजा की शक्ति के साथ समृद्धि, अच्छा स्वास्थ्य, पर्याप्त धन, बुरे प्रभावों से बचाने, बीमारी को ठीक करने की विशेष शक्तियों से इस पूजा या अनुष्ठान में होती है। वैभव लक्ष्मी पूजन से मुख तेजस में वृद्धि, धन की वर्षा और सकारात्मकता जीवन में आगामी संकटों से सुरक्षा के साथ ही लक्ष्मी के विविध स्वरूप (श्रीगजलक्ष्मी, श्री अधिलक्ष्मी, श्री विजयलक्ष्मी, श्री ऐश्वर्यलक्ष्मी, श्री वीरलक्ष्मी, श्री धान्यलक्ष्मी एवं श्री संतानलक्ष्मी) की कृपा से धन सम्पदा, वैभव, ऋद्धि सिद्धि सभी कुछ उत्तरोत्तर बढ़ता है।
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