संकलन : नीतू पाण्डेय तिथि : 19-01-2021
धर्म मानवीय जीवन को अर्थ, उद्देश्य और जीव जगत में कल्याण का मार्ग देता है। धर्म मनोवैज्ञानिक, शारीरिक कल्याण और जीवन में स्थिरता को बढ़ावा देता है और साथ ही जनमानस में सकारात्मक सामाजिक परिवर्तन के लिए प्रेरित करता है। जन भावनाओं में यह दृढ़ विश्वास के रूप में कार्य करता है। यह विश्वास अलौकिक शक्तियों, सर्वशक्ति और सर्वव्यापी अस्तित्व में अमरता प्रदान करता हैं। धर्म एक व्यक्तिगत विश्वास माना जा सकता है और जनमानस धर्म के भीतर कर्म के ढांचे में विभिन्न व्याख्याओं को चुनते हुए स्वतंत्र अनुकरण करता है। वैसे तो विश्व में कई धर्म विद्यमान है, जिसमें तीसरा सबसे बड़ा धर्म है सनातनी संस्कृति, जिसे हिन्दू धर्म के रूप में जाना जाता है।
सनातन संस्कृति न केवल एक धर्म है, बल्कि जीवन का एक सरल तरीका भी है, जिसमें लगभग 1.25 बिलियन अनुयायियों के साथ विभिन्न धार्मिक विचारों और इसके व्यवहार के तरीके हैं। सनातन संस्कृति में विश्वास के मापदंडों विभेद दिखता है, जिनका वर्गीकृत इस प्रकार है : - 1.अज्ञेयवाद 2.ज्ञेयवाद 3. सृष्टिवाद 4. प्रकृतिवाद।
1. अज्ञेयवाद ईश्वर का अस्तित्व अज्ञात या अनजाना मानता है। इन्हें नास्तिक भी कहा जाता है। नास्तिकता व्यापक अर्थों में, देवताओं के अस्तित्व में विश्वास की अनुपस्थिति है। मोटे तौर पर, नास्तिकता इस विश्वास की अस्वीकृति है कि कोई भी देवता मौजूद हैं। एकेश्वरवाद केवल एक ईश्वर के अस्तित्व में विश्वास है, जिसने दुनिया को बनाया है, वह सर्वशक्तिमान, सर्वव्यापी और सर्वज्ञ है, और दुनिया में हस्तक्षेप करता है। व्यापक अर्थों में, देवताओं के अस्तित्व में विश्वास की अनुपस्थिति है।
2. ज्ञेयवाद ईश्वर को सर्वव्यापी, सर्वशक्तिमान और ब्रह्मांडीय मानता है। इतिहास में सनातनी दर्शन में ज्ञेयवाद स्पष्ट देखा जा सकता है। सनातनी दार्शनिक में अटकलों और संदेह की एक मजबूत परंपरा रही है। ऋग्वेद के दसवें अध्याय के 'नारदीय सूक्त' में ऋषियों के दर्शन में सबसे मौलिक प्रश्न "इस ब्रह्मांड की उत्पत्ति कैसे हुई?" के बारे में अनुमान लगाया है। ज्ञेयवाद में एकेश्वरवादी एक ईश्वर में विश्वास करते हैं, जो कई रूपों और अवतारों में खुद को प्रकट करता है। ज्ञेयवाद इस श्लोक पर "एकम् सत् विप्रा बहुधा वदन्ति" पर आधारित है।
3. सृष्टिवाद वह धार्मिक विश्वास है जो मानता है कि प्रकृति, ब्रह्मांड, पृथ्वी, जीवन और मनुष्य जैसे पहलुओं की उत्पत्ति ईश्वरीय रचना के अलौकिक कृत्यों से हुई है। सृष्टिवाद में ब्रह्मांड को ब्रह्मा ने सृजन शक्ति के द्वारा बनाया गया था, ऐसा माना जाता है। निर्माण के उपरांत विष्णु ने संतुलन शक्ति से दुनिया को संरक्षित किया है और जन्म, जीवन और मृत्यु के चक्र को आदि-अनादि शिव नियंत्रित करते हैं। इस प्रकार जब-जब ब्रह्मांड नष्ट होगा, ब्रह्मा फिर से सृजन की प्रक्रिया शुरू करते हैं और फिर विष्णु और शिव जगत को चलायमान रखते हैं।
4. प्रकृतिवाद वह विचार या मान्यता है, जहां ब्रह्मांड में केवल प्राकृतिक नियम और शक्तियों द्वारा संचालित हैं। जैसे - अग्नि देव (अग्नि के देवता), वायु देव (हवा के देवता) और वरुण देव (जल के देवता)। प्रकृति के प्रति सम्मान और समर्पण व्यक्त करने के लिए पूजा की जाती है और प्रकृति ही ईश्वर तक पहुंचने का मार्ग हैं लेकिन एकमात्र उद्देश्य मोक्ष या मोक्ष प्राप्त करना है, जो पूर्णता प्राप्त करने के लिए पुनर्जन्म के चक्र को समाप्त करता है।
विश्वव्यापी धर्म शास्त्रों में मात्र एक सनातनी संस्कृति ही एक ऐसा है, जहां ईश्वर की अनेक परिभाषाएं है, परन्तु मार्ग सिर्फ एक, विचार भी सिर्फ एक, जो ईश्वर से जोड़ता है। सनातनवाद शांति, शोध और प्रकृति संरक्षण के नियमों का मूल है।
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