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Sindur - जानिए कमिला फली (सिंदूर), सौभाग्य प्रतीक परम्परा क्यों है।


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संकलन : नीतू पाण्डेय तिथि : 29-10-2020

प्राचीन काल से ही सनातनी संस्कृति में सिन्दूर का महत्व रहा है। यह प्रथा शिव पार्वती जी के विवाहोपरांत से प्रचलन में है। कुछ ग्रंथो एवं विशेषज्ञों द्वारा सिन्दूर को 5000 वर्ष पूर्व से ही प्रचलन में माना गया है। सनातनी महिलाओं के लिए सिंदूर अन्य मूल्यवान वस्तुओं से अधिक प्रिय है, इसे मंगल सूचक माना जाता है। सनातन धर्म में सिंदूर महिलाओं के लिए अमृत या जीवन की तरह होता है।
भारत में सनातन संस्कृति को मानने वाली प्रत्येक विवाहित महिला सिंदूर अनिवार्य रूप से लगाती है। भारत के कुछ राज्यों में सिंदूर का चलन नहीं है, जबकि बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बंगाल, झारखंड, उड़ीसा, राजस्थान, असम में सिंदूर के बिना सुहागन ही नहीं माना जाता है। सनातन संस्कृति में किसी महिला का विवाहित होकर भी सिंदूर न लगाना अशुभ माना जाता है। सिंदूर भरना सुमंगली क्रिया में आता है।
आजकल पाश्चात्य सभ्यता में भी सिन्दूर का प्रचलन बढ़ रहा है। सिंदूर किसी भी स्त्री के व्यक्तित्व को गरिमा प्रदान करता है। सिन्दूर के सम्बन्ध में वैदिक धारणा है कि इसे लगाने के बाद पति,पत्नी का रक्षक बनता है तथा हर सुख-दु:ख का साथी बनता है। विवाह के समय पति-पत्नी की मांग में सांसारिक वैदिक रीति-रिवाज के साथ परिवार तथा समाज के सम्मुख सिन्दूर भरता है, इसे ही सनातनी संस्कृति में सिंदूरदान की प्रथा कहते है।
सिंदूरदान के बाद कन्या माता-पिता का घर छोडक़र पति के घर (ससुराल) जाती है। जिसे वह जीवन के अंतिम क्षण तक अपना ही मानती है। सिंदूरदान के बाद से ही उसका घर परिवर्तित हो जाता है। सिंदूरदान की परंपरा विश्वास एवं पत्नी की कामनाओं की अभिव्यक्ति है। धर्मानुसार वर जब पहली बार वधु की माँग में सिंदूर भरता है, तो उसके उपरान्त से विवाहिता हर दिन खुद ही अपनी माँग सिंदूर से भरती है।

सिंदूर में एक विवाहिता का पूरा ब्रह्माण्ड समाया होता है। विवाह के बाद से अपनी मृत्यु तक विवाहिता अपनी मांग में सिंदूर अवश्य लगाती है लेकिन वहीं दूसरी ओर पति के मृत्योपरान्त सिंदूर लगाना स्त्री के लिए वर्जित हो जाता है। अतएव सिंदूर प्रत्येक सनातनी स्त्री के सुहागन होने की निशानी है। पति के बिना विवाहिता स्त्री के लिए सिंदूर का महत्व शून्य हो जाता है। सनातनी विवाहित स्त्री के लिए सिंदूर सदैव सुहागन रहने का वरदान है। इससे स्त्रियों के रूप-सौंदर्य में निखार आता है एवं वो कोई भी परिधान पहने सिंदूर से उनके सौंदर्य एवं आभा में कई गुना वृद्धि हो जाती है। सिंदूर को पति की लंबी उम्र एवं सम्मान से जोडक़र भी देखा जाता है। सिंदूर से कोई स्त्री विवाहित है या नहीं इसका भी संज्ञान होता है। यह सुहागिन स्त्री का सबसे बड़ा एवं आकर्षक श्रृंगार माना जाता है। मान्यता है कि माता सती और पार्वती की शक्ति एवं ऊर्जा लाल रंग से व्यक्त होती है, इसीलिए अधिकतर स्त्रियां लाल रंग का सिंदूर लगाती हैं, जबकि विवाह में पीले सिंदूर का भी चलन है। छठ पूजा में तो पीले रंग का ही सिंदूर प्रायोग होता है।

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