संकलन : नीतू पाण्डेय तिथि : 17-06-2024
वास्तु शास्त्र के परिप्रेक्ष्य में एक अहम विषय गृह या निवास स्थल है, जिसमें वास्तु शब्द की रचना दो शब्दो का संयोजन है 1.वसु 2.अस्तु। वसु का तात्पर्य है बसना या रहना, और अस्तु का अर्थ होना या अनुभूत करना। निवास करने में दोष के ना होने पर सदैव सुख-सुविधा, संपन्नता और सकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव बना रहता है, किन्तु जब कही भी निवास करने में निरंतर घरेलू कलह, आर्थिक बदहाली, मानसिक तनाव, वाद-विवाद, बाहरी साया, संघर्ष, संताप, कष्ट, समस्या अथवा दोष की अनुभूति तीव्रता से होने लगे, किसी भी भवन में विभिन्न कारणों से सभी सदस्यों को शारीरिक, मानसिक, आर्थिक हानि भी उठाने के साथ वृद्धि, समृद्धि रूकी हुई हो, जीवन में सुख-शांति का आभाव उत्तरोतर बढ़ रहा हो, तो वहाँ वास्तु दोष ही माना जाता है।
दोष के निराकरण हेतु उक्त स्थल अथवा निवास स्थली के शुद्धिकरण व पुनर्जागरण की परम आवश्यकता होती है। परिवार के लोगों के बीच सामंजस्य, अच्छे स्वास्थ्य और समृद्धि को बनाए रखने के लिए जीवन और परिवेश की गुणवत्ता में सुधार व संतुलन बनाए रखने का एक तरीका वास्तु पूजा है। वास्तु पूजा जीवन स्तर को बढ़ाने में आर्थिक, सामाजिक और आध्यात्मिक दृष्टि से नकारात्मक ऊर्जा को नष्ट कर निवास को शुभ और सकारात्मक बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। जिनका प्रभाव निवास की ऊर्जा और वातावरण विश्वसनीय होता है। जीवन की गुणवत्ता में सकारात्मकता और समृद्धि सुधार के लिए आध्यात्मिक और धार्मिक प्रक्रिया है।
प्राचीन सनातन परंपरा में गृह वास्तु दोष निवारण पूजा, गृह शोधन की अनूठी पद्धति धार्मिक होने के साथ-साथ सांस्कृतिक व वैज्ञानिक महत्व भी रखता है। जिसका लक्ष्य अंदर-बाहर के अलग-अलग गृह क्षेत्रों के रक्षक व आत्मा (वास्तु पुरुष) से वायु, अग्नि, जल, पृथ्वी और प्रकृति के स्वामी को प्रार्थना श्रद्धांजलि अर्पित कर उक्त स्थान के नकारात्मक प्रभावों को परिवर्तित या हटाकर प्राकृतिक सकारात्मक ऊर्जा व शक्तियों को बढ़ाने के साथ जीवन के बीच एक सामंजस्यपूर्ण संतुलन प्राप्त करने के लिए गृह में निवासित सभी देवी-देवताओं के प्रसन्नता का प्रभावशाली अनुष्ठान वास्तु पूजा प्राविधान कर आयोजित किया जाता है।
शास्त्र के अनुसार विशेष विधि और विधान के अनुरूप ही ग्रह, नक्षत्र, दिशाएं और वास्तु शास्त्र के सभी मुख्य तथ्यों का सूक्ष्मता से ध्यान निवास के नक्षत्रिय, प्राकृतिक, वातावरणीय व अन्य मौजूद उर्जा तरंगो के नकारात्मक प्रभाव को निष्प्रभावी करने की प्रक्रिया पूर्ण होती है, जिससे जीवन शैली में अंतरिक्ष ऊर्जा का सकारात्मक शक्तिशाली परिवर्तन या सकारात्मक प्रवाह आ सके।
ब्रह्माजी ने वास्तु पुरुष की प्रार्थना पर मानव कल्याण के लिए वास्तु शास्त्र के नियमों की रचना की थी, जिनके निर्धारित नियामको का पालन कर प्राणी सामंजस्यपूर्ण वातावरण बनाकर सुखपूर्वक परिवार का पालन-पोषण कर सकें। गृह शुद्धता के उपरान्त गृह रक्षक प्राकृतिक और दैविक शक्ति,विष्णु-लक्ष्मी जी सहित गणपति कुबेर और वैभव प्रतीक सभी देव-देवियो का आवाहन-पूजन कराते हुए पंच तत्व और दसो दिशाओ का बन्धन क्रिया को कराकर सभी देवो को ह्वय (हवन) समर्पित करवा जाता है। जिससे निवास स्थली पर सुख-शान्ति के साथ जीवन गति पुनः संचारित हो जाए और उक्त निवास स्थल पर ईश्वरीय (प्राकृतिक) शक्तियों की कृपा से हानि की सम्भवना न्यूनतम हो जाए।
गृह-वास्तु पूजा / गृह-शुद्धि अनुष्ठान । वास्तुदेव पूजा । गृह-वास्तु । गृह-जागरण पूजा का तात्पर्य वास्तु शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है - वसु अस्तु। 1. वसु का अर्थ है निवास करना या जीना एवं ...
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