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Pooja Path नमक चमक महारुद्राभिषेक


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संकलन : नीतू पाण्डेय तिथि : 18-06-2024

समस्त देवों और सांसारिक आत्माओं का केंद्र रुद्र - सृष्टि के कर्ता, संहारकर्ता, पालनकर्ता हैं!

रुद्रहृदयोपनिषद में समस्त देवो और संसारिक आत्माओ का केंद्र रुद्र को बताया गया है। सभी देवों की आत्मा रुद्र में हैं और रुद्र ही सभी देवों की आत्मा हैं। भगवान विष्णु भी शिव के एकांश हैं और वेद का प्रादुर्भाव शिव से ही हुआ है अर्थात एकमात्र सदाशिव रुद्र के पूजन से स्वतः ही समस्त देवात्माओं का पूजन पूर्ण होता है। वेदों और पुराणों से विदित है कि रावण ने  दस सिरों को काटकर अपने रक्त से शिवलिंग का अभिषेक कर सभी सिरों को यज्ञअग्नि को अर्पित कर दिया था, जिसके प्रभाव से वो त्रिलोकजयी हुए। संसार में ऐसी कोई वस्तु, वैभव या सुख नहीं है, जो रुद्राभिषेक करने या करवाने से प्राप्त नहीं हो सकती है।

प्रतिमाविहीन चिह्न लिंगा, पार्थिव-लिंग, लिंगम् या शिवलिंगम् पृथ्वी पर साक्षात् शिव स्वरूप माने जाते हैं!

पृथ्वी पर शिवलिंग को साक्षात शिव स्वरूप माना गया है, प्रतिमाविहीन चिह्न लिंगा, पार्थिव-लिंग, लिंगम् या शिवा लिंगम् शिव को समर्पित प्रतीकात्मक रूप से और प्राचीन साहित्य में शिवलिंग के अर्घा (योनि) रूप में गौरी को दर्शाया जाता है। अर्घा का अर्थ लिंगात्मक स्वरूप (गर्भ) नहीं, अपितु सर्वव्यापी पराशक्ति मौलिक पदार्थ सूत्रात्मन् तत्त्व केन्द्रीय ऊर्जा या पुण्यार्जित  शक्ति, जहां से ब्रह्मांडीय शुद्ध चेतना, चिदात्मा, आत्म-दीप्तिमान प्रकाश का निर्माण, निर्माता और विध्वंसक सभी कुछ पलता है, संचालित और जन्मता भी है इत्यादि शक्ति रूप का वर्णन वेदों में मिलता हैं और शिव को अव्यक्त सकल निर्गुण ब्रह्म मानते हुए सृष्टि के कर्ता, संहारकर्ता, पालनकर्ता को रूप, रस, गन्ध, स्पर्श, शब्द रूप में लिंगात्मक परिभाषित किया जाता है। जिनका मूल तात्पर्य सर्वव्यापी पराशक्ति मौलिक पदार्थ सूत्रात्मन् तत्त्व का शुद्ध चेतना, चिदात्मा, आत्म-दीप्तिमान प्रकाश का निर्माण, निर्माता और विध्वंसक के प्रतिनिधित्व दैविक ऊर्जा की परस्पर निर्भरता का प्रतिनिधि लिंगा, पार्थिव-लिंग है।

शिव के पार्थिव लिंग को धारा प्रवाह अभिषिक्त किया जाना ही रुद्राभिषेक है।

अर्जित पाप ही सभी संताप, पीड़ा और दुखों का मूल हैं। नमक चमक के प्रभावशाली मंत्रो व शास्त्रोक्त विधियों का प्रयोग कर रुद्रार्चन व रुद्राभिषेक करने से सभी संकटो एवं नकारात्मक ऊर्जा के नष्ट होने से पातक, महापातक एवं पापत्कर्म भी भस्म होकर साधक के जीवन में शिवत्व को उदित करते हैं। अन्य रुद्राभिषेक की अपेक्षा 5 गुना अधिक फल-दायक नमक चमक महारुद्राभिषेक को बताया गया है। यजुर्वेद का अतिविशिष्ट अंग चमकदार रुद्राभिषेक नमक चमक है। शुक्ल-यजुर्वेद मे रुद्राष्टाध्यायी के मुख्यतः गणेशावाहन मंत्र व शिवसंकल्पसुक्त, पुरुषसूक्त, आदित्यसूक्त व व्रजासूक्त, रुद्रासूक्त, महामृत्युंजय श्लोक, अरण्यक श्रुतिपरम् परम लाभदायक है। प्रथम अध्याय से अष्टम अध्याय तक शान्त्यध्याय तथा दशम अध्याय मे स्वस्ति प्रार्थनाध्याय की प्रक्रिया बहुत विस्तृत और सावधानीपूर्वक होती है। 

