संकलन : नीतू पाण्डेय तिथि : 20-06-2024
नींव शब्द का प्रयोग किसी नई इमारत, मंदिर, निवास या किसी महत्वपूर्ण संरचना की आधारशिला रखने के संदर्भ में ही किया जाता है। दैवीय आशीर्वाद प्राप्त करने और निर्माण प्रक्रिया या स्थापना की शुरुआत को चिन्हित करने का औपचारिक अनुष्ठान, नींव पूजा है, जिसमें किसी परियोजना के आरम्भ से समापन तक की सफलता का दैवीय शक्तियों का आशीर्वाद निहित रहता है अर्थात देवताओ का पवित्र वास कराये जाने के उद्देश्य से उनकी प्रतिष्ठा, सम्मान और आशीर्वाद की प्राप्ति का धार्मिक अनुष्ठान ही नींव पूजा है, जो प्रकृति के प्रति भक्ति और समर्पण का प्रतीक है। यह अनुष्ठान जीवन में निर्माण प्रक्रिया का अभिन्न और महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है, जिसका मुख्य ध्येय नए निवास और निर्माण स्थलों में भविष्य को सुरक्षा मिले और वास्तु अनुसार जीवन में सफलता और सुखों की परिपूर्णता रहे। निर्माण स्थल या नए निवास में निर्माण शुरु होने से पूर्व नींव पूजा एक धार्मिक परंपरा है और इसे निर्माण प्रक्रिया का शुभारम्भ माना जाता है।
नए उदयमों या प्रयासों को शुरू करने से पहले दिव्य मार्गदर्शन और आशीर्वाद प्राप्त करने के महत्व का प्रतीक नींव पूजा प्रकृति और परमात्मा के साथ गहरे आध्यात्मिक संबंध को अधिक जमीनी, केंद्रित और ब्रह्मांड में जुड़ाव महसूस कराने का अद्वितीय माध्यम है। इस पूजा को विधिवत् और ध्यानपूर्वक करने से दैवीय हस्तक्षेप और मार्गदर्शन प्राप्त करने का यह शक्तिशाली, समृद्धिपूर्ण और कल्याणकारी विधान जीवन में भावी चुनौतियों का सामना करने में सहायता के साथ भगवान का आशीर्वाद भी दिलाता है। नींव पूजा समृद्धि, धन और प्रचुरता को आकर्षित कर वित्तीय बाधाओं को दूर करते हुए विकास और सफलता के नए अवसर पैदा कर निर्माण स्थलों या नए घरों में निर्माण को आरम्भ करने से पूर्व भूमि के चारों ओर मौजूद उचित ऊर्जाओं और प्राकृतिक तत्वों को एकीकृत कर उर्वरा शुभता, उन्नति, समर्थता और शान्ति प्रदान करने में सक्षमता लाता हैं|
नींव पूजा को भूमि पूजा ही मानने का भ्रम कुछ लोगों या धार्मिक अल्प ज्ञाताओं में है, किन्तु ऐसा कदाचित नहीं है, क्योंकि भूमि पूजा, भूमि की उर्वरा और शुभता को संरक्षित किये जाने का अनुष्ठान है, परन्तु नीव पूजा उस भूमि पर नव-निर्माण या स्थापत्य की आधारशिला रखे जाने का अनुष्ठान है। अर्थात् दोनो ही अनुष्ठान भूमि से ही सम्बन्ध रखते हैं, किन्तु एक उर्वरा, शुभता, उर्जा संग्रह को दर्शाता है और दूसरा प्राकृतिक तत्वों का स्थापत्य और बुनियादी आधार का एकीकृत प्रतिनिधित्व करता है। प्राकृतिक शुद्धता, पवित्रता, उच्च गुणवता और किसी भी आयोजन को परिष्कृत करने का विधान या पर्याप्त नींव पूजा ही है। इससे उत्पन्न पवित्र ऊर्जा और कंपन में उपचार गुण पूजक और उससे सम्बंधित सभी परिजनों को उच्च स्वास्थ्य, जीवनी शक्ति और दीर्घायु प्रदान करते हुए अतीत के पछतावे, अपराध बोध और नकारात्मक ऊर्जाओं को दूर कर आत्मा की शुद्ध आध्यात्मिक विकसित प्रदान करता है, जो आपसी संबंधों में सौहार्दपूर्ण, सद्भाव, प्रेम और समझ को बढ़ाता है। यह अनुष्ठान विवादों को निपटाने और मन की शांति के लिए सहयोगी सिद्ध होते हैं। व्यक्तिगत लाभ के साथ नींव पूजा पर्यावरणीय संरक्षण और लाभ का भी पर्याय बनने के साथ ही सभी सदबंधनों को विश्वास, सम्मान, विकास मागे प्रशस्त के पूजक के आपसी द्वेष, कलुषिता, मतभेद को समाप्त करते हैं। इससे किसी भी संघर्ष में आने वाली बाधाओं से न्यूनता अर्जित की जाती है।
सारांश में, समारोह में पर्यावरणीय, दैवीय शक्तियों, पंच महाभूतों, प्राकृतिक तत्वों का एकीकरण, उर्वरा, शुभता और उन्नति के देवों का आवाहन, स्थापन, स्तम्भन और याचना कर मंत्रों के जप के साथ अन्य शुभ वस्तुओं को परंपरा या संस्कृति के अनुसार प्रयुक्त कर इस विशिष्ट अनुष्ठान को आयोजनात्मक पूर्ण किया जाता है।
खगोलीय सौर्य मण्डल के सभी ग्रह, उपग्रह 27 नक्षत्रों से वर्तमान और भविष्य की घटनाओं की स्पष्ट जानकारी मिलती है ज्योतिष विज्ञान के अनुसार खगोलीय सौर्य मण्डल के सभी ग्रह, उपग्रह 27 नक्षत्रों के मध्य ही ...
रुद्रान्श देव हनुमान की कृपा से कठिन से कठिन कार्य भी आसान और सुखद होते हैं। कलिकाल में सर्वाधिक कम समयावधि में प्रसन्न होने वाले रुद्रान्श देव हनुमान जी हैं और भगवान श्रीराम के सबसे विश्वसनीय, ...
सनातन दर्शन तथा योग के अनुसार ब्रह्मांड में व्याक पंचमहाभूत पृथ्वी (क्षिति), जल (अप), अग्नि (पावक) गगन (आकाश) एवं वायु (समीरा) एवं अविरतुओं कारण और परिणति,माना गया है। प्रकृति में उत्पन्न मभी वस्तुओं में पंचतत्व अलग-अलग ...