संकलन : नीतू पाण्डेय तिथि : 18-06-2024
अर्ध-दिव्य यक्षों के देवता - राजा कुबेर को कुवेरा, कुबेरन और धनपति देवता इत्यादि नामों से जाना जाता है| बौद्ध धर्म में इन्हें वैश्य और जैन धर्म में सर्वानुभूति के नाम से भी जाना जाता है। वैदिक युगीन ग्रंथों में रावण के ज्येष्ठ भ्राता कुबेर को बुरी आत्माओं के नियंत्रता के रूप में देव का दर्जा दिया गया है| इन्हें देवताओं के धन का कोषाध्यक्ष के साथ ही संसार का रक्षक (लोकपाल) और उत्तर दिशा का शासक माना जाता है।
सृष्टि निर्माण के समय ब्रह्मा जी ने सबसे पहले दिशाओं की रचना की और अपनी पुत्रियों के रूप में सभी दसों दिशाओं के लिए दस कन्याएं भी निर्मित किया। कालान्तर में इन कन्याओं में से उत्तर दिशा का प्रतिनिधित्व करने वाली कन्या उत्तरा का विवाह कुबेर जी के साथ कर दिया गया। जिसके बाद उत्तर दिशा के लोकपाल अथवा दिगपाल बनाए गए। ग्रंथो में इन्हें कई अर्ध-दिव्य प्रजातियों का अधिपति और सांसारिक के सम्पदाओं का स्वामी के रूप में महिमा मण्डित किया गया है।
कमल के पत्तों के समान रंग और बड़े पेट वाले बौना बलिष्ठ व ह्रष्ट पुष्ट दैहिक गठन, तीन पैर, केवल आठ दाँत, एक आंख, रत्नों व आभूषणों से सुसज्जित, हाथ में "अमृत पात्र", धन-पात्र और गदा धारण किये हुए और रत्नों का ढेर, नेवला के साथ कुबेर का चित्रण मिलता है, लेकिन पौराणिक ग्रंथों में टूटे हुए दाँत, तीन पैर, तीन सिर और चार दाँत जैसी विकृतियों का वर्णित है। कुबेर अपने हाथ में गदा, अनार या धन की थैली रखते हैं। तिब्बत में नागों पर नेवले की जीत का प्रतीक मानते हुए कुबेर की सम्पदा का संरक्षक भी माना जाता है| बौद्ध प्रतिमा में कुबेर को नेवले के साथ ही चित्रित किया जाता है।
वैदिक ग्रंथों के अनुसार लंका पर कुबेर शासन था, जिसे सौतेले भाई रावण ने हठात छीना और उन्हें वहां से उखाड़ फेंका, जिसके उपरान्त हिमालय के अलका शहर में कुबेर की नगरी स्थापित की, जिसका "महिमा" और "वैभव" वर्णन कई ग्रंथों में संग्रहीत हैं। क्रिया मूल कुम्बा से कुबेर नाम लिया गया है, जिसका अर्थ छिपाना है, किन्तु संस्कृत सिद्धांत से पता चलता है कि कुबेर को कू (पृथ्वी) और वीरा (नायक) के रूप में भी विभाजित किया गया है। ऐसा माना जाता है कि कुबेर देव धरती में दबे हुए खजाने की रक्षा करते हैं।
धन के अधिपति कुबेर की शास्त्रोक्त विधि-विधान से प्रत्येक माह की शुक्ल पक्ष त्रयोदशी तिथि को पूजन करने से कभी धन संपत्ति की कमी नहीं रहती है| शास्त्रों में सोने की प्रतिमा बनाने का विधान है किंतु आर्थिक स्थितिनुसार प्रतिमा का चयन कर भक्ति भावना और समर्पण कुबेर पूजन सर्वोपरि समझा जाता है। लक्ष्मी गणेश जी के साथ कुबेर पूजा बहुगुणी और सिद्धिदायक ही माना जाता है।
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