Pandit Ji स्वास्थ्य वास्तुकला त्यौहार आस्था बाज़ार भविष्यवाणी धर्म नक्षत्र विज्ञान साहित्य विधि

देव उपासना में चावल को अक्षत क्यों कहते हैं


Celebrate Deepawali with PRG ❐


संकलन : वीनस दीक्षित तिथि : 24-01-2021

चावल भोजन में विशेष अनाज के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है। चावल के विभिन्न रूप पूरे वर्ष भर अनेक पकवानों में व भोजन को सुस्वादु बनाने में उपयोग होते हैं। धान के अंदर रहने वाला बीज चावल है,  जिसे धान को तोड़कर निकाला जाता है और फिर विभिन्न प्रक्रियाओं के बाद उपयोग में लाया जाता है। धन एक जलीय और थलीय घास है, जो उष्ण जलवायु में नहीं उपजता है, और विश्व के सभी जलीय और थलीय स्थानों में इसकी उपस्थिति देखी जा सकती है। चावल एक ऐसा अनाज है, जिसको कभी समाप्त नहीं किया जा सकता है, क्योंकि यह घास की ही एक प्रजाति में से एक है। इसी कारण से ही चावल को अक्षत नाम से भी जाना जाता हैं ।

सनातन संस्कृति में अक्षत को विशेष स्थान प्राप्त हैं, चाहे किसी भी देवी-देवता की पूजा आराधना हो, चाहे कोई तीज त्योहार हो, या फिर कोई उत्सव ही क्यों न हो, यज्ञ में आहुति करनी हो या तिलक करना हो, चावल के बिना कोई मांगलिक कार्य संभव ही नहीं होता है।

सनातनी  संस्कृति में भैयादूज के पर्व पर बहनें पूजा के लिए नारियल गोला इत्यादि सहित अपने अनुज को अक्षत रोली लगाती हैं। घर मे कोई नया वाहन या वस्तु के आते ही उनका भी पूजन कर अक्षत रोली का प्रयोग होता है। अक्षत के बिना विवाह संस्कार भी संभव नहीं होता है। विदाई के समय वधू अपना  गृह छोडते समय अपने परिजनों पर चावल छींटते हुए ससुराल जाती है और वधू पक्ष की महिलाएं उन चावलों को अपने आँचल में संभालती हैं। जिसका तात्पर्य होता है कि बेटी के विदा होने के बाद भी कुटुंब व परिवार ऋद्धि सिद्धि और धन धान्य से परिपूर्ण रहे।

हमारे धर्मशास्त्रों में भी चावल यानी अक्षत अति पवित्र अन्न माना गया है। पूजन में सामान्यतः श्लोक पढ़ा जाता है - अक्षताश्च सुरश्रेष्ठ कुंकमाक्ता: सुशोभिता: मया निवेदिता भक्त्या: गृहाण परमेश्वर॥  

पूजा में अक्षत को रंग सफेद का होने के कारण से शांति का प्रतीक और प्रत्येक दाना साबुत, समूचा या अखण्डित होने के कारण कार्य की पूर्णता का सूचक मानते हुए देव अर्पण किया जाता है। चावल सबसे ज्यादा सुपाच्य भोज्य अन्न होने के कारण भी अन्य अनाजों में श्रेष्ठ है, जिस कारण से भी भगवान के पूजन में चढ़ाया जाता है। अक्षत अर्पण कर प्रार्थना की जाती है कि व्यक्ति का प्रत्येक कार्य पूर्ण रूप से और शांतिप्रद तरीके से संपन्न हो जाए। जिसका अर्थ ही यही है कि जैसे अक्षत अखण्डित है, वैसे ही यजमान का अमुक पूजन भी पूर्ण हो जाए। यदि पूजन पाठ में कोई सामग्री घटती है, तो भी उक्त सामग्री का स्मरण कर अक्षत अर्पण किया जाता हैं।

किसी ना किसी देव के पूजन में कोई न कोई सामग्री या वस्तु निषेध होती है, जैसे - तुलसी को कुमकुम वर्जित है, और शिव जी को हल्दी वर्जित है, गणेश जी को तुलसी वर्जित है, और दुर्गा को दूर्वा वर्जित है,परंतु अक्षत ही एक ऐसा द्रव्य है, जो सभी देव पर समान भाव से अर्पित होता है।

अपने गृह में किसी भी आराध्य देव-देवी को मात्र एक माह चार चावल दाने चढ़ाकर प्रयोग कर के देखें, गृह में धन-धान्य की परिपूर्णता दिखने लगेगी। और घर में अन्नपूर्णा माता की प्रतिमा को चावल की ढेरी पर स्थापित करके रखने से जीवन भर धन-धान्य की कमी नहीं होती हैं। अर्थात् चावल अथवा अक्षत ऋद्धि सिद्धि और धन धान्य, समृद्धि का प्रतीक है।

पंडितजी पर अन्य अद्यतन