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Pooja Path भू-पूजन अथवा भूमि पूजा


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संकलन : नीतू पाण्डेय तिथि : 20-06-2024

प्राणियों के जीवित रहने के लिये उपयुक्त पृथ्वी के भाग को भूमि कहते हैं।

भू का अर्थ है भूमि का वह टुकड़ा जहां जीव-जन्तु रह सके, धरा के उस सम भाग को ही भूमि कहते हैं। दूसरे शब्दों में, पृथ्वी का वह भाग जहाँ स्थायी रूप से जल नहीं है और जो प्राणियों के जीवित रहने के लिये उपयुक्त है, भूमि कहलाता है। वैदिक ग्रंथों में भूमि को पृथ्वी, स्थान, शक्ति, अस्तित्व, यज्ञ की अग्नि, पदार्थ और भूमि का एक छोटा सा टुकड़ा (जिस पर किसी का अधिकार हो) आदि नामो से वर्णित किया गया है।

भूमि पर रहने हेतु प्राकृतिक एवं दैवीय शक्तियों से अनुरोध या प्रार्थना ही भूमि पूजा है

इस प्रकार धरती के एक छोटे से टुकड़े पर रहने के अधिकार के लिए प्राकृतिक एवं दैवीय शक्तियों से किया गया अनुरोध या प्रार्थना का तात्पर्य ही भूमि पूजन है अर्थात जिसमें सभी प्राकृतिक जीवों की भागीदारी और सहमति ली जाती है और उस भूमि की नकारात्मकता को प्राकृतिक एवं दैवीय शक्तियों के आवाहन के साथ पूजा कर सकारात्मक प्रभाव स्थापित करने का प्रयास ही भूमि पूजन है। भूमि पूजन कराने से समृद्धि, संरक्षण, और सफलता के लिए दिव्य आशीर्वाद का लाभ स्वयं के साथ-साथ भावी पीढियां भी अर्जित करती हैं।

भूमि पूजन का शास्त्रोक्त विधि व नियम

भूमि पूजा अनुष्ठान में परंपरागत रीति से उच्चमानकों के अनुरूप भू-धारक से अत्यधिक भक्ति, शुद्धता समर्पण और दक्षता के साथ जल, थल, वायु, आकाश, पाताल, वास्तु-देव, पंचभूत (पंच-तत्व) और दश दिशाओं से सम्बन्धी प्राकृतिक (दैविक) शक्तियों का वास्तु-विज्ञान के विधिनुसार कर्मकाण्ड  के ज्ञात विशेषज्ञ से आवाहन व पूजन कराकर शु‌द्धिकरण कराते हुए भूमि को पुनर्जाग्रत कराते हैं, ताकि उक्त भूमि पर निवास या व्यवसाय करने में यदि कोई हानि अथवा क्षति सम्भव हो, तो वह न्यूनतम हो जाए।

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