संकलन : नीतू पाण्डेय तिथि : 20-06-2024
ज्योतिष विज्ञान के अनुसार खगोलीय सौर्य मण्डल के सभी ग्रह, उपग्रह 27 नक्षत्रों के मध्य ही विचरण करते हैं, जिनका नियामित तीव्र प्रभाव प्रत्येक मनुष्य के जीवन पर होता है। किसी भी प्राणी के जीवन में जुड़ी वर्तमान और भविष्य की घटनाओं की स्पष्ट जानकारी नक्षत्रों की गणनाओं पर आधारित होती है। नक्षत्र मंडल के छः नक्षत्र (अश्विनी, आश्लेषा, मथा, ज्येष्ठा, मूल और रेवती) को गण्ड मूल या गण्डान्त या मूल बहणी के नाम से भी संबोधित किया गया है। संस्कृत में गण्ड शब्द का अर्थ निकृष्ट और मूल का तात्पर्य जड़, स्बिर आधार होता है।
नक्षप मंडन में मूल नामक नक्षत्र भी है जिसका स्थान 19वां है। नक्षत्रों के अतिरिक्त मीन, मेष, कर्क, सिंह तथा वृधिक धनु राशियों की संधियों को गण्डान्त कहा जाता है साथ ही पूर्णा निधि (5,10,15) के अत की दो घटी, नंदा तिथि (1,6,11) की दो पटी को मिलाकर छ. तिथि को भी पूर्ण गण्डान्त अर्थात अधिक दोषयुक्त माना गया है, जिनका निराकरण नितान्त आवश्यक होता है। समान्यतः नक्षत्र मंडल में प्रत्येक 27 वे विधानानुसार दिन के उपरान्त पुनः बाहरी नक्षत्र आता है। गण्ड मूल का निराकरण हेतु 27 वे दिन विधि विधानुमार गण्डमूल शांति एवं हवनादि के माध्यम में दोष-निवृत्ति होती है जिसे सनातन शास्त्रानुसार करवाने से गण्डमूल की प्रतिकूलता को कम या समाप्त किया जाता है।
किसी भी नवजात का जन्म नक्षत्र अवश्य देखा जाता है, जिसका विशेष प्रभाव निश्चय ही उसके आगामी जीवन में रहता है। उन्हीं नक्षत्रों में से गण्ड मूल (गण्डान्त/ मूल) नक्षत्र में यदि शिशु का जन्म होता है, तो पुरे परिवार में भय सा व्याप्त हो जाता है, क्योंकि गण्डान्त दोष की शांति में पूर्व पिता द्वारा शिशु का मुख देखने पर समस्त दोष पिता पर आता है, जिसका दुष्परिणाम प्रथम चार वर्षों में दिखता है। गण्डान्त दोष में जन्मा शिशु स्वयं के लिए या फिर उसके परिवार के सदस्यों के लिए प्रतिकूलता (अनुभता) के साथ ही उसके जीवन में नाना प्रकार की विपत्तियों का संकेत भी होता है। यदि किसी कारणवश यह दोप की शांति समय से ना हो सका हो, तो किसी जानकार विप्र से उपाय अवश्य जात करना चाहिए। पराशर मुनि के अनुसार तिथि गण्ड में बैल का दान, नक्षत्र गण्ड में गाय का दान और लग्र गण्ड में स्वर्ण का दान करने से दोष मिटता है।
सारांश में मूल शांति पूजा के द्वारा ग्रहों के अनुकूल या प्रतिकूल प्रभाव को जीवन में नियंत्रित और संतुलित कर उत्तेजना, सकारात्मकता, स्थिरता, शांति और समृद्धि को बढ़ाया जाता है। प्राचीन काल से नैतिकता, धार्मिकता और आध्यात्मिकता के रूप में मूल शांति पूजा उपायों स्वरुप अनुसरण हो रहा हैं। मूल शांति की मदद से स्वास्थ्य सम्बंधी समस्याएं, आर्थिक संकट, परिवार विवाद और व्यक्तिगत अस्थिरता को आत्मिक और आध्यात्मिक स्तर तक संतुलित और खुशहाल जीवन-दिशा अर्जित की जाती है। पंडित जी इस पूजन में पूजक से सर्वतोभद्र, षोडशमात्रिका, नक्षत्र मण्डल तथा सार्वभौमिक ऊर्जा के देवी-देवताओं का विधि विधानुसार आवाहन कराकर गण्डान्त दोष निवृत्ति को पूर्ण कराते हैं एवं पूजक की इच्छानुरूप राहु-केतु शांति के लिए मंत्रों का जाप, इन्द्रसूता और महामृत्युंजय पाठ कर देवों को हव्य (हवन) देने की प्रक्रिया, आरती, दान इत्यादि वैदिक के माथ सम्पन्न कराते हैं।
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