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Sindur - चर्म रोगो से बचाता है सिंदूर की उत्पत्ति का ज्ञान।


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संकलन : नीतू पाण्डेय तिथि : 14-12-2020

सिन्दूर (कमीला फली) एक विशेष प्रकार का लाल रंग का चूर्ण है, जिसे सनातनी वैवाहिता स्त्रीयाँ अपनी माँग में भरती हैं।

सिन्दूर की उत्पत्ति तीन प्रकार से होती है:-

(1) प्रकृतिक सिन्दूर

(2) रासायनिक सिंदूर

(3) घरेलू प्रयोग से बना सिन्दूर। 

प्राकृतिक सिन्दूर की जानकारी के अभाव में अथवा सिन्दूर के वृक्ष या पौधे की पहचान या उत्पादन कम होने के कारण रासायनिक सिंदूर का प्रचलन बढ़ा हुआ है, किन्तु कुछ स्थानों पर जहां रासायनिक सिंदूर का उपयोग ना के बराबर है, वहाँ घरेलू प्रयोगों से सिंदूर निर्मित्त कर उपयोग लाया जाता है। पश्चिमीकरण के दौर में आसानी से बाजारों में कृतिम सिन्दूर हर जगह बिक रहा है। कृतिम सिन्दूर (बिना पहचाना हुआ लाल रंग का चूर्ण) प्राकृतिक सिन्दूर के सापेक्ष कम पर मूल्य मिल जाता हैं। क्योंकि उत्पादक सिंदूर को सस्ता बनाने के लिए उसमें विषाक्त पदार्थ डालते है ऐसे सिंदूर नारियों को बहुत आकर्षक लगते हैं एवं वे इन्हें खरीदने के समय इसमें इस्तेमाल किए गए सामग्रियों को नहीं देखती हैं। जिससे प्रबल हानि की सम्भावना रहती है।

(1) प्रकृतिक सिन्दूर- कमीला नामक एक विशिष्ट प्रकार के वृक्ष या पौधे का मटर आकार फली से निकला हुआ चूर्ण ही प्रकृतिक सिन्दूर होता है। यह वृक्ष या पौधा शरद ऋतु में फली से लद जाता है एवं फली मे मटर के आकार जैसे दाने मिलते है, यह फलिया लाल पराग से ढके होते हैं, जिसको बिना कुछ मिलाए चूर्ण बनाकर विशुद्ध सिंदूर, रोरी, कुमकुम की तरह प्रयोग किया जाता है। यह कमीला वृक्ष के बीस से पच्चीस फीट ऊँचाई पर गुच्छे के रूप में फली लगती है। औषधीय गुणों से भरपूर कमीला को दर्जनों रोगों के उपचार हेतु प्रयोग किया जाता है। संस्कृत भाषा में कम्पिल्लक, रक्तांग रेची, रक्त चूर्णक, हिन्दी मे कमीला एवं लैटिन में मालोटस, फिलिपिनेसिस नाम से जाना जाता है। इस फलीचूर्ण को रोरी, सिंदूरी, कपीला, कमूद, रैनी, सेरिया आदि नामों से भी जाना जाता है। वन प्रवास के दौरान माता सीता इसी फल के पराग को अपनी मांग में लगाती थीं। महाबली हनुमान इसी का लेप तन पर लगाया करते थे। 

(2) रासायनिक सिंदूर- रासायनिक सिंदूर को अंग्रेज़ी भाषा या रसायनिक भाषा में Cinabar या Mercuric Sulphide कहा जाता है। रासायनिक सिंदूर चूर्ण के रूप में पाया जाता है, रासायनिक शुष्क एवं दूसरे कृतिम तत्व में लाल कच्चा सीसा चूर्ण मिश्रित कर लाल, पीला एवं नारंगी सिन्दूर निर्मित्त किया जाता है, सिंदूर में विषाक्त पदार्थ डालकर रंग बिरंगा सिंदूर बनाया जाता है। सिंदूर दो रंग का होता है लाल और पीला सिंदूर। अधिकतर सिंदूर अत्यंत संवेदनशील रसायनिक तत्व वाला ही उपयोग में लिया जाता है। रसायनिक दृष्टि से सिन्दूर अक्सर पारे या सीसे के रसायनों का बनता है, इसलिए विषैलेपन के कारण सिंदूर प्रयोग में सावधानी बरतने एवं बच्चों से दूर रखने को कहा जाता है। बड़े-बड़े उत्पादक सिंदूर या कुमकुम के निर्माण में जो धातुएं एवं रसायन इस्तेमाल करते हैं, उनका खुलासा नहीं किया जाता है। अगर सिंदूर लगाने से किसी को तकलीफ या सर में पीड़ा होता है तो चिकित्सक से त्वरित परामर्श करना चाहिए। आजकल क्र्त्रिम(सिंथेटिक) सिंदूर अधिक मिलता है, जिसमें पारा या शीशा होता है। जिससे बाल झड़ना, त्वचा में जलन होना, एवं जानलेवा कैंसर रोग के संकट में भी वृद्धि हो जाती है। इसलिए रासायनिक सिंदूर का प्रयोग ना ही किया जाए तो अच्छा होगा।

(3) घरेलू प्रयोग से बना सिन्दूर- जैविक सिंदूर घर पर हल्दी, फिटकरी, सुहागा तथा नींबू के रस से तैयार किया जा सकता है। प्राकृतिक रूप से तैयार सिंदूर का कोई कुप्रभाव नहीं होता परन्तु सिंदूर में उपस्थित पारा धातु ब्रह्मरंध्र के लिए औषधि है। यह प्रणय संबंध की कमी से गृहस्थ जीवन मे आए तनाव को दूर करने में भी मदद करता है एवं मस्तिष्क हमेशा चैतन्य अवस्था में रखता है। वैज्ञानिक लिहाज़ से माथे पर सिंदूर प्रयोग मन को शांत रखने में मदद करता है। सिंदूर के माध्यम से रक्तचाप भी नियंत्रित रहता है। सिंदूर के माध्यम से महिलाओं की पीयूष ग्रंथियां स्थिर रहती हैं। सिन्दूर एक लाल या नारंगी रंग का सौन्दर्य प्रसाधन है। आजकल बाज़ार में तरल सिंदूर भी आने लगे हैं। 

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