Pandit Ji स्वास्थ्य वास्तुकला त्यौहार आस्था बाज़ार भविष्यवाणी धर्म नक्षत्र विज्ञान साहित्य विधि

उपवास जीवन रक्षक और सौंदर्य व जैविक शक्ति वर्धक है


Celebrate Deepawali with PRG ❐


संकलन : जया मिश्रा Advocate तिथि : 21-01-2021

प्रत्येक जीव-जन्तु का प्राकृतिक परिवर्तनों के साथ ही प्रतिक्रिया करने का अपना तरीका है। - जैसे भालू ,बंदर, शेर बकरी और गिलहरी इत्यादि जानवर भी उपवास प्रक्रिया से गुजरते हैं। नई जलवायु या नई स्थिति का शरीर आदी नहीं होता है, उसे नई जलवायु या नई स्थिति मे ढालना ही जीवन की प्रतिक्रिया है, जिसमे उपवास एक वैज्ञानिक प्रणाली है। मानव सभी जीव-जन्तु के बीच सबसे उन्नत और खुद को हर परिस्थिति मे समायोजित करने वाला सक्षम जीव है, लेकिन शरीर हमेशा संतुलन बनाए रखना पसंद करता है, यदि बदलते परिवेश मे, प्राकृतिक परिवर्तनों के साथ शरीर को ना ढाला जाए, तो बदले में विभिन्न बीमारियों, एलर्जी और विकारो का जन्म होगा। सनातनी संकृति मे मान्यता है कि अनेकों जीव-जन्तुओ मे मानव शरीर आसानी से प्राप्त नहीं होता है। मानव जीवन बड़े उत्कृष्ट कर्मो का प्रतिफल होता है। 

चमत्कारिक रूप से सनातन सभ्यता इस वैज्ञानिक प्रणाली की अच्छी तरह से जानकार रही है और उसी अनुपात मे समझदार भी रही है। सनातन सभ्यता मे उपवास की एक सरल और बहुत शक्तिशाली अवधारणा का आविष्कार किया है और " सर्वे सन्तु निरामया " के विचार से प्रेरित होकर जीवन को सुदृन और सौंदर्यवादी बनाया है। सनातनी सांस्कृतिक व धार्मिक प्रथाओं का जीवन मे असाधारण विलय देखने को मिलता है। उपवास के पीछे मानव शरीर के विज्ञान में बहुत से वैज्ञानिक कारण व आधार निहित है। ऐसे कई चमत्कार हैं, जिनमें मानव को इस उपवास से लाभ मिला है।

पूर्ण-उपवास (बिना भोजन) की स्थिति में शरीर स्वाभाविक रूप से शुद्धिकरण (ऑटोफैगी) की एक बहुत शक्तिशाली प्रक्रिया आरंभ कर देता है, जिसका परिणाम शरीर मे व्याप्त सभी विषैले तत्वों और मृत कोशिकाए स्वतः नष्ट होती है और नई कोशिकाओं की संरचना होने लगती है। उपवास से विशिष्ट हार्मोनों का स्राव अतिरिक्त प्रोटीन (LDL) को हटाने में अत्यधिक कुशल होते हैं, जिसे (Bad colostral) खराब वसा भी कहा जाता है, जो धमनियों की दीवार पर चिपक जाता है और रक्त को हृदय धमनियों तक जाने से रोकता है, जिसके कारण दिल का दौरा पड़ता है और शरीर के "खराब-वसा" को भी कम करता है, और इसलिए इस अवधि के दौरान बहुत शांत और हल्का और आराम महसूस होता है।

भारी और गरिष्ठ भोजन, मांस और हानिकारक पेय पदार्थों के बावजूद यदि उपवास के बाद कोई भी प्राकृतिक खाद्य पदार्थ लेता है जैसे मौसमी फल, दूध और दूध से बने पदार्थ, ड्राई-फ्रूट्स आदि तो यह नकारात्मक को सकारात्मक ऊर्जाओं की एक श्रृंखला उत्पन्न करता हैं, जो रोग व्याधियों से लड़ने के जोखिम को रोकने में बहुत सहायक है। उपवास कैंसर जैसी घातक बीमारियाँ; तीव्र जठर शोथ को संतुलित करने में अत्यधिक प्रभावी। 

यह विभिन्न शोधों और पत्रिकाओं के अनुसार सिद्ध किया गया है और एक स्थापित वैज्ञानिक तथ्य है कि शरीर और दिमाग को सही संतुलन और मन को सही दिशा में और उर्जांवित रखने के लिए पूर्ण या आंतरायिक उपवास अत्यधिक सुसंगत विधि है, जो एक ऊर्जावान और सक्रिय बनाता है; और कम से कम एक सप्ताह की अवधि में उपवास करने की सलाह दी जाती है।

पंडितजी पर अन्य अद्यतन