संकलन : नीतू पाण्डेय तिथि : 18-06-2024
सनातन संस्कृति के वैष्णव सम्प्रदाय में मृत्योपरान्त सद्गति प्रदान करने वाले गरुण पुराण को ही महापुराण भी माना गया है, जिसके अधिष्ठात्री देव भगवान विष्णु हैं। इसलिए गरुण पुराण को वैष्णव पुराण भी कहा जाता है। परंपरा में सभी महापुराणों के समान ही इस पाठ का श्रेय भी ऋषि वेद व्यास को दिया जाता है। गरुड़ पुराण की अठारह पुराणों में सर्वाधिक महत्ता है। गरूड़ पुराण में विष्णु भक्ति व उनके चौबीस अवतारों का विस्तार से वर्णन है। इसका नियमित पाठ विशेष धार्मिक अवसरों, श्राद्ध और मृत्यु संस्कारों में आत्मा की शांति और पितरों की तृप्ति हेतु शुभ माना जाता है।
गरुण पुराण में ब्रह्माण्ड विज्ञान, पौराणिक कथाएं, जीव व देवता के बीच का संबंध, नैतिकता, अच्छाई बनाम बुराई, सनातनी दर्शन की विभिन्नताएं और विविधताएँ, योग का सिद्धांत, पैतृक संस्कार, मोक्ष शास्त्र, कर्म और पुनर्जन्म के साथ स्वर्ग और नरक के सम्मिलित सिद्धांत, भक्ति, ज्ञान, वैराग्य, सदाचार, निष्काम कर्म के माहात्म्य के साथ सर्वसाधारण को सद्भाव की ओर प्रवृत्त करने के लिये यज्ञ, दान, तप तीर्थ आदि शुभत्व कर्मों से अनेक लौकिक और पारलौकिक पुण्य फल वर्णित किये गए है।
संक्षेप में गरुण पुराण आत्मज्ञान की विवेचना का मुख्य विषय है, जिसमें मृत्यु, मृत जीव के अन्त्येष्टि कृत्यों, परलोक के विषय में विस्तार से चर्चा का वर्णन करते हुए पितृ कर्म, आयुर्वेद, नीतिसार आदि विषयों को निरूपित किया गया है। इस निरूपण में मनु से सृष्टि में मनुष्य की उत्पत्ति, ध्रुव चरित्र, बारह आदित्यों की कथा, सूर्य व चन्द्र ग्रहों के मंत्र, शिव पार्वती मंत्र, इन्द्र से आदि देव मंत्र, सरस्वती मंत्र और नौ शक्तियों का विस्तारित बखान करते हुए श्राद्ध, तर्पण, मुक्ति के उपायों तथा जीव की गति का विस्तृत वर्णन मिलता है। इसलिये मृत्योपरान्त सद्गति हेतु अच्छाई और पवित्रता का प्रतिनिधित्व गरुड़ पुराण के श्रवण का प्रावधान है।
गरुण पुराण पाठ में ध्रुव, बारह आदित्यों सूर्य, चन्द्र ग्रहों, शिव पार्वती, इन्द्र, देवी सरस्वती और नौ शक्तियों, यम व पित्र ध्यान व आवाहन कर सूक्ष्म षट्कर्म कराते हुए प्रेतकल्प का विस्तारित वर्णन करते हुए गरुण पुराण पाठ याचक के इच्छानुसार पूर्ण कराकर सम्पन्न कराते हैं।
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