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Makar Sankranti - मकर संक्रांति के उपरांत प्राणियों मे उर्जा स्थिर, शान्त संतुलित, दीर्घ सूत्री कार्यप्रणाली के विकास का वैज्ञानिक पहलु।


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संकलन : नीतू पाण्डेय तिथि : 04-01-2023

पाषाण युग से ही सनातन संस्कृति के अंतर्गत मनाए जाने वाले पर्वों, उपवासों और अन्य धार्मिक क्रिया कलापों का संबंध विशुद्ध रूप से प्रकृति, खगोलीय गणनाओं एवं विज्ञान के साथ रहा है। सनातन संस्कृति का कोई भी पर्व और उपवास ऐसा नहीं है, जो वर्तमान अवस्था में उपस्थित प्रकृति परