संकलन : वीनस दीक्षित तिथि : 19-01-2021
ऊँ हौं जूं स: ऊँ भुर्भव: स्व: ऊँ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।ऊर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ऊँ भुव: भू: स्व: ऊँ स: जूं हौं ऊँ
भारत के प्रत्येक प्रांत में अनेको ऐसे स्थल हैं जो पर्यटन व सांस्कृतिक दोनों ही दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं। इन स्थानों पर वर्ष भर विदेशी पर्यटकों के साथ भारतीय लोगों का भी जमावड़ा लगा रहा है। इन सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थलों में कई ऐसे मंदिर सम्मिलित हैं, जिनकी प्रसिद्ध मात्र भारत में ही नहीं बल्कि दुनिया भर में है और दुनिया के हर कोने से श्रद्धालु इन मंदिर में अपने आराध्य के दर्शन पाने के लिए आते हैं। ऐसे विश्वभर में ख्यातिलब्ध मंदिरों में से एक है महाराष्ट्र में स्थित त्र्र्यंबकेश्वर मंदिर....
यूं तो महाराष्ट्र प्रांत घूमने के लिए प्रति वर्ष कई पर्यटक जाते हैं। इसी प्रांत का एक विश्व प्रसिद्ध नगर है और उसका सनातनी संस्कृति से भी गहरा संबंध है वह नगर है नासिक...नासिक में लगने वाला कुंभ मेला संपूर्ण विश्व में प्रसिद्ध है। यहीं पर सनातन संस्कृति के प्रसिद्ध, पूजनीय व साक्षात शिव के स्वरूप माने जाने वाले 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक त्र्र्यंबकेश्वर भी है।
मान्यता के अनुसार त्र्र्यंबकेश्वर मंदिर अतिप्राचीन मंदिर है। जो भारत में नासिक शहर से 28 किलोमीटर एवं नासिक रोड से 40 किलोमीटर त्र्र्यंबकेश्वर तहसील के त्रयंबक शहर में बना हुआ है। यह मन्दिर महाराष्ट्र-प्रांत के नासिक जिले में हैं यहां के निकटवर्ती ब्रह्म गिरि नामक पर्वत से गोदावरी नदी का उद्गम स्थल है।
इन्हीं पुण्यप्रदायनी व संतापहरणी गोदावरी के उद्गम-स्थान के समीप स्थित त्रयम्बकेश्वर-भगवान की बड़ी महिमा है। एक पौराणिक कथा के अनुसार गौतम ऋषि तथा गोदावरी के प्रार्थना करने पर भगवान शिव ने इस स्थान में वास करने की कृपा की और त्र्र्यंबकेश्वर नाम से विख्यात हुए।
यह शिव मंदिर भगवान शिव के उन 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। जिन्हें भारत में सबसे पवित्र माना जाता है। इस मंदिर की सबसे अद्भुत और असाधारण बात है यहां पर स्थित शिवलिंग...ऐसा शिवलिंग भारत के किसी भी दूसरे मंदिर में आपको देखने को नहीं मिलेगा। ऐसी मान्यता है कि यहां भगवान ब्रह्मा , भगवान विष्णु,और भगवान रुद्र के दर्शन एक साथ एक ही शिवलिंग में हो जाते हैं। अन्य सभी ज्योतिर्लिंगों में केवल भगवान शिव ही विराजित हैं। इस लिंग के चारो ओर रत्न जडि़त मुकुट रखा हुआ है। जिसे त्रिदेव के प्रतीकों के रूप में रखा गया है। कहा जाता है यह मुकुट पांडवो के समय से ही यही पर रखा गया है। इस मुकुट में हीरा पन्ना और कई बेशकीमती रत्न जड़ें हुए है।
शिवपुराण के अनुसार ब्रह्मगिरि पर्वत के ऊपर जाने के लिये चौड़ी-चौड़ी सात सौ सीढिय़ाँ बनी हुई हैं। इन सीढिय़ों पर चढऩे के बाद ‘रामकुण्ड’ और ‘लक्ष्मणकुण्ड’ मिलते हैं और शिखर के ऊपर पहुँचने पर गोमुख से निकलती हुई भगवती गोदावरी के दर्शन होते हैं।
गोदावरी नदी के किनारे स्थित त्र्र्यंबकेश्वर मंदिर काले पत्थरों से बना है। मंदिर का स्थापत्य अद्भुत है। त्र्यंबकेश्वर मंदिर की भव्यता सिंधु-आर्य शैली का उत्कृष्ट प्रमाण है। मंदिर के अंदर गर्भगृह में प्रवेश करने के बाद शिवलिंग की केवल आर्घा दिखाई देती है, लिंग नहीं। गौर से देखने पर अर्घा के अंदर एक-एक इंच के तीन लिंग दिखाई देते हैं। इन लिंगों को त्रिदेव- ब्रह्मा-विष्णु और महेश का अवतार माना जाता है। भोर के समय होने वाली पूजा के बाद इस अर्घा पर चाँदी का पंचमुखी मुकुट चढ़ा दिया जाता है। इस मंदिर के पंचकोसी परिक्रमा मार्ग में कालसर्प शांति, त्रिपिंडी विधि और नारायण नागबलि की पूजा संपन्न होती है।
शिवरात्रि और सावन के सोमवार में इस मंदिर में भक्तों का ताँता लगा रहता है। भक्त भोर के समय स्नान करके अपने आराध्य के दर्शन करते हैं। यहाँ कालसर्प योग और नारायण नागबलि नामक खास पूजा-अर्चना भी होती है, जिसके कारण यहाँ साल भर लोग आते रहते हैं।
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