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Pooja Path तिलक / तिलकोत्सव / फलदान उत्सव / वाग्दान पूजा / वचन दान संस्कार / प्रतिजा समारोह / अस्थायी विवाह


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संकलन : नीतू पाण्डेय तिथि : 18-06-2024

सामाजिक सबसे छोटी इकाई परिवार निर्माण में सद्‌गृहस्थ स्थापना का आरम्भ तिलकोत्सव से होता है। 

सामाजिक सबसे छोटी इकाई परिवार निर्माण की जिम्मेदारी उठाने वाले योग्य, मानसिक परिपक्व युवक-युवतियों का विवाह संस्कार के द्वारा सद्‌गृहस्थ स्थापना कराया जाता है। विवाह के प्रथम चरण वररक्षा के उपरान्त तिलकोत्सव प्रमुख दवितीय धार्मिक और सामाजिक उत्सव चरण है, इसे अस्थायी विवाह या प्रतिजा समारोह या फलदान उत्सव या वाग्दान संस्कार या तिलक या तिलकोत्सव या वचन दान संस्कार की संज्ञा दी जाती है। तिलकोत्सव सम्पन्न होने के बाद पारिवारिक दैविपक्षीय धार्मिक, समरसता, और परंपराओं को साझा करने की वचनबद्धता सुनिश्चित होती है। जिसके उपरांत किसी भी परिस्थिति में वैवाहिक संस्कार सम्पन्न होगा ही यह सुनिश्चित हो जाता है।

प्रिय गणमान्य जनों के साक्ष्य में परम्परागत लोकाचार सहित नए ग्रहस्थाश्रम की घोषणा तिलकोत्सव है।

इस उत्सव में शुभ मुहूर्त पर वधु पक्ष के सुहृदयी लोग / सहयोगियों / परिवार के साथ फल-फूल, अन्न, मिष्ठान्न, वस्त्र व मांगलिक द्रव्यों (पानपत्र, हल्दी, दूर्वा, सुपारी तथा सुवर्ण- रजत इत्यादि) के साथ वर पक्ष के आवास अथवा उत्सव स्थल पर जाकर, सभी अति निकटतम सगे संबंधी, इष्टमित्र, प्रियजन और शुभचिंतकों की उपस्थिति में बड़े धूमधाम से वधु भ्राता अथवा ज्येष्ठ परिजन द्वारा वर को विष्णु स्वरूप में मानते हुए पूजन इत्यादि कर परम्परागत तिलक का लोकाचार पूर्ण कर भावी दम्पत्ति के परिवारों के मध्य ही पारिवारिक प्रतिज्ञाबंध करते हुए नए ग्रहस्थाश्रम की घोषणा होती है अर्थात समस्त उपस्थित सम्भान्त गणमान्यों के सम्मुख विवाह की निश्चय प्रतिजा बन्धन की घोषणा ही तिलकोत्सव है।

तिलकोत्सव संस्कार के उपरान्त कर्तव्य या बन्धन बोध की उपेक्षा अथवा उनके प्रताड़ना की स्थिति में सभी साक्षी आदर्श भूमिका निभाते हैं।

सनातनी प्रतिज्ञा सदैव से ही धर्मानुष्ठान के मध्य देवी देवताओं के साक्ष्य में, सामाजिक सम्भ्रान्त व्यक्तियों, गुरुजनों, कुटुम्बीयों की उपस्थिति में ही लिया जाता है और तिलकोत्सव संस्कार प्रतिजा समारोह ही कहा जाता है, जिसमें  दोनों पक्षों में से कोई भी पक्ष अपने कर्तव्य या बन्धन बोध की उपेक्षा होने अथवा उसे रोकने अथवा उनके प्रताड़ना की स्थिति में सभी साक्षी आदर्श भूमिका निभाते हैं। कुछ लोकरीतियों में तिलक व विवाह के मध्य एक माह, एक पक्ष या एक सप्ताह का अंतर होता है, परन्तु कुछ लोकाचारों में विवाह के दिवस को ही तिलक चढ़ाने की प्रथा चल पड़ी है।

 तिलकोत्सव का शास्त्रोक्त विधि व विधान 

पारिवारिक स्तर पर परम्परागत वातावरण में वर को पूर्वाभिमुख विशेष आसन पर बिठाकर वधु पक्ष के पूजक (पिता, भाई आदि) पश्चिमाभिमुख आसीत होकर स्थापित वैदिका पर लौकिक रीति रिवाजों से कमर्काण्ड जानकार विप्र की अध्यक्षता में मंगलाचरण, षट्‌कर्म, कलश पूजन, गुरु वन्दना, गौरीगणेश पूजन, सर्वदेव नमस्कार, स्वस्तिवाचन आदि कृत के रचनात्मक सहयोग से व्यक्तिगत और सामूहिक दोनों ही ढंग से भाव संयोग को पुष्ट करने के उ‌द्देश्य से वर को यथोचित ढंग से अभिनन्दन पत्र देकर स्वागत पुष्पोपहार, स्वागत-सत्कार (पैर धुलाना, आचमन कराना तथा हल्दी दही से तिलक करके अक्षत लगाना) रस्म कराते हुए वर को गृहस्थी आरम्भ करने के निमित वस्त्र, आभूषण, बर्तन, मिष्ठान, थाल, थान, फलफूल, राजकीय द्रव्य इत्यादि अनेकों सामग्रियां संकल्प मंत्रों के साथ वर को प्रदान करायी जाती है और मंगलाचरण के साथ उक्त समारोह सम्पन्न कराया जाता है। इसके उपरांत भोजन विदाई अन्य औपचारिकताएँ वर, वधु के परिवार में आपसी सौहार्द से सम्पूर्ण होती है।

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