संकलन : नीतू पाण्डेय तिथि : 18-06-2024
द्वापर युग में भोजवंशी मथुरा के राजा उग्रसेन के आततायी पुत्र कंस के अत्याचार से पीड़ित बहन देवकी और वासुदेव की 8 वीं संतान रूप में कृष्ण मथुरा के कारागार में जन्मे थे, किन्तु पालक माता-पिता गोकुल के नन्द एवं यशोदा जी द्वारा लालन पोषण हुआ। सामान्य जीव के लिए जो सम्भव नहीं होता, ऐसे विलक्ष्ण कार्य श्रीकृष्ण ने बाल्यावस्था में ही सम्पादित कर दिए थे, जिसमें राक्षसी पूतना, शकटासुर, तृणावर्त आदि राक्षसों का वध सम्मिलित है।
युवावस्था से पूर्व ही कृष्ण गोकुल छोड़ नंदगाँव आ बसे, जहाँ उन्होंने अनेको प्रेरणादायक लीलाएं की और युवावस्था में अपने मामा मथुरा के राजा कंस का वध कर सुव्यवस्था स्थापित किया। लीलाओं में गोचारण लीला, गोवर्धन लीला, रास लीला इत्यादि प्रमुख है। तत्पश्चात पांडवों की विभिन्न संकटों से रक्षा करने के उद्देश्य से कुरुक्षेत्र के महाभारत युद्ध में कृष्ण ने अर्जुन के सारथी की भूमिका निभाते हुए रणक्षेत्र में पांडवों को जयश्री का परिणाम दिलाने के पश्चयात सौराष्ट्र में द्वारका नगरी की स्थापना कर अपना राज्य बसाया। भाद्रपद मास कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि रोहिणी नक्षत्र की मध्य रात्रि कृष्ण के अवतरण दिवस को कृष्ण जन्माष्टमी या जन्माष्टमी के नाम से जाना जाता है।
भारतीय ग्रंथों के अनुसार सभी सौ पुत्रों के समापन पर कृष्ण की संवेदना के प्रतिउत्तर में गांधारी ने उन पर आरोप निरूपित किया कि कृष्ण ने जानबूझ कर युद्ध को समाप्त नहीं होने दिया और सौ पुत्रों का वध करवाया, इसी क्रोध और दुःख में गांधारी ने कृष्ण को श्रापित किया कि उनके भी "यदुराजवंश" का प्रत्येक व्यक्ति उनके साथ ही नष्ट होगा। जिसके प्रभाव से एक उत्सव के मध्य यदुवंशीयों के आपसी मनमुटाव से उत्पन्न एक युद्ध में सब एक-दूसरे का नरसंहार कर यदुवंश का विनाश कर देते हैं।
मानसिक रूप से आहत एकान्त वास के दौरान वृक्ष के नीचे विश्राम कर रहे 124 वर्षीय कृष्ण को हिरण समझकर, जरा नामक शिकारी ने तीर से घातक प्रहार किया, जिसके परिणाम से घायलावास्था में कृष्ण देहत्याग यौगिक एकाग्रता के प्रभाव से विष्णु रूप में वैकुण्ठ धाम चले गए। जिसे भालका तीर्थ स्थल (गुजरात में) या देहोत्सर्ग नाम से भी जाना जाता है। भागवत पुराण के अध्याय 31 के अनुसार प्रतीक्षारत ब्रह्मा और इंद्र जैसे देवताओं को भी कृष्ण के मानव अवतार को त्यागने और वैकुण्ठ धाम वापसी का पता ही नहीं लगा|
