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अनियंत्रित विचार और अहंकार जन्म देता है - नशा


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संकलन : जया मिश्रा Advocate तिथि : 21-01-2021

नशा किसी भी प्रकार का हो, वह सत्यानाशी ही होता है और हम सब, कब और किस प्रकार से नशे के आदी हुए या हो रहे है, यह भी नही पता लगता है। पता तब लगता है, जब जन साधारण नशे के चंगुल में फस चुके होते है। नशे से बचना है, तो पहले नशे के बारे मे जानकारी रखना आवश्यक हो जाता है।  

नशा क्या है - मनुष्य का जब अपने किसी विचार, आदत, अथवा व्यवहार पर नियंत्रण नही रख पाता है। वह मनुष्य बार बार उन विचारो, आदतो और व्यवहार की तरफ झुकता है और वह उन काम या आदत को बार-बार करता है। अर्थात वह अपने झुकाव की उस आदत, विचार और व्यवहार को बिना किये नही रह सकता है, उसे ही नशा या लत कहते है। 

नशा तीन प्रकार का होता है - 1.अच्छा नशा या लत, 2.बुरा नशा या लत, 3.विचार शून्य नशा या लत

1.अच्छा नशा या लत - जिस व्यवहार, विचार, या आदत से मनुष्य के स्वयं का या स्वयं से जूड़े किसी भी सामाजिक मनुष्य या जीव जन्तु का कल्याण ही होता हैं और स्वयं में आनन्द अनुभूत करता है। उसे ही अच्छा नशा या लत कहते है। जैसे-पढ़ना, घुमना, मनोरंजन करना, चलचित्र देखना, तिर्थाटन करना इत्यादि-इत्यादि। यह नशा उन्नति, समृद्धि, और शक्तिवान बना सकता है, लेकिन यह शारीरिक पीड़ा या बीमारी को दे सकता है।

2. बुरा नशा या लत - जिस व्यवहार, विचार, या आदत से मनुष्य का स्वयं का तो हित हो या आनन्द मिले, परन्तु सामाजिक या प्रकृतिक अहित होता हैं, उसे ही बुरा नशा या लत कहते है। जैसे - आवश्यकता से ज्यादा धन एकत्र करना, बिना आवश्यकता के खरीददारी करना, मोबाइल का नशा, आवश्यकता से ज्यादा मद (अहम) में रहना, ज्यादा ज्ञान देना इत्यादि-इत्यादि। यह नशा दीमक के समान धीरे-धीरे उन व्यक्ति को मानसिक विकार या बीमारी तक ले जा सकता है। 

3. विवेक या विचार शून्य नशा या लत - जिस व्यवहार, विचार, या आदत से मनुष्य का स्वयं का अहित हो और साथ ही वह प्रकृतिक और सामाजिक कार्य प्रणाली में नाकारात्मक भुमिका निभाता है। इसे ही विवेक या विचार शून्य नशा या लत कहते है। यह नशा व्यक्ति को पता होता है कि वह उचित कृत्य नही कर रहा है, इससे उसे और उसके आस-पास में नुकसान एवं पीड़ा होगी, फिर भी उससे मुक्त नही हो पाता है। जैसे - अत्यधिक चाय या काफी पीना, धूम्रपान करना, कामवासनात्मक विचारो के वशीभूत वैश्याओ का बार-बार उपभोग करना, शराब,गांजा,भांग, अफीम, ज़र्दा, गुटखा, तम्बाकू, बीड़ी, सिगरेट, या चिलम का लती होना, स्मैक, कोकीन, ब्राउन शुगर जैसी घातक दवाओें और नशीले पदार्थों का उपयोग इत्यादि-इत्यादि। यह नशा पूर्ण रूपेण सत्यानाशी ही साबित होता है।

नशा क्यो जन्म लेता है - जीवन एक निरन्तर गतिमान रहने वाला चक्र है, जहाॅ हर पल कोई जन्म लेता है और कोई कालचक्र की गति को पूर्ण कर निवृत्त या मृत होता है। इसी काल चक्र की गति में मानव अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष की प्राप्ति की इच्छा से कर्म करता हैं और उन्ही कर्मो के आधार पर विचार और विकार भी जन्म लेते है। जब उसके विचारो में तीव्रता और जरूरत से ज्यादा आत्मविश्वास (अहंकार) उत्पन्न होता है, तब नशा या लत का आरम्भ होता है। 

नशा क्यो खराब है - नशा भी एक व्याधि ही मानी जाती है, क्योकि यह नशा धीरे-धीरे रोगो तक मनुष्य को लेकर ही जाता है और यदि समय पर या समय से उपचार न किया जाय, तो यह अवसाद, आत्मशक्ति विनाशक और कई बीमारी को शरीर में जन्म देता ही है। बीमारी किसी भी प्रकार हो, वह अच्छी तो, नही हो सकती है। उसे समाप्त करना जरूरी है।

नशे से बचाव और उपचार की चर्चा अगले प्रकाशन मे............

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