संकलन : जया मिश्रा Advocate तिथि : 21-01-2021
भारतीय परंपरा में शास्त्र, कला और विज्ञान के संयोग से उत्पन्न भूमि पर निवास करने की प्रणाली ही वास्तु शास्त्र अथवा वास्तु कला कहते हैं। प्राचीन काल से वास्तु को विद्या और कला का भाग माना जाता रहा है। वैदिक काल से अनुष्ठानों में वास्तुकला दृष्टिगत होती है।
अथर्ववेद में ब्रह्मविद्या के छंदों में वास्तुकला का प्रतिनिधित्व स्पष्ट मिलता है। संस्कृत में वास्तु का अर्थ है भूमि का साथ या संगत या भूमि पर रहने वाला या निवास करना। सनातनी ग्रंथों में वास्तु के संबंध में आकार, बनावट, माप, जमीन की तैयारी, अंतरिक्ष व्यवस्था और स्थानिक ज्यामिति के सिद्धांतों का विस्तृत वर्णन मिलता है।
सनातनी शास्त्रानुसार किसी भी रहन-सहन के स्थान की बनावट और आकार का उद्देश्य प्रकृति की संरचना के साथ सामंजस्य स्थापित कर सभी संरचनाओं को एकीकृत करना है। वास्तु विद्या में ज्ञान,विचारों और अवधारणाओं के बल पर मंदिरों, घरों, कस्बों, शहरों, उद्यानों, सड़कों, दुकानों और अन्य सार्वजनिक क्षेत्रों का चित्रण और साज-सज्जा और जीवनशैली स्थापित कर जीवन सरल-सुखद और आनंदमय बनाए जाने के सिद्धांत मिलते हैं।
विज्ञान के क्षेत्र में पहली शताब्दी ईस्वी से काफी पहले ही वराहमिहिर की बृहत् संहिता में शहरों और इमारतों की योजनाओं में वास्तु विद्या का वर्णन है। वास्तु-शास्त्र में मकान, मंदिर और शहर बनाने की कला पर कई आयाम मौजूद हैं। वास्तुशास्त्र में स्पष्ट है कि मंदिर कहाँ और कैसे बनाए जाने चाहिए। 6वीं शताब्दी ईस्वी तक भारत में महलनुमा मंदिरों की निर्माण कला संस्कृति प्रचलन में थी।
वास्तु-शास्त्र नियमावली में गृह निर्माण, नगर नियोजन और कुशल गाँवों, कस्बों और राज्यों को प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित करने के लिए राज्यों के भीतर के मंदिरों, जल निकायों और उद्यानों को शामिल किया गया है। ये मंदिर और नगर नियोजन ग्रंथ सैद्धांतिक थे, जिनमें शहर की योजना और सनातनी मंदिरों की कला, और कला के आदर्श के रूप में कल्पना की गई थी।
पौराणिक ऋषि मामुनीमय ने वास्तु शास्त्र को पुराणों में स्थान दिलाया था। ऋषि मामुनीमय ही विष्णु शास्त्र के रचयिता हैं। इन्हें भगवान विष्णु के मंदिरों में निर्माण कला का विशेषज्ञ माना जाता है। भगवान विश्वकर्मा के पांच बेटों में ऋषि मामुनीमय भी एक है। सनातनी शास्त्रानुसार भगवान विश्वकर्मा के आदेश पर ऋषि मामुनीमय ने श्रीकृष्ण के द्वारका शहर का निर्माण कराया था। विष्णुशास्त्र की रचना और सिंधु घाटी सभ्यता में ऋषि मामुनीमय के सिद्धांत स्पष्ट दिखते हैं। वास्तु शास्त्र सनातनी, सामाजिक और आध्यात्मिक जीवन का अभिन्न अंग है।
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