विष्णु का अष्टम अवतार श्रीकृष्ण को सोलह कला में निपुण माना जाता है, इन्हें कन्हैया, माधव, श्याम, गोपाल, केशव, द्वारकेश या द्वारकाधीश, वासुदेव युगपुरुष या युगावतार आदि नामों से भी पुकारा जाता है। कृष्ण निष्काम कर्मयोगी, आदर्श दार्शनिक, स्थितप्रज्ञ एवं दैवी संपदाओं से सुसज्जित देवपुरुष हैं। महर्षि वेदव्यास रचित श्रीमद्भागवत और महाभारत में कृष्ण का चरित्र विस्तृत रूप से लिखा गया है। कृष्ण की लीला मुक्ति के साधन रूप में मानव और भगवान के बीच प्रेम एवं आध्यात्मिक सर्वोच्च जीवन धर्म शास्त्र है। दर्शन, सांख्य, तत्व मीमांसा और भक्तियोग जैसी वेदान्त शब्दावली का एक मिश्रण भगवदगीता है।जो ईश्वर के सर्वाधिक मानवीय रूप कृष्ण की शिक्षाओं को बढ़ावा देती है।
कुरुक्षेत्र के महाभारत युद्धक्षेत्र में विश्वरूप दिखाकर कृष्ण और अर्जुन संवाद या उपदेशों में उपजा विवरणित ब्रह्मांड विघटन की अलौकिक कृष्ण के उपदेशों का भाष्य (टिप्पणी) ग्रंथ भगवद्गीता आज भी पूरे विश्व में लोकमान्य एवं लोकप्रिय है। राधा और कृष्ण के अविरल दिव्य प्रेम प्रतीक को राधा संग, मित्रता प्रतीक कृष्णा सुदामा संग, कर्तव्य बोध में कृष्ण को रुक्मिंणी संग और कृष्ण को ओडिशा में जगन्नाथ, महाराष्ट्र में विट्ठल या विठोबा, राजस्थान में श्रीनाथ जी, गुजरात में द्वारकाधीश और केरल में गुरुवायरुप्पन के नाम से पूजा जाता है।
कृष्ण शब्द के कृष् धातु का एक अर्थ है खेत जोतना, या आकर्षित करना। समग्र संसार के प्राण कृष्ण, प्रत्येक प्राणी को अपनी ओर आकर्षित कर लेते हैं, विश्व के सभी आत्मतत्वों में मैं सजीव रहता है, इसीलिए कृष्ण का अस्तित्व मैं में है। अर्थात मै ही परमात्मा रूप में परिवर्तन, क्षणिक, क्षीण, अभिव्यक्ति, स्थूल, भौतिक तथा सब में एवं सभी में अक्षय काल यानी शाश्वत समय है। जिस कारण जीवन की प्रयत्नशीलता, अविरल धारा, सतत प्रवाह, सम्भवनाओं में कृष्ण बसते है, जिनका समस्त जड़ चेतन घट-घट पदार्थ पर प्रभाव रहता है। कृष्ण के चंचल, नटखट बचपन की सुंदरता समान भाव से सभी को आकर्षित और प्रभावित करते हुए मन मोह लेती है, किन्तु कालातीत आस्था के सबसे बड़े वक्ता और सनातन संस्कृति के महान व्याख्याकार कृष्ण के ध्यान मात्र से ही करुणा, आनन्द, विश्वास, आत्मविश्वास और आत्म-ज्ञान उपजता है, जिसके प्रभाव से कृष्ण का पूजन पाठ भ्रष्ट गतिविधियों पर अंकुश लगाकर विचारों को गति, मन की शान्ति, अनियंत्रित मानसिक चेतना को सुधार कर प्राणी में दृढ़ता उत्पन्न करता है।
प्रकृतिक जीवचक्र व उर्वरा में सात्विक और सकारात्मक वृद्धि का पर्यावरण व प्रकृति सेवा का एक नाम - गोपाल नाम! अधिकांश ऋषि मुनियों द्वारा कृष्ण की स्तुति गोपाल नाम से की जाती है, क्योकि एक गौ ...
वास्तु दोष का तात्पर्य वास्तु शास्त्र के परिप्रेक्ष्य में एक अहम विषय गृह या निवास स्थल है, जिसमें वास्तु शब्द की रचना दो शब्दो का संयोजन है 1.वसु 2.अस्तु। वसु का तात्पर्य है बसना या रहना, ...
गृह-वास्तु पूजा / गृह-शुद्धि अनुष्ठान । वास्तुदेव पूजा । गृह-वास्तु । गृह-जागरण पूजा का तात्पर्य वास्तु शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है - वसु अस्तु। 1. वसु का अर्थ है निवास करना या जीना एवं ...