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Karwa Chauth - सृजनशीलता से युक्त औषधीय गुणों से भरपूर करवाचौथ का महाप्रतापी व्रत पर्व


Celebrate Deepawali with PRG ❐


संकलन : जया मिश्रा Advocate तिथि : 15-12-2020

करवाचौथ व्रत पर्व का नाम आते ही सभी सनातनी सौभाग्यवती स्त्रियाँ हर्षित और रोमांचित हो उठती हैं, क्योकि एक विवाहित स्त्री के लिए यह व्रत पर्व उनके सौभाग्य का प्रतीक है और यह पर्व सभी सनातनी परिवारों में प्रचलित है। चल-चित्रों में भी करवाचौथ को रोचक ढंग से प्रदर्शित किया जाता है। करवाचौथ की कथाएँ सामान्यतः सभी सनातनी को ज्ञात है, परंतु यह पर्व मनाया क्यों जाता है? क्यो इतना महत्वपूर्ण है? इस विषय की जानकारी कम से कम मिलती है। जिसे ज्ञात करना उतना ही आवश्यक है जितना इस व्रत पर्व को मनाया जाना।

सनातनी धर्म ग्रंथो मे कार्तिक माह को सभी माहों में सबसे महत्वपूर्ण और अग्रेय माना गया है, जिसके पीछे वैज्ञानिक तथ्य यह है कि कार्तिक माह औषधीय गुणों और सृजन शीलता से युक्त है और प्रकृति में नए निर्माण और नई जीव संरचनाए इसी माह में सबसे ज्यादा होती है। प्राकृतिक मे सभी जीव-जन्तु कार्तिक माह में अपनी पीढ़ीयों के नवनिर्माण की ओर अग्रसर होते है। मनुष्य भी एक प्राकृतिक जीव ही है, परंतु वह मानसिक और बौद्धिक स्तर पर उन्नत होने के कारण अन्य जीवों से पूर्णरूप मे अलग हो जाता है। मनुष्य के पास तर्क है, ज्ञान है, विचार है और कार्यकुशलता भी है लेकिन फिर भी मनुष्य प्राक्रतिक जीव ही है |

प्रकृति का पूर्ण प्रभाव मनुष्य पर भी पड़ता है, जैसे अन्य प्राकृतिक जीव-जन्तु नए जैविक रचना और जीवन की ओर सृजनात्मक गति करना आरंभ करते हैं, वैसे ही वयस्क मनुष्यों में भी विपरीत योनियों के प्रति खिंचाव और लगाव बढ़ता है और जैविक रचना और जीवन की ओर सृजनात्मक गति की संभावना बनती है, जिसे समान्य भाषा मे प्रेम, प्रणय या आकर्षण कहा जा सकता है।

ज्योतिष शास्त्र में चंद्रमा को मन, सृजन और औषधीय गुणों को श्रोत माना गया है और प्रत्येक माह के शुक्ल पक्ष की चौथ को चंद्रमा सबसे प्रबल हो जाता है और मनुष्य का मन विनाशकारी या सृजनकारी होता है। इसी वैज्ञानिक तथ्य को आधारित मानते हुए ही इस तिथि को पाप विचार उत्पन्न न हो इसलिए प्रत्येक चौथ को भगवान गणेश जी से जोड़ा जाता है ताकि सृजनकारी विचार बना रहे। सभी ज्योतिर्विद मानते है कि भगवान गजपति की कृपा से कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि औषधीय गुणयुक्त एवं प्रणयसुख से आच्छादित होकर विशेष प्रभावशाली होती है | सनातनी मनीषियों, ऋषियों और ज्ञानियों ध्यानियों द्वारा उपरोक्त तथ्यों के प्रभावों को देखकर ही इस महा व्रतपर्व को सनातन धर्म में स्थापित किया गया था, जो आज भी पूर्ण रूपेण प्रमाणित एवं तथ्यपूर्ण है।|

वर्तमान में जो सौभाग्यवती स्त्री इस महा प्रतापी व्रत पर्व को न मानती हैं, अनादर और तिरस्कार करती है, निश्चय ही उसका जीवन मात्र वैवाहिक होगा, उसके वैवाहिक जीवन मे प्रणय सुख की भारी कमी होगी। अर्थात् इस व्रत पर्व का पूर्ण नियमानुसार पालन कर पारण करने पर आयु, सौभाग्य, निरोगी जीवन एवं प्रणयसुख से ओत-प्रोत सांसारिक जीवन होगा।

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