संकलन : नीतू पाण्डेय तिथि : 18-06-2024
(राम ही लक्ष्य हैं लक्ष्मण का , हनुमान जी के प्राण हैं)
सनातन संस्कृति की आस्था और अस्मिता के मूल में राम बसते हैं इनके बिना संस्कृति की आख्याएँ और व्याख्याएँ दोनों अधूरी रह जाती है। अनेकानेक सगुण संतों के आराध्य राम वास्तव में अनादि ब्रह्म ही हैं। जिनका प्रभाव और प्रवाह ऐसा है कि शायद ही कोई विवेकपूर्ण व्यक्ति उससे अछूता रह पाए। विष्णु के अंशावतार मर्यादा पुरुषोत्तम राम शांति, पुरुषार्थ, पराक्रम और सामाजिक मापदण्डों के लोक नायक चेतना हैं। इसलिए जीवन में सर्वत्र, सर्वदा एवं प्रवाहमान महाऊर्जा का नाम ही राम है।
सगुणोपासक मनुष्यों में प्रतिष्ठित दशरथनंदन राम नाम के अत्यंत प्रभावी एवं विलक्षण दिव्य बीज मंत्रों में प्रत्येक श्वास – प्रश्वास रचबस कर धैर्य, समर्पण और नैतिकता के भाव के संचार को बढाते हैं। द्वापर युग में पृथ्वी पर असुरों के बढ़ते अत्याचार के मध्य भगवान विष्णु ने कोसल साम्राज्य की राजधानी श्रावस्ती के अंतर्गत अयोध्या में राजा दशरथ के ज्येष्ठपुत्र राम ईश रूप में अवतार लेकर आराधना के सर्वोत्तम प्रतीक बने। राम शब्दांश गहन ब्रह्मांडीय सामंजस्य और आध्यात्मिकता और विज्ञान के बीच अंतर्संबंध को समाहित करता है। शास्त्रोक्त राम की व्याख्या को कई प्रकार से बताया गया है, तीन समानान्तर माहात्म्य प्रकाशित होते हैं-
1- कबीर दास जी ने उक्ति में स्पष्ट किया है – आत्मा और राम एक ही है।
2- रमंति इति रामः जो सम्पूर्ण रोम रोम में रमता हो वही राम हैं।
3- रमते योगितो यस्मिन स रामः अर्थात् जो योगीजन में रमण करते हैं वही राम हैं।
इन तीनों व्याख्याओं मे राम को रमने वाला या रमण करने वाला बताया गया है। राम नाम शब्द की व्युपत्ति 1 सेकेण्ड या 1 पल में होती है। जो चिकित्सा विज्ञान आधारित सत्य से सिद्ध होता है कि सामान्य मनुष्य 24 घंटों में लगभग 21600 शुद्ध श्वांश लेते और छोड़ते हैं, जिसमें से 12 घंटे दैनिक क्रिया और सक्रियता में तथा शेष 12 घंटों में निष्क्रियता या निद्रा में व्यतीत होता है। अर्थात मनुष्य सक्रिय अवस्था में लगभग 10800 बार श्वांश लेता है। जिसमें सांसारिक व्यवस्था में उलझे लोग 10800 बार ईश्वर स्मरण नहीं कर पाते हैं तो 100 वाँ भाग त्याग कर केवल 1 भाग अर्थात् 108 आवर्त्तियां में ही राम नाम जप लेने से आत्मा प्रभावी एवं विलक्षण हो जाती है। वैदिक दृष्टिकोण के अनुसार भी पूर्ण ब्रह्म का मात्रिक गुणांक 108 है।
राम की कृपा जीवन में शांति, समृद्धि और सम्मान के साथ मानसिक शांति, संतुलन और आनंद का अनुभव कराती है। महाकाव्य रामायण में राम के जीवन का वर्णन अप्रत्याशित परिवर्तनों, निर्धनता और कठोर परिस्थितियों में निर्वासन और नैतिक प्रश्नों और नैतिक दुविधाओं की चुनौतियों के रूप में किया गया है। एक दयालु और न्याय प्रिय शासक के रूप में भी सामान्य व्यक्ति के कर्तव्यों, अधिकारों और सामाजिक दायित्वों पर प्रतीकात्मक रूप से राम सदैव पूजित रहे हैं, और जब जब राम नाम की चर्चा बढ़ेगी तब-तब आस्था का ज्वार सद्गति का मार्ग बनाकर ही रुकेगा। इस प्रकार राम की पूजा भक्तों को भक्ति, श्रद्धा, अत्यंत पावन और आदर्श जीवन के प्रति प्रेरित करने वाली प्रक्रिया है।
(लोकाभिरामं रणरंगधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम्। कारुण्यरूपं करुणाकरं त्वं श्रीरामचंद्रं शरणं प्रपद्ये॥)
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