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Pooja Path अखंड-रामायण पाठ


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संकलन : नीतू पाण्डेय तिथि : 20-06-2024

अनवरत पूर्णतः स्पष्ट और शुद्ध पाठ करने और कराने को ही अखंड-पाठ कहा जाता है।

कई भक्त दैनिक रूप से खण्ड-खण्ड में अथवा अखण्ड रूप से रामायण पाठ का आयोजन व समापन पुण्य, लाभ, बौ‌द्धिक उन्नति, भाषा सुधार, आध्यात्मिक, पारिवारिक कुशल- मंगल, मनौती अथवा अन्य किसी मनोरथ सि‌द्धि हेतु कराते हैं। रामचरित मानस पाठ (रामायण) पूर्ण होने तक अनवरत पूर्णतः स्पष्ट और शुद्ध पाठ करने और कराने को ही अखंड-पाठ कहा जाता है। सामान्यतः चौबीस घंटे में रामायण के आरम्भ से पाठ पूर्ण होने तक अखण्ड पारायण कराकर हवन, आरती, भजन और भोजन आदि कृत्यों तक यह अनुष्ठान सम्पन्न होता हैं।

रामायण पाठ जितना स्पष्ट, शुद्ध और अखंडित होगा, उसका उतना ही अधिक अभीष्ट फल होगा।

एक ही मास में रामायण पाठ पूर्ण होने पर मास-पारायण व नौ दिन में रामायण पाठ पूर्ण होने पर नवाह-पारायण कहा जाता है। इसी प्रकार सप्ताहिक, पाक्षिक, वार्षिक आदि पारायण भी किया जाता है। पाठ जितना स्पष्ट, शुद्ध और अखंडित होगा, उसका उतना ही अधिक अभीष्ट फल प्राप्त होगा। पाठ कहने, करने और कराने का वही अधिकारी है, जो श्रीराम-चरित मानस, भगवान श्रीराम, गोस्वामी तुलसीदास व सनातन संस्कृति में श्रद्धा और विश्वास रखता हो। उ‌द्देश्य अथवा कामना के अनुरूप ही उचित सम्पुट का चयन करके योग्य कर्मकांडी विप्रों से रामायण पाठ कराने से पुण्यफल अवश्य मिलता है।

अखण्ड रामायण पाठ में वर्जित कार्य या आचरण

बदलते समय में अखण्ड- रामायण करने-कराने के मूल स्वरूप में परिवर्तन आ चुका है, जिसमे अनेकों विसंगतियां हैं। पाठ के मध्य अनर्गल प्रलाप, पान या गुटका खाना, अशुद्ध पाठन और मन-चाहा शब्द जोड़ना या घटाना (रामा, सियारामा इत्यादि) भी व्यवधान ही माना जाता है।

अखण्ड रामायण पाठ का शास्त्रोक्त विधि व विधान

अनुभवी विप्रजन सर्वतोभद्र, षोडशमात्रिका, नवग्रह, क्षेत्रपाल मंडल तथा सार्वभौमिक ऊर्जा के देवी-देवताओं, गौरी-गणेश, ब्रह्मा, पंचतत्व, धरती, माँ गंगा, लक्ष्मी, अग्नि और दशों-दिशाओं आदि का शास्त्रोक्त विधिनुसार मंत्रोच्चारण से आवाहन कराकर अखण्ड रामायण पाठ स्थापित कराकर समापन के उपरान्त यज्ञ (हवन) पूर्णाहुति, बलिदान, आरती, दान इत्यादि तक अनुष्ठान सम्पन्न कराते हैं।

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