संकलन : नीतू पाण्डेय तिथि : 18-06-2024
शैव धर्मानुसार बंधन रुपी मृत्यु लोक में सभी प्राणियों की आध्यात्मिक मुक्ति के साधन से जोड़ने वाले शिव की मनोरंजक ऊर्जा, शक्ति अवतार एवं सांसारिक मातृत्व की सार्वभौमिक महादेवी गौरी (पार्वती या उमा) शक्ति, ऊर्जा, पोषण, सद्भाव, प्रेम, सौंदर्य, भक्ति का भौतिक प्रतिनिधित्व करती हैं, जिन्हें ब्रह्मांड के पार्श्व मौलिक निर्माण, निर्माता और विध्वंसक के आदिशक्ति के रूप में परिभाषित किया जाता है। उन्मुख संप्रदाय की केंद्रीय दैवीय चेतनाओं में से शक्तिवाद, प्रतीकवाद, विनाशकारी, सर्वोच्च ब्रह्मशक्ति, दिव्य ज्ञान और वैदिक अवतारी देवियों का मिश्रित संदर्भ आदि देवी गौरी (पार्वती या उमा) हैं। गणेश, कार्तिकेय, अशोक सुंदरी व कई अन्य देवताओं की माता गौरी (पार्वती या उमा) ने पति शिव के साथ कई दिव्य अवतार रूप धारण किए हैं, जिनका उल्लेख पुराणों से विदित है कि लक्ष्मी और सरस्वती के साथ पुरुष रूपी शिव की शक्तिशाली ऊर्जा एवं दिव्य आदित्ययमान दैवीय चेतना त्रिदेवी और विध्वंसक (डरावने) रूप में दुर्गा, काली, दस महाविद्या और नवदुर्गा जैसे स्वरूप सज्जनों, धर्मों, उत्तम वृत्ती के प्राणियों की रक्षाकवच रूपी माँ और दुष्ट, अधर्मी, निकृष्ट व पाखंडियों के लिए भय का पर्याय भी निर्माण करती हैं।
अनन्त संतान प्रदान एवं पालन करने वाली मातृदेवी गौरी सौंदर्यपूर्ण आध्यात्मिकता, साहसी, गौरवशाली, उज्ज्वल चरित्र, दिव्यता और उत्तम शक्ति की प्रतिष्ठा प्रतीक रूप में प्रसिद्ध हैं। अपराजितपीठ नामक ग्रन्थ में पार्वती व द्वादशा गौरी का उल्लेख मिलता है। संस्कृत शब्दकोष के अनुसार गौरी का अर्थ गोरी चमकीले रंग की पवित्र कन्या, जो निर्दोष, सरल, सहज और उर्जावान हो, लेकिन इनके अन्य अर्थ भी हैं जैसे- पृथ्वी, वरुण की पत्नी, तुलसी का पेड़, मल्लिका (जायची बेल) भी उल्लेखनीय हैं। ज्येष्ठा, पार्वती, उमा, शैलपुत्री, हिमाचली, शंकरी, अपर्णा, शैलजा, महेश्वरी, ललितात्रिपुर सुन्दरी, अंबिका, आदिशक्ति, दुर्गा, भैरवी, भवानी, शिवरादनी, उर्वी (रेनू), कामाक्षी, रुद्राणी, हैमवती और गिरिराजपुत्री इत्यादि नामों से भी प्रख्यापित किया गया है, किन्तु पुराणों में पार्वती का सौम्य व शान्त पत्नी स्वरूप को ही गौरी वर्णन दिया गया है अर्थात् शिव जी की अर्धांगिनी गौरी का प्रमुख नाम पार्वती या उमा ही है। उन्हें कामरूपा (प्रत्येक इच्छाओं का अवतार) और कामेश्वरी (इच्छाओं की पूर्णता) के नाम से भी जाना जाता है।
पौराणिक शास्त्रोक्त देवी लक्ष्मी सृष्टि संचालक विष्णु की पत्नी हैं, फिर भी गौरी जी को ही महालक्ष्मी कहा गया है। अर्थात अनादिकाल से ही लक्ष्मी से अपेक्षाकृत अधिक समर्थ और प्रभाववान दैविय शक्ति और चेतनाओं से परिपूर्ण दैविक स्वरुपा शिवशक्ति गौरी जी को प्रथमेश गणेश की बुद्धि संचालिका ही माना जाता है। इसीलिए पूजन प्रक्रिया में गौरी-गणेश एक साथ ही पूजित करने का विधान दिखता है। महादेव शिव को अपनी भक्ति व तपस्या से सदैव प्रसन्न रखने वाली, शिव संग घुटने पर बालक गणेश और पास क्रीड़ारत स्कंद के साथ अभय मुद्रा गौरी जी सदैव से ही आशीर्वाद, श्रद्धा और प्रेम, सुंदर, मधुर, रूपी माँ प्रतीक रूप में चित्रित है, जिसमें वे सौभाग्य व प्राकृतिक सुंदरता का प्रतीक श्वेत वस्त्र धारणकर अपनी भक्ति, प्रेम और समर्पण को प्रकट करते हुए सपरिवार प्रतिष्ठित, खुशहाल, सौम्य, संतुष्ट और पूर्ण तृप्त दैवीयशक्ति का सौम्य स्वरूप गौरी को निष्पक्ष, सुंदर और परोपकारी के रूप में शिव संग दो भुजाओं वाली, किन्तु एकल परिस्थितियों में चार भुजाओं वाली का चित्रण दर्शित होती हैं। पुराण पाठ में शिव के विभिन्न रुद्ररूप एवं अग्नि संयोजन के पर्याय में पत्नि रूप में संयोजिका पार्वती का वर्णन किया जाता है।
