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Tilak (Bindi) - मानसिक व शारीरिक व्याधियों में औषधि स्वरूप है बिंदी/ तिलक


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संकलन : नीतू पाण्डेय तिथि : 29-10-2020

तिलक अथवा बिंदी से मस्तिष्क जागृत एवं मन एकाग्र होता है - आज्ञा चक्र पर मस्तिष्क हमेशा जागृत अवस्था में रहता है।आज्ञा चक्र के सक्रिय रहने पर मनुष्य जो आंखों से नहीं देख सकता है, वह चीजें भी आंतरिक दृष्टि से देख एवं महसूस कर सकता है। ललाट के मध्य (आज्ञा चक्र पर) जहाँ बिंदी लगती हैं, वहाँ से चेतना का विकास होता है एवं तिलक अथवा बिंदी लगाने से भगवान शिव की तीसरी आंख जागृत करने जैसा परिणाम प्राप्त किया जा सकता है। तिलक अथवा बिंदी के प्रयोग से यह बिंदु जागृत हो जाता है। यह चेतना विकसित कर मानव को शांति देने के साथ ही तनाव मुक्ति का मार्ग भी प्रशस्त करता है। इस बिंदु को जागृत एवं एकाग्र कर मनुष्य के लिए आध्यात्मिक दुनिया में पहुँच कर आँखों से ना देखे जाने वाली घटनाओं व वस्तुओं को भी जानना एवं समझना सम्भव हो जाता है। 

तिलक अथवा बिंदी से चित्त शान्त तथा शरीर निरोग होता है - सनातनी मान्यताओ एवं वैज्ञानिक शोधों के अनुसार मन अतिचंचल होता है तथा मन ही चिंताओ, विकारों एवं तनाव को बढ़ाकर चेतना को सबसे अधिक क्षतिग्रस्त करता है। अवचेतन मन मस्तिष्क के साथ जीवित तो रहा जा सकता है परन्तु सुख शांति पूर्ण जीवन व्यतीत किया जाना सम्भव नहीं हो सकता है। शायद इन्हीं तथ्यों को देखते हुए ही प्राचीन ऋषि-मुनियों द्वारा तिलक अथवा बिंदी लगाने की अनिवार्य परंपरा प्रारंभ की गई थी। आज्ञा चक्र पर मस्तिष्क की प्रमुख मांसपेशियों के क्षेत्र एवं नसों को आराम देकर पूरे मन मस्तिष्क को शांत कर तनाव मुक्त करते हुए मन को नियंत्रित तथा स्थिर रखने मे तिलक अथवा बिंदी बहुत प्रभावोत्पादक साबित होती है। इससे मन शांत एवं एकाग्र बना रहता है। यदि बिंदी या तिलक का उपयोग न भी किया जाए तो भी दिनभर में एक बार इस क्षेत्र में मन एवं शरीर को शान्ति देने के लिए मालिश जरूर कर लें। 

सौन्दर्य दृष्टि से बिंदी या तिलक का लाभ - आज्ञाचक्र (माथे के मध्य ललाट) पर सुपराट्रोचीलर मांसपेशी होती है। जिसका अर्थ यह है कि इस बिंदु पर दबाव डालने से त्वचा चमकदार और कोमल होगी और चेहरे की मांसपेशियों में रक्त का प्रवाह बढ़ता है। जिससे मांसपेशियों में लचीलापन आने पर झुर्रियां कम होती हैं। बार-बार इस बिंदु को उत्तेजित करने से चेहरे की सभी मांसपेशियों में रक्त प्रवाह सुचारु होकर त्वचा को पोषित करता है। बिन्दी या तिलक उपयोग की क्रिया मांसपेशियों की कठोरता को कम करने में मदद करती है एवं त्वचा को स्वस्थ और अधिक समय तक झुर्रियों से मुक्त रखने में मदद करती है। जैसे-जैसे उम्र बढ़ती जाती है वैसे ही आंखों के बीच की फाइनलाइन्स भी बढ़ती जाती हैं। जो बाद में झुर्रियों में परिवर्तित होती हैं। इस प्रकार बिंदी या तिलक झुर्रियां को कम रखते हुए आश्चर्यजनक रूप से आकर्षण व सुंदरता स्थापित रखता है। रक्त के प्रवाह को बढ़ाने के लिए भी माथे पर इसी जगह की मालिश अवश्य करें।

