संकलन : नीतू पाण्डेय तिथि : 20-06-2024
सनातन दर्शन तथा योग के अनुसार ब्रह्मांड में व्याक पंचमहाभूत पृथ्वी (क्षिति), जल (अप), अग्नि (पावक) गगन (आकाश) एवं वायु (समीरा) एवं अविरतुओं कारण और परिणति,माना गया है। प्रकृति में उत्पन्न मभी वस्तुओं में पंचतत्व अलग-अलग मात्रा में मौजूद है, जिसमें बयानव भी सम्मिलित है (शिनि, जल, पावक, गगन, समीरा। पंच रचित् अधि अधम शरीरा १) बांड में सभी A जीव-जन्तुओं का प्रथम निवास स्थल पृथ्वी ही है और पृथ्वी पर जहाँ पंचमहाभूत तत्वों का उचित संतुलन, मरक्षण, और समृद्धि मिलता हो। एवं प्रसन्नता पूर्वक उत्कृष्ट स्वास्थ्य के साथ निवासित हो मके, उमे ही प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप में घर या गृह कहते हैं। वैसे गृह का अर्थ है: घर, मकान, निवास स्थान, राष्ट्र या राज्य के आतरिक कार्यों का क्षेत्र अथवा वह प्रदेश या क्षेत्र जहाँ कोई निवास करता हो, इत्यादि नाम शास्त्रीय पुस्तकों में वर्णित है। इसी प्रकार गृह प्रवेश का तात्पर्य नवनिर्मित या क्रय किए गृह में शास्त्रोक्त विधिपूर्वक धार्मिक पूजन कृत्य पूर्ण कर बाल बच्चों सहित निवास आरम्भ करना, जिसमे शुभ कर्म, प्रीतिभोज व समारोह आदि समाहित रहता है। यह अनुष्ठान संपत्ति मे वातावरणीय नकारात्मकता को हटाकर शुद्ध करने एवं कुदृष्टि में रक्षा करने के निया किया जाता है अर्थात परमात्मा आशीर्वाद या दैवीय संरक्षण पाने की पारंपरिक सनातनी आध्यात्मिक, वृद्धिकरण और पवित्रीकरण का अनुष्ठान गृह प्रवेश या वास्तु पूजा है, जिसमें मानव या उसका परिवार नव- निवाम में शांति, समृद्धि, सकारात्मक ऊर्जा, आशीर्वाद, सद्भाव और सौभाग्य सुनिश्चित करता है। यह महत्वपूर्ण सांस्कृतिक अनुष्ठान, क्षेत्रीय और व्यक्तिगत प्राथमिकताओं के आधार पर भिन्न हो सकते हैं। भवन । परिसर में नव-प्रवेश तक शांति और सद्भाव सुनिश्चित करने के लिए तीन प्रकार से अनुष्ठान सम्पन्न होते हैं।
> अपूर्वा : नवनिर्मित भवत् । परिसर में प्रथम बार प्रवेश करने पर होता है।
> सपुर्वा विदेशी भूमि मे वापसी घर आने पर प्रथम बार प्रवेश करने पर होता है।
> द्वन्द्वा: आग, बाढ़, भूकंप या अन्य ज्ञात-अज्ञात कारणों से पुनर्निर्माण या जीर्णोद्धार उपरान्त गृह में प्रवेश करने पर होता है।
निष्कर्ष: वातावरण को शुद्ध करने और निवास को नकारात्मक ऊर्जाओं से बचाने के लिए किसी नव-प्रवेश परिसर / भवन के तत्वों का उचित संतुलन बनाकर संरक्षण, प्रसन्नता, उत्कृष्ट स्वास्थ्य और समृद्धि प्राप्त कर ही गृह प्रवेशम या गृह प्रवेश कहा जाता है।
शास्त्रोक्त गृह-प्रवेश का विधि व विधान।
कर्मकांड विशेषज्ञ वैदिक पूजारी, आचार्य, विप्र या भिग्य की उपस्थिति या अध्यक्षता में सदियों पुराने रीतिरिवाज और परंपरा को यथावत रखते हुए पारिवारिक प्रेम, आदर, भक्ति, समर्पण के साथ सदभाव से ग्रहस्थ जीवन में कल्याण, मंगल, तेजोवान स्वास्थ्य व शुभ फलों की प्राप्ति की संभावना को पुष्ट के लिए यथोक्त कुलारीतिनुसार खुशी और उत्साह के साथ अनुष्ठान पूर्ण किया जाता है, जिसमें परिवार के प्रधान को पूर्वाभिमुख बैठाकर कलश स्थापन के साथ मंगलाचरण स्वस्तिवाचन, गुरुवंदना, लक्ष्मी, गणेश अन्य शुभेक्छ देवों सहित पंचतत्वों और दसों दिशाओं से सम्बन्धी प्राकृक्तिक (दैवीय) शक्तियों का पूजन, सर्वदेव नमस्कार आदि कृत से संबंधित हर महत्वपूर्ण विधि और प्रक्रिया को सम्पादित कराते हैं। इस प्रकार गणेश, लक्ष्मी एवं कुबेर पूजन का विधान और प्रक्रिया पूरा होने के उपरान्त पूजक की इच्छानुसार पूजक के सुख शान्ति और वैभव पूर्ण सुखद जीवन की अभिलाषा पूर्ति हेतु श्री सूक्त का पाठ सम्पन्न कराकर सभी औपचारिकताएँ पूरी कराई जाती है।
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