Pandit Ji स्वास्थ्य वास्तुकला त्यौहार आस्था बाज़ार भविष्यवाणी धर्म नक्षत्र विज्ञान साहित्य विधि

Choti Dipawali (Diwali) - नरक चतुर्दशी (रूप चौदस) को हनुमान जी और यमराज का संयुक्त आशीर्वाद क्यो मिलता है।


Celebrate Deepawali with PRG ❐


संकलन : जया मिश्रा Advocate तिथि : 15-12-2020

काली चौदस अथवा हनुमान जयंति (रूप चौदस) अथवा नरक चतुर्दशी मुहुर्त 3.11.2021 को सुबह 09.02 से आरंभ 4.11.2021 को सुबह 06.03 पर समाप्त। पूजा-पाठ के लिए सर्वश्रेष्ठ विजय मुहूर्त दोपहर 01.33 से 02.17 तक है।

काली चौदस अथवा हनुमान जयंति अथवा नरक चतुर्दशी तिथि यमराज से आशीर्वाद पाने का दिवस है। जिसका भरपूर लाभ सनातन विधि-विधान अनुसार पूजन-पाठ करके लिया जा सकता है। दीपावली (लक्ष्मी) पूजन से एक दिन पूर्व नरक चतुर्दशी को मनाया जाता है, इस पर्व की नरक चौदस या नर्क चतुर्दशी या नर्का पूजा या छोटी दीपावली के नाम से भी प्रसिद्धि है।  

सनातन संस्कृति के प्रसिद्ध ग्रंथों के अनुसार नर्का चौदस को यमराज जी अपने जीवन रक्षक वैद्य धन्वन्तरी जी के दर्शनार्थ भूलोक मे आतें हैं और जहां-जहां पर साफ सफाई और स्वछता का वास और उत्सव जैसी स्थितियां देखते हैं, वहाँ-वहाँ धनवंतरी जी का स्थापन (वास) मानते हुए चिरायु और उन्नति का वरदान देकर वापस चले जाते हैं। इसी कारण से नरक चौदस कहा जाता है।

एक मान्यता यह भी है कि नरक चौदश को हनुमान जी का अवतरण (जन्म) हुआ था और इस दिवस को हनुमान जी के बाल स्वरुप का दर्शन पाने की लालसा में यमराज जी भ्रमण करते हैं। जहां-जहां उत्सव, महोत्सव, उल्लास जैसा माहौल मिलता है वहाँ हनुमान जी का वास मानकर आशीष देकर चले जाते हैं। इसी कारण से नरक चौदश को रूप चौदश भी कहतें हैं|

एक अन्य मान्यतानुसार कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी की सन्ध्या काल मे भगवान श्री कृष्ण ने अत्याचारी और दुराचारी नरकासुर का वध किया था और सोलह हजार एक सौ कन्याओं को नरकासुर के बंदी गृह से मुक्त कर उन्हें सम्मान प्रदान किया था। इस उपलक्ष्य में दीयों की बारात सजायी जाती है। इसी कारण से नरक चौदश को नर्का पूजा भी कहतें हैं|

नरक चतुर्दशी को व्रत किए जाने के पीछे भी एक कथा है कि पुण्यात्मा और धर्मात्मा रन्तिदेव नामक राजा ने अनजाने में भी कोई पाप नहीं किया था, लेकिन जब मृत्यु का समय आया, तो अपने सामने यमदूत को खड़ा देख अचंभित राजा ने यमदूतों से पूछा कि आप लोगो के यहां आने का मतलब है कि मुझे अब नर्क जाना होगा, परन्तु मैंने जाने-अनजाने में भी कभी कोई पाप कर्म नहीं किया, फिर भी आप लोग मुझे लेने क्यों आ गए हो? मेरा क्या अपराध है, जो मुझे अब नरक जाना पड़ रहा है। पुण्यात्मा राजा के अनुनय पर यमदूत ने बताया कि हे राजन् आपके द्वार से एक बार एक ब्राह्मण भूखा ही आपके द्वार से लौट गया, जिसका यह फल है। यह जानकर राजा ने यमदूतों से एक वर्ष का और समय देने की विनती की, जिसे यमदूतों ने स्वीकार कर राजा को एक वर्ष का अतिरिक्त समय देकर चले गए। इसके बाद  परेशान राजा ऋषियों के पास जाकर सम्पूर्ण वृतान्त बताकर पूछते हैं कि इस पाप से मुक्ति की क्या युक्ति है?  तब ऋषि बताते है कि हे राजन् यदि आप कार्तिक मास कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को निराहार (व्रत) रहकर ब्रह्मणों को भोजन करवाकर उनसे अपने जाने-अनजाने अपराधों की क्षमा याचना कर लेते हैं, तो आपके पाप क्षीण होगे। राजा रन्तिदेव ऋषियों के वाक्यानुसार सभी कर्म पूर्ण किया, जिसके प्रभाव से राजा स्वयं पाप मुक्त होकर अन्त में विष्णु लोक में स्थान प्राप्त कर लिया। जिसके बाद से ही भूलोक में कार्तिक चतुर्दशी के दिन का व्रत प्रचलित भी है। 

नरक चौदस या नर्क चतुर्दशी या नर्का पूजा या छोटी दीपावली से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्य :-

पंडितजी पर अन्य अद्यतन