बिंदी या तिलक से स्वास्थ्यवर्धन अथवा चिकित्सीय लाभ - मर्मचिकित्सा एवं चिकित्सीय वैज्ञानिक शोधों के अनुसार सिर की तंत्रिकाओं एवं रक्त वाहिकाओं के ज्यादा अभिसरण से मानसिक उत्तेजना बढ़ती है। जिससे मस्तिष्क की मांसपेशीओं पर तनाव पडऩे से ही सिरदर्द की बीमारी प्रकाशित होती है। इसी कारण से मस्तिष्क की प्रमुख मांसपेशियों की मालिश करने से तंत्रिकाओं एवं रक्त वाहिकाओं का रक्त प्रवाह नियंत्रित होता है। इसके प्रभाव से मानसिक उत्तेजना कम या समाप्त होते ही सिरदर्द भी कम या समाप्त हो जाता है। इस प्रकार बिंदी या तिलक का उपयोग लगातार करते रहने से सिरदर्द की समस्या नहीं होती है, क्योकि बिंदी या तिलक रक्त प्रवाह को भी नियंत्रित करता है।
चिकित्सीय वैज्ञानिक शोधों में ट्राईगेमिनल तंत्रिका नाक से संबन्धित होती है। मस्तिष्क की मांसपेशीओं की विशिष्ट शाखाओं की मालिश करने पर रक्त का संचालन नाक के आस-पास के क्षेत्र पर अच्छी प्रकार से होने लगता है। जिससे नाक के आस-पास सूजन कम होने से बंद नाक भी खुल जाता है। इस प्रकार आज्ञा चक्र पर तिलक अथवा बिंदी का बार-बार उपयोग करने से नाक तथा उसके आस-पास के क्षेत्र का रक्त संचार संतुलित हो जाने से नाक के आस-पास रक्त प्रवाह बढ़ता है एवं सूजन से मुक्ति भी मिलती है।
आयुर्वेद सिद्धान्त के अनुसार मानसिक तनाव एवं अति क्रियाशील मन ही अनिद्रा का प्रमुख कारण है। आयुर्वेद में इसको शिरोधरा कहते हैं। तिलक अथवा बिंदी से मस्तिष्क की प्रमुख मांसपेशियों को आराम मिलने पर अनिद्रा से राहत मिलती है तथा तनाव से लडऩे की शक्ति भी प्राप्त होती है। अत: तिलक अथवा बिंदी न केवल मन को शांत करता है अपितु चेहरे, गर्दन, पीठ एवं ऊपरी शरीर की मांसपेशियों को भी आराम देता है। दैनिक आधार पर कुछ समय के लिए इन बिंदुओं की मालिश करने से अच्छी नींद आती है। अगर अच्छी नींद नहीं आती है तो बिंदी या तिलक उपयोग काफी लाभप्रद साबित हो सकता है।
आयुर्वेद सिद्धान्त के अनुसार अवश्यकता से ज्यादा मानसिक तनाव एवं अति क्रियाशीलता अर्ध आयु पर चेहरे का पक्षाघात की बीमारी का प्रमुख कारण है। बार-बार सभी मांसपेशियों को उत्तेजित करते रहने से चेहरे पर रक्त प्रवाह संचालित होकर त्वचा को पोषित करता है। जो चेहरे की पक्षाघात बीमारी की संभावना को शून्य कर देता है। इस प्रकार बिंदी या तिलक का उपयोग करते रहने से चेहरे की पक्षाघात बीमारी की संभावना न के बराबर हो जाती है।
वैज्ञानिक शोध बताते है कि स्प्रट्र्रोक्लियर तंत्रिका आंखों एवं कान की नसों से संबन्धित होती है। यह तंत्रिका बहुत लचीली होती है। जिसके कारण आंखें चारों तरफ घूम सकती हैं एवं आसानी से अलग-अलग दिशाओं में देखने में मदद देती है। जैसे-जैसे उम्र बढ़ती जाती है, आंखों के बीच की फाइनलाइन्स भी बढ़ती जाती है, एवं तंत्रिका में तनाव बढ़ता है तथा लचीलपन समाप्त होता जाता है। जिससे एक आयु के बाद से ही दृष्टि दोष उत्पन्न होना शुरू हो जाता है। जिसे बिंदी या तिलक का उपयोग लगातार करते रहने से नियंत्रित और दृष्टि दोष की समस्या से मुक्त रहा जा सकता है।
स्प्रट्र्रोक्लियर तंत्रिका जो कान की नसों से संबन्धित होती है, बार-बार सभी मांसपेशियों को उत्तेजित करते रहने से चेहरे पर रक्त प्रवाह संचालित होकर त्वचा को पोषित करती है एवं वह कान के भीतर की मांसपेशीओं को सुदृढ़ करके कान को स्वस्थ रखने में मदद करती है। जिससे की सुनने की क्षमता अथवा श्रवण शक्ति बेहतर होती जाती हैं।

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