कृषि आरम्भ से पूर्व माँ ज्येष्ठा गरीबी और आभाव की कमी को सुधारने वाली और कृषि के समापन पर माँ गौरी समृद्धि और धन से जीवन को भरने वाली दो स्थितियों की प्रतीक के साथ बुद्धि व विकास के देवता (गणेश) को साथ ही बैठाया जाता है। विशेष रूप से देवी उर्वरता की गौरी को सम्मान में कभी-कभी पकी हुई फसल के समान सुनहरे या पीले रंग की त्वचीय रूप में दर्शाया जाता है। इसी आधार पर केवड़ा फूल को गौरी रूप में पूजा जाता है। मां ज्येष्ठा गौरी, अन्नपूर्णा नाम से भी पूजित होती है। ज्येष्ठा गौरी से भूख, प्यास, अपवित्रता (बर्बादी), शून्यता (उन्नति न होना), ठहराव (अभूति), दरिद्रता, असमृद्धि, गृहक्लेश और रोग व्याधियों को घर से सदैव के लिए निरुद्ध (निकाल देने) करने की प्रार्थना की जाती है। ब्रह्मांड की सक्रिय सहचरी शिवशक्ति गौरी रूप को अनेको भूमिकाओं, मनोदशाओं, विशेषणों और पहलुओं में प्रतीकात्मक कई हस्त मुद्राओं को प्रोत्साहन, पौरुष, स्वतंत्रता और बल के साथ-साथ पोषणकारी एवं परोपकारी, विनाशकारी और क्रूर कटक - आकर्षण और जादू के प्रतिनिधित्व रूप में व्यक्त किया गया है। उसकी भूमिका परिस्थितियों के अनुरूप अनुकूल प्रतिरोध शक्ति और प्रतिशोधात्मक न्याय का मां रूप में दृढ़ संकल्प हैं। मानवीय शक्तियों और कमियों के साथ जन्म लेकर तपस्वी शिव से विवाह के दृढ़ संकल्प की अपनी दृढ़ता, महान शक्ति, क्षमता और प्रयास के प्रताप से स्वयं को त्रिदेव पूजनीय देवी आदिशक्ति के रूप में जागृत कर ब्रह्मांड में मानवीय उच्चतम क्षमता के उपयोग का गौरव पूर्ण जीवन जीने के लिए प्रेरणा पुंज हैं।
विवाहित और अविवाहित स्त्रियाँ अपने परिवार की सुरक्षा और पतियों की लंबी आयु, सुख, समृद्धि और सम्पन्नता की कामना से गौरी के प्रति आत्मिक उत्साह, भौतिक संतोष भक्ति, श्रद्धा और समर्पित भाव से विशेष गौरी पूजा और आराधना करती हैं। इस पूजा के माध्यम से विधवा स्त्रियों को भी रक्षाशक्ति प्राप्त होती है। विभिन्न रूपों और नामों का उल्लेख पुराणों, कविताओं और गानों में मिलता है, जो गौरी पूजन हेतु विवाहित महिलाएं सुख-समृद्धि और सौभाग्य प्राप्ति के लिए व्रत रखती हैं। अग्नि पुराण के अनुसार सामूहिक रूप में विधि विधान से गौरी पूजा की पूजा सर्वोत्तम और अतिलाभकारी कही गई है और उर्वरता, प्रचुरता और पोषण की देवी को अर्पित बहु भांति व्यंजन की परंपरा समृद्धि और खुशहाली का भी प्रतीक माना जाता है। गौरी जी की महिमा और कृपा का गुणगान समर्पित भाव से आरती, चालीसा, और भजनों का पाठ करने से पीड़ित भक्तों की सभी बुराईयों से रक्षा होती हैं। जिनके कृपा प्रभाव से भक्त के जीवन में सुख, सौभाग्य, समृद्धि, और शांति की प्राप्ति होती हैं।
भैरव जी - शिव के विनाश से संदर्भित पंचम परम ब्रह्म उग्र वशीकरण अंशावतार हैं। भैरव पूजा अलग-अलग नामों से प्राय: सम्पूर्ण भारत, श्रीलंका, नेपाल और तिब्बती के अलग-अलग अंचलों में भयदायी और उग्र देवता के ...
गरुड़ पुराण को अठारह पुराणों में सर्वाधिक महत्ता के कारण महापुराण भी माना गया है। सनातन संस्कृति के वैष्णव सम्प्रदाय में मृत्योपरान्त सद्गति प्रदान करने वाले गरुण पुराण को ही महापुराण भी माना गया है, जिसके ...
प्राकृतिक सत्य के शुभ आभास को पिंडात्मक स्वरूप/रूप में आकृति मिलना मूरत (मूर्ति) है। प्रकृतिक प्रदत्त सत्य को आकृति मिलना ही मूरत (मूर्ति) कहलाता है, जिसको किसी भी ठोस को पिंडात्मक स्वरूप या रूप देकर भौतिक ...