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Dhumavati Jaynti - सुरक्षात्मक धुआँ बनकर नकारात्मकता और मृत्यु भय से मुक्ति दिलाती है माँ धूमवती।


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संकलन : नीतू पाण्डेय तिथि : 25-05-2023

दस महाविद्याओं में सातवी देवी धूमावती का स्वरुप और महिमा

धूमावती को कौवा प्रतीक चिन्ह वाले घोड़े रहित रथ पर सवार, पतली, अस्वस्थ, कुरूप, बूढ़ी, पीले रंग, विधवा के रूप में पुराने मालिन वस्त्रों और गहनों से अलंकृत, बिखरे केशो के साथ चित्रित कर दर्शाई जाती है एवं उनके दो कांपते हाथों में से एक में सूप की टोकरी और दूसरा हाथ वरद मुद्रा या ज्ञान देने वाली मुद्रा है। देवी धूमावती को एक वृद्ध,अशुभ और अनाकर्षक मानते हुए ऐसी ही चीजों और व्यक्तित्व के जीवो से जुड़ी शक्ति के रूप में इनका पूजन होता है। यह सदैव भूखी-प्यासी रहकर झगड़े को उत्पन्न करने की पहल करती है। दस महाविद्याओं में सातवीं हैं।

जब दुष्ट जल आत्मा सौर प्रकाश के अस्पष्ट रहने के समय, अंधेरा के साथ शासन करती हैं और आत्मा अपनी सामान्य चमक खोती है, ऐसी अवधि पर अलक्ष्मी के समान धूमावती वर्षा ऋतु के चार मासो पर शासन करती है। जिसे अशुभ अवधि मानते हुए विवाह जैसे सभी शुभ समारोह त्याज्य किया जाता है। दस महाविद्याओं में सातवी देवी धूमावती का ब्रह्मांडीय विघटन (प्रलय) के समय जब "शून्य" काल अर्थात सृजन से पहले और विघटन के बाद प्रगटन माना जाता है।

विशेषताओं और प्रकृति में इनकी तुलना देवी अलक्ष्मी, देवी ज्येष्ठा और देवी निरिति से की जाती है। ये तीनों ही देवियाँ नकारात्मक गुणों का अवतार कही जाती है, लेकिन उसके नकारात्मक पहलुओं को सकारात्मक पहलुओं में परिवर्तित करने के उद्देश्य से वर्ष के विशेष समयावधि पर हजार-नाम का भजन करके इनकी उपासना की जाती है।

नकारात्मक से परे सारे द्वार बन्द हो, तो धूमवती पथ प्रदर्शक

जब भक्त के पास नकारात्मक से परे सारे द्वार बन्द हो, तो धूमवती पथ प्रदर्शक रूप में अशुभ गुणों से,अत्यधिक भूख और क्रोध को शांत कर सभी परेशानियों से बचावकर्ता और मोक्ष सहित सभी इच्छाओं और पुरस्कारों का अनुदानकर्ता बनकर रक्षा करती है। घोर दरिद्रता से मुक्ति एवं शरीर को सभी प्रकार के रोगों से मुक्त की कामना से ही देवी धूमावती साधना की जाती है। सिद्धियों (अलौकिक शक्तियों) की दात्री, कोमल-हृदयी और वरदानों की दाता धूमावती को एक महान शिक्षक के रूप में पूजा जाता है, जो ब्रह्मांड के भ्रामक विभाजनों से परे शुभ और अशुभ का परम ज्ञान प्रकट करती हैं, उनका कुरूप रूप भक्त को जीवन के आंतरिक, सतही, भीतरी सत्य की तलाश करना सिखाता है।
धूमावती की पूजा समाज के अविवाहित सदस्यों, जैसे कुंवारे, विधवाओं और विश्व त्यागियों के साथ-साथ तांत्रिकों  के लिए भी आदर्श मानी जाती है। जो लोग अपने शत्रुओं को हराना चाहते हैं उनके लिए भी उनकी पूजा का विधान है।  उनकी पूजा भक्त को सुरक्षात्मक धुआँ बनकर नकारात्मकता और मृत्यु से बचाने वाला माना जाता है। विवाहित लोगों को धूमावती की पूजा नहीं करने की सलाह दी जाती है।  ऐसा कहा जाता है कि उनकी पूजा से एकांत चाहने की भावना पैदा होती है और सांसारिक चीजों से अरुचि पैदा होती है, जिसे आध्यात्मिक खोज की सर्वोच्च विशेषता माना जाता है। धूमावती की पूजा केवल  दक्षिण मार्ग  ("दाहिने हाथ का मार्ग") से जाती है।

धूमावती माँ को अशुभता के पार एक स्थानीय सुरक्षात्मक देवता का दर्जा प्राप्त

मंदिर में वह अपनी अशुभता के पार एक स्थानीय सुरक्षात्मक देवता का दर्जा प्राप्त कर लेती है। जहां विवाहित जोड़े भी इनकी पूजा करते हैं। तांत्रिक अनुष्ठान मे इनकी पूजा श्मशान घाटों और जंगलों जैसे एकांत स्थानों में निजी तौर पर प्राचलित है। प्राण तोषिनी तंत्र में वर्णित पौराणिक कथानुसार देवी सती ने अत्यधिक भूख और क्रोध को शांत करने के लिए शिव जी को निगल गई और स्वयं शिव के अनुरोध पर बाद में उनको प्रगट किया था, जिससे कुपित होकर शिव जी ने उन्हे अस्वीकृत कर उन्हे विधवा रूप का श्राप से दिया।
शक्ति संगम तंत्र  कहता है कि किसी व्यक्ति के उच्चाटन (उन्मूलन) के लिए धूमावती की पूजा  की जाती है। एक अन्य तांत्रिक पाठ में उल्लेख है कि उपासक यदि देवी के मंत्र को दोहराते हुए श्मशान की लौ में एक कौआ जलाकर, राख को दुश्मन के घर में  फैला दे, तो उसका सम्पूर्ण विनाश हो जाता है। जबकि काल रुद्र-तंत्र कहता है कि धूमावती की पूजा विनाशकारी उद्देश्यों के लिए की जाती है। शाक्त-प्रमोदा का कहना है कि उसकी पूजा किसी के शत्रुओं को नष्ट कर सिद्धि प्राप्ति हेतु उपयोगी है। सिद्धियों (अलौकिक शक्तियों) की दात्री, कोमल-हृदयी और वरदानों की दाता धूमावती को एक महान शिक्षक के रूप में पूजा जाता है, जो भक्त को सुरक्षात्मक धुआँ बनकर नकारात्मकता और मृत्यु भय से मुक्त करती है।

धूमावती माँ, जीवन के आंतरिक, सतही, भीतरी सत्य की तलाश करती हैं।

उनका कुरूप रूप, भक्त को जीवन के आंतरिक, सतही, भीतरी सत्य की तलाश करना सिखाता है। जब भक्त के पास नकारात्मक से परे सारे द्वार बन्द हो, तो धूमवती पथ प्रदर्शक रूप में अशुभ गुणों से, अत्यधिक भूख और क्रोध को शांत कर सभी परेशानियों से बचावकर्ता और मोक्ष  सहित सभी इच्छाओं और पुरस्कारों का अनुदानकर्ता बनकर रक्षा करती है। धूमावती की पूजा में उपासक को व्रत का पालन करते हुए पूरे दिन और रात मौन रह कर "अग्नि बलिदान" भी करना चाहिए। ऐसी धूमावती माँ को दंडवत प्रणाम और कामना है कि माँ कि कृपा से सभी का कल्याण हो।

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