नमक चमक शब्द "नमः" और "चमः" का संयोजन है।

पांचवें अध्याय में सर्वाधिक "नमः" तथा अष्टम अध्याय में सर्वाधिक "चमः" शब्द प्रयोग के कारण यह रुद्राभिषेक "नमक- चमक" नाम से प्रचलित है। नमक-चमक महारुद्राभिषेक में काली मिट्टी से शिवलिंग का निर्माण कर, शिव, पार्वती, नवग्रहों के लिए आसन बनाकर सार्वभौमिक ऊर्जा के देवी देवताओ, धरती, माँ गंगा, गणेश-गौरी, सूर्य, अग्नि, ब्रह्मा, पंच तत्व और दशों दिशा इत्यादि का विधिनुसार आवाहन कराकर मंत्रोच्चारण के साथ शिव (रुद्र) को गौ दुग्ध, दही, शहद, शुद्ध घृत, गंगा जल (पंचामृत) गन्ने का रस, विभिन्न प्रकार के पुष्प-रस, ऋतुफल-रस, चीनी मिश्रित जल, पवित्र राख, गुलाब जल, नैवेद्य  नारियल-जल, चंदन-जल,  व अन्य पौष्टिक सुगंधित तरल पदार्थों आदि से अभिषेक पूर्ण होता हैं। पूजन के इच्छा अनुरूप पाप, रोग और व्याधियों से मुक्ति हेतु विस्तृत संस्करण होम या यज्ञ भी सम्पादित होते हैं।

नमक-चमक महारुद्राभिषेक अभीष्ट सिद्धि व चमत्कारिक शुभ परिणाम के लिए फलदायक है।

सारांश में - शिवलिंग का अभिषेक साधक को शिव का कृपापात्र बना देता है। कालसर्प योग, गृहक्लेश, व्यापार में नुकसान, शिक्षा में रुकावट सभी कार्यों की बाधाओं को दूर करने के लिए नमक-चमक महारुद्राभिषेक अभीष्ट सिद्धि व चमत्कारिक शुभ परिणाम के लिए फलदायक है। रुद्राभिषेक किसी भी दिवस हो सकता है, किन्तु त्रियोदशी तिथि, प्रदोष काल, सोमवार और शिव वास की तिथि परम कल्याणकारी है। तंत्र में रोग निवारण हेतु विविध द्रव्यों से भी शिवलिंग के विधिवत अभिषेक करने का विधान है। प्राचीनतम शिवलिंग का अभिषेक नियमित रूप से करने उत्तम फल व अभीष्ट कामना की पूर्ति होती है, किंतु पारद शिवलिंग के अभिषेक से शिव का वरदान ही नहीं मिलता, अपितु प्रत्येक पीड़ा, वेदना से छुटकारा भी होता है प्रकाश व ऊर्जा को जीवन में संरक्षित और संवर्धन करने के लिए धार्मिक या आध्यात्मिक प्रार्थना, श्लोक या मंत्रों से नमक चमक महारुद्राभिषेक करने का प्रतिफल किसी भी व्यक्ति या कार्य के महत्ता को बढ़ाया जाता है।

नमक-चमक महारुद्राभिषेक का शास्त्रोक्त विधि व नियम

नमक चमक रुद्रभिषेक में शिव, पार्वती, नवग्रहों, सार्वभौमिक ऊर्जाओं (धरती माँ, देवी देवता, गंगा, गणेश, गौरी, सूर्य, अग्नि, ब्रह्मा, पंच तत्व और दशों दिशाओं) का आवाहन कराकर पूजक से शिव जी को पंचामृत (दुग्ध, दही, शहद, घी और चीनी आवश्यकतानुसार) गंगा जल, गन्ने का रस, शक्कर मिश्रित जल, पवित्र राख, गुलाब जल, नैवेद्य नारियल का पानी, चंदन पानी और अन्य सुगंधित पदार्थ इत्यादि से विशिष्ट मंत्रोचारणों से स्नान पूर्ण कराते हुए सभी पाप और बीमारियां मुक्ति हेतु पूजक की इच्छानुसार विस्तृत संस्करण होम या यज्ञ से यह अनुष्ठान पूर्ण होता है।

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