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Pooja Path तुलसी विवाह


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संकलन : नीतू पाण्डेय तिथि : 31-05-2024

तुलसी, घर की जाग्रत देवी  

आयुर्वेद के अनुसार तुलसी औषधीय गुणों की दृष्टि से संजीवनी बूटी एक विलक्षण पौधा है और इसके पत्तों में संक्रामक रोगों को रोकने की अद्भुत शक्ति विद्यमान है। नियमित तुलसी के सेवन से शरीर में दिन भर स्फूर्ति व क्रोध पर नियंत्रण बना रहता है, जिससे आलस्य निकट नहीं आता है और मन की एकाग्रता व विचार में पवित्रता आती है। घर में तुलसी स्थापना से धार्मिकता, आध्यात्मिकता, स्वच्छता, आरोग्यता और शुद्धता की प्राप्ति के साथ-साथ वातावरणीय प्रदूषण नियंत्रण स्वतः बढ़ता है, जिससे उस गृह में उन्नति, सुख, शांति और समृद्धि रहती है। तुलसी को घर में जाग्रत देवी के रूप में स्थापित करने की सनातनी परम्परा है।

तुलसी का वास

इसीलिए कहा जाता हैं कि जहाँ तुलसी का वास नहीं होता, वहाँ देवता भी निवास नहीं करतें हैं, बिना तुलसी के चढ़ाये प्रसाद भी ईश्वर ग्रहण नहीं करतें हैं। तुलसी दर्शन करने पर सारे पाप-समुदाय का नष्ट होता है, स्पर्श करने पर देह को पवित्रता मिलती है, प्रणाम करने पर रोगों का निवारण होता है और जल से सिंचित तुलसी यमराज को भी भयभीत करती है। घर में लगाई हुई तुलसी मनुष्यों के लिए कल्याणकारिणी, धन पुत्र प्रदान करने वाली, पुण्यदायिनी तथा हरिभक्ति देने वाली होती है। सुबह-सुबह तुलसी का दर्शन करने से सवा मासा यानी सवा ग्राम सोने के दान का फल मिलता है।

तुलसी विवाह

जैविक और पर्यावरण संरक्षण के अनूठे वैज्ञानिक प्रयोग के रूप में तुलसी विवाह की सनातनी परम्परा अनादिकाल से यथावत चली आ रही है, जिसमें विवाह के लिये मानसून का अन्त का समय उपयुक्त मानते हुए तुलसी पौधे का विवाह शालीग्राम (विष्णु अवतार कृष्ण) के साथ किया जाता है। असुर वृंदा के पति जलंधर की कहानी में तुलसी चित्रण को दर्शाया जाता है। वृंदा की निष्ठा के कारण ही अभेद्य शक्तियों के बल पर जलंधर ने देवताओं को भी अजेय बनाया था।
स्कंद पुराण, पद्म पुराण और शिव पुराण के अनुसार कार्तिक शुक्ल पक्ष में दीपावली के 11 दिन बाद देवउठनी एकादशी को चार माह के लम्बे अंतराल के बाद भगवान विष्णु निद्रा त्याग कर जाग्रत होते हैं और इसी दिवस विष्णु की एक पवित्र भक्त के रूप में वृंदा से अगले जन्म में विवाह करने के आशीर्वाद के प्रभाव से शालिग्राम रूप में तुलसी से विवाह करते हैं। विवाह समारोह में शाम तक उपवास रखते हुए घर के आंगन में तुलसी पौधे को केंद्र मानते हुए चारों ओर एक मंडप बना तुलसी को दुल्हन रूप में साड़ी, आभूषण और अन्य साज-सज्जा सामग्री सजाधजा कर दूल्हा रुपी शालिग्राम से शत्रोक्त नियमानुसार विवाह सम्पन्न कराया जाता है। यह उत्सव माह कार्तिक में एकादशी से त्रयोदशी तक तीन दिवसीय मनाया जाता है|

शास्त्रोक्त विधि व नियम

इस उत्सव मे प्रथम दिवस श्री रामचरित मानस या रामायण के वैदिक मंत्रोच्चार, द्वितीय दिवस शोभा यात्रा व 56 प्रकार के विशेष प्रसाद का वितरण एवं तृतीय दिवस विष्णु और वृंदा का तिलकोत्सव और विवाहोत्सव मनाया जाता है। तुलसी विवाह में तुलसी पौधे के साथ विष्णु जी की मूर्ति भी उनके साथ ही स्थापित की जाती है। मान्यता है कि रात्रि में वृंदा की आत्मा पौधे में निवास करती है और प्रातः देवलोक चली जाती है।

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