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Pooja Path संतोषी माता पूजा


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संकलन : नीतू पाण्डेय तिथि : 18-06-2024

गणेश व सिद्धि की पुत्री और शिव - पार्वती की पौत्री माँ संतोषी, मन को तृप्ति प्रदान करती हैं।

सनातन संस्कृति में माँ संतोषी व्रत पूजा एक अत्यंत पावन, शक्तिशाली, महत्वपूर्ण एवं अद्वितीय धार्मिक प्रक्रिया है। पौराणिक मतानुसार माँ संतोषी भगवान गणेश व सिद्धि की पुत्री और शिव - पार्वती की पौत्री है, जिनमें शिव - पार्वती समान बौद्धिक प्रखरता, अध्यात्म, संजीवनी शक्ति के साथ गणेश जी के गुण उन्नति, आनन्द, मनोविनोदी, निर्मल स्वभाव, उच्च मनोबल, धीर शान्ति और आरोग्यता विद्यमान है। जिससे भक्तों के जीवन में मन की शुद्धता, अपार आनंद, सफलता, सुख, संतुलन, समाज में प्रतिष्ठा, ऐश्वर्य का प्रवाह आता है। माँ संतोषी प्रेम, तृप्ति, क्षमा, प्रसन्नता, शांति, आशा, शक्ति, विश्वास, सम्पन्नता, समृद्धि और वैभव का प्रतीक है। माँ संतोषी मन को तृप्ति प्रदान कर सभी मनोकामना पूर्ण करने के साथ पारिवारिक मूल्यों को संजोने और संकट से बाहर आने के लिए प्रेरित करने वाली देवी हैं।

संतोषी माँ नारी शक्ति की अमूल्य भूमिका और अद्वितीय योगदान को पुष्ट करती है।

संतोषी माँ का कमल आसनी अथवा कमल विराजित रहने की विशिष्ट मुद्रा देवी लक्ष्मी (श्री) की छवि को प्रतिबिंबित करती है साथ तलवार और त्रिशूल धारण रखने की शैली दिव्य माता दुर्गा के पारंपरिक गुण हैं। अर्थात  संतोषी माता को दुर्गा और लक्ष्मी के निर्मल स्वरुप का संयुक्त पुण्य प्रताप प्रतीक माना जाता है| पारिवारिक मूल्यों को संरक्षित और वृद्धि का विशेष गुण नारी शक्ति में ज्यादा होती है, इसलिए माँ संतोषी पूजा नारी शक्तियों के लिए महत्वपूर्ण, अधिक शक्तिशाली, हितकारी और परिणामी है। माँ संतोषी व्रत पूजा धार्मिकता के साथ साथ सामाजिकता में नारी शक्ति की अमूल्य भूमिका और अद्वितीय योगदान को पुष्ट करता है।

माँ संतोषी की भक्ति हिंसावादिता, दुर्बुद्धि, दुराचरण, भ्रष्टाचार, क्रूरता से लड़ने का साहस उपजता है।

माँ संतोषी अपने भक्तजनो को सदैव सद्भाव, सृजनशीलता, सौम्यता के साथ सांसारिक जगत में व्याप्त दुर्बुद्धि, दुराचरण, भ्रष्टाचार, क्रूरता और हिंसावादिता से लड़ने का साहस प्रदान करती हैं। माँ संतोषी के चार हस्तो में दण्ड, दया, वैभव, आशीर्वाद संरक्षित है, जिसे भक्ति, उपासना, पूजा, अर्चना कर पाया जा सकता है। यह संरक्षित शक्तियां बुरी शक्तियों का समापन कर सच्चाई और सत्कार्यों की सभी रुकावटो को विलोपित कर भक्तो को शान्त, सौम्य, सुन्दर और मन्त्रमुग्ध करती है। वास्तव में माँ संतोषी सरक्षण, सुरक्षा, और संवर्धन की प्रत्यक्ष दैवीय चेतना है। जिसको पाने लिए कठोर साधक होना पड़ता है, इच्छाओं का त्याग भी करना पड़ता है। यदि मानुष अपनी जिव्हा पर थोड़ा भी नियंत्रण प्राप्त कर ले, तो उसकी सांसारिक समस्याएँ स्वतः ही आधी रह जाती है। मनुष्य के जीवन में उसका गुण, स्वभाव और चरित्र उतना कष्ट नहीं देता है, जितना उसकी जिव्हा से उच्चारित स्वर वेदना देते है। अनियंत्रित खानपान ही जिव्हा का प्रथम दोष होता है और अनियंत्रित जिव्हा से ही सांसारिक ईष्या, क्रोध, लोभ वैमस्यता और दारुण कष्ट उपजते हैं।

माँ संतोषी पूजन का शास्त्रोक्त विधि व् विधान

दारिद्य, संताप, करुणकष्ट निवारण और वैभव, सुख, समृद्धि और सौभाग्य प्राप्ति के लिए 16 शुक्रवार का व्रत संकल्प पूर्ण कर उद्यापन किया जाता है, जिसमें खट्टे पदार्थ का सेवन पूर्णतया वर्जित होता है। कपटी ह्रदय में माँ संतोषी का निवास सम्भव नहीं हैं अर्थात पाखंडी मन के साथ माँ के प्रति सच्ची श्रद्धा नहीं आ सकती है, उसके लिए शांत, निर्मल और विशुद्ध स्वाभाव की नितान्त आवश्यकता होती है। ऐसी  मान्यताएं हैं कि लगातार 16 शुक्रवार व्रत (उपवास) और उपासना करने से किसी के परिवार में शांति और समृद्धि आ सकती है।

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