संकलन : नीतू पाण्डेय तिथि : 18-06-2024
सनातन संस्कृति में वाहन को भगवान गरुड़ (विष्णु के वाहन) का स्वरूप माना जाता है। जिनकी कृपा से वाहन को तकनीकी त्रुटियों, दुर्घटना व क्षति से बचाते हुए यात्राएं सुरक्षित, आनंदपूर्ण और सुखद होती हैं। अर्थात शुभता के साथ वाहन से जुड़ाव और सामंजस्य का अनुष्ठान ही भविष्य की त्रासदियों से बचाने में महत्वपूर्ण योगदान करता है। वाहन का मूल अर्थ वहन करने वाला साधन, जो किसी भी गन्तव्य तक पहुचाने में सहायक हो।
यदि किसी भी साधन से पूर्ण मानसिक और आत्मिक जुड़ाव हो जाये, तो यात्रा और जीवन दोनों ही सुखद होता है। पारंपरिक प्रथा में वाहन पूजन का विधान सामाजिक और धार्मिक मूल्यों को जीवंत रखने में संजीवनी देकर उन्हें प्रकाशित और सजीव कर वाहन को जीवन में सम्मानित करने का विधान मात्र है, किन्तु वैज्ञानिक दृष्टि से प्रकाश का सम्बन्ध दिशाओं से होता है, जिसमे सदा संचरण है और अंधकार एकाग्रता और गहनता को दर्शाती है, जिसमे ठहराव ही सम्भव हैं।
इस प्रकार वाहनों को पूजित कर वाहन के लिए भगवत कृपा एवं उनके प्रति सद्भाव पूर्ण आभार व्यक्त कर सामाजिक और धार्मिक दृष्टिकोण से वाहन की सुरक्षा और सुख समृद्धि की कामना का एक तरीका है। वाहन पूजा से वाहन को भी ईश्वरीय आशीर्वाद मिलता है, जिससे उसको भविष्य में किसी भी आपदा से बचाव मिले। इस प्रकार भविष्य में होने वाली दुर्घटनाओं से बचाने के लिए वाहन पूजा की जाती है। वाहन व्यक्ति को आराम और वैभव अनुभूति भी प्रदान करता है, जो बिना ईश्वरीय अनुकम्पा के दीर्घकाल तक स्थिर नहीं हो सकता है। इसलिए भी वाहन का सुख दीर्घ काल बना रहे, इस उद्देश्य की पूर्ति वाहन पूजा से संभावित होती है।
इस पूजा के माध्यम से वाहनों को सुरक्षित दिशा प्रदान करते हैं ताकि वे सुरक्षित रूप से स्थानांतरित होकर व्यवसाय (या सुरक्षा) के उद्देश्य से जीवन में अधिक से अधिक भाग्य और सफलता लाए। पूजा न केवल वाहनों की सुरक्षा बढ़ाती है, बल्कि उन्हें लंबे समय तक सुचारू रूप से चलाने के लिए प्रेरित भी करती है। शास्त्रों के विधि विधान अनुसार वाहन की पूजा से किसी भी यात्रा में व्यवधान नहीं आता है। सामान्यतः नए वाहन के क्रय पर ही पूजन का प्रचलन है, किन्तु वैदिक काल से ही किसी लक्ष्य की प्राप्ति हेतु यात्रा से पूर्व भी वाहन पूजन का विधान था, जो वर्तमान में समुचित ज्ञान के आभाव में लुप्त पर्याय है।
उपरोक्त तथ्यों को संज्ञान में लेकर पंडित जी गरुड़, वायु या पवन देव, पृथ्वी, शक्ति, प्राकृतिक उर्जा सरक्षण के देव- देवियों का आवाहन, पूजन व अन्य कर्म कांड विधि विधान के अनुसार पूर्ण कराते है, जिससे वाहन से यदि कोई हानि सम्भव हो, तो उससे पहले ही ईश्वरीय अथवा प्राकृतिक शक्ति के प्रभाव से वो न्यूनतम ही जाये।
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माँ सरस्वती के वीणा स्वरों से सृजनशीलता, मधुर ध्वनि, शब्द, कला संगीत और विवेक का संचार होता है। सृष्टि को और भी अधिक सजीवता व जाग्रति देने के लिए आदिशक्ति ने अपने तेज रूप से चार ...