संकलन : नीतू पाण्डेय तिथि : 18-06-2024
सृष्टि को और भी अधिक सजीवता व जाग्रति देने के लिए आदिशक्ति ने अपने तेज रूप से चार भुजाओं वाली देवी, जिनके एक हाथों में वीणा, दूसरे मे कमंडल, तीसरे में पुस्तक और चौथे में माला के साथ देवों की दुविधा समन के लिए उनके समक्ष एक श्वेत दिव्य प्रकाश को प्रकट किया, जिसमें आदिशक्ति के नवस्वरुप के दर्शन सम्पूर्ण जगत को मिला। नवस्वरुपा देवी ने जब देवताओं के अनुसार वीणा से स्वर को झन्क्रित किया, तो उस मधुर ध्वनि से सांसारिक जीवन में विवेक और सृजनशीलता आ गयी, शब्दों और कलाओं का संचार हो गया। तभी से संपूर्ण जगत में नवस्वरुपा के प्रकट होने के उल्लास में सरस्वती पूजा किया जाने लगा, जो वर्तमान में भी गतिमान है। वह तेज स्वरूप प्रकाश पुंज वाली देवी माँ सरस्वती वैदिक एवं पौराणिक देवियों में से हैं, जो माँ आदिशक्ति के आज्ञानुसार परमपिता ब्रह्मा जी की अर्धांगिनी बनी।
सनातन शास्त्रों में दो सरस्वती का वर्णन मिलता है, एक ब्रह्मा की अर्धआसनी सरस्वती एवं द्वितीय ब्रह्मा के जिव्हा से प्रकट होने से सरस्वती। किन्तु सरस्वती नाम, प्रकृति, स्वरूप, शक्ति में कोई भेद या मतभेद नहीं है। ब्रह्मज्ञान, विद्या, कला, गुणों की अधिष्ठात्री देवी मूल प्रकृति से उत्पन्न सतोगुण महाशक्ति त्रिदेवियों में से एक है। कुछ पौराणिक ग्रंथों मे सरस्वती जी को भगवान शिव की बहन मानते हुए इन्हे शिवानुजा का सम्बोधन भी दिया गया है, जिन्हें भारती, गिरा, महाश्वेता, शारदा और विंध्यवासिनी आदि अनेकों नामों से भी जाना जाता है। इनका ध्यान व पूजा भक्त को अज्ञान रूपी अंधकार से ज्ञान व विवेक रूपी प्रकाश की ओर प्रेरित करता है। सरस्वती कृपामात्र से ही जीवन में समृद्धि, बुद्धि और ज्ञान की प्राप्ति होती है। इस प्रकार माँ सरस्वती के अनुकम्पा की अभिलाषा सभी वैज्ञानिकों, शिक्षाविदों, कर्म-काण्डी कर्मियों, विद्यार्थियों, विद्या-प्रेमियों पठन-पाठन (कवि, लेखक ,चित्रकार ,कथाकार ,कलाकार ,पंडित, ज्ञानी, एवं वक्ता) से जुड़े सभी जन-साधारण को रहती है, क्योंकि बिना इनकी कृपा किए हुए ज्ञान-विज्ञान, विद्या अर्जन और अनुसंधानो को ब्रम्हाण्डिय प्रखरता, विकास और उन्नति नहीं मिल सकती है।
ज्ञान-यज्ञ की गंगा में बिना माँ सरस्वती को मानस पटल पर स्मरित किए हुए अमूल्य आहुति देना संभव नहीं है। ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में नये कीर्तिमान की ओर, एक कदम और आगे बढ़ने के लिए माँ सरस्वती की पूजा नितान्त आवश्यक होता है। मानव बिना माँ की अनुकंपा के ज्ञान प्राप्त नहीं कर सकता है। वास्तव में माँ सरस्वती जिन पर स्नेहवर्षा करती हैं, वह चिरंजीवी होकर अमरत्व को प्राप्त कर लेता है, ऐसा भाग्य सभी को सुलभ नहीं है। प्राचीनतम काल से ही श्री पंचमी के नाम से प्रचलित बसन्त पंचमी को विशेषकर ज्ञान पिपाशु व्यक्ति पीत अथवा रंग बिरंगे वस्त्र धारण कर बड़े मनोयोग और धूमधाम से ज्ञान, संगीत और कला का उत्सव पर्व मनाते हैं।
ऋतुराज बसन्त की पंचमी को ज्ञान की देवी माँ सरस्वती का अवतरण दिवस है। पौराणिक कथाओं के अनुसार कला, बुध्दि और ज्ञान के निरंतर प्रवाह का उद्घोष सरस्वती पूजा या बसन्त पंचमी या श्री पंचमी है। माँ सरस्वती के लिए वर्णित है कि विष्णु के अंशावतार श्री कृष्ण अतिप्रसन्न होकर उन्हें यह वरदान दिया था कि प्रत्येक वसंत पंचमी को विद्या तथा कला के रूप में देवी की पूजा होगी। बसंती यानि पीले रंग के रूप में शोभायमान यह पर्व समृद्धि, प्रकाश, ऊर्जा, संतुलन, सामंजस्य और आशीर्वाद का प्रतीक है। बसन्त ऋतु के सुहावन आगमन की सूचना मनुष्य ही नहीं, अन्य जीव-जन्तु, पेड़-पौधे भी खुशी से झूमते नाचते हुए दिखायी देते हैं।
सरस्वती पूजन के अवसर पर श्रद्धावनत होने वाले पाठशाला, विद्यालय और महाविद्यालय एवं उनके छात्रावास रंग- बिरंगी पताकाओ से सजाकर, पारंपरिक व्यंजन, पौष्टिक और स्वादिष्ट भोग अर्पित कर जीवन और कला में उनकी कृपा की प्रार्थना करते हैं।
समस्त देवों और सांसारिक आत्माओं का केंद्र रुद्र - सृष्टि के कर्ता, संहारकर्ता, पालनकर्ता हैं! रुद्रहृदयोपनिषद में समस्त देवो और संसारिक आत्माओ का केंद्र रुद्र को बताया गया है। सभी देवों की आत्मा रुद्र में हैं और ...
मर्यादा पुरुषोत्तम राम शांति, पुरुषार्थ, पराक्रम और सामाजिक मापदण्डों के लोक नायक चेतना हैं। (राम ही लक्ष्य हैं लक्ष्मण का , हनुमान जी के प्राण हैं) सनातन संस्कृति की आस्था और अस्मिता के मूल में राम बसते ...
गणेश व सिद्धि की पुत्री और शिव - पार्वती की पौत्री माँ संतोषी, मन को तृप्ति प्रदान करती हैं। सनातन संस्कृति में माँ संतोषी व्रत पूजा एक अत्यंत पावन, शक्तिशाली, महत्वपूर्ण एवं अद्वितीय धार्मिक प्रक्रिया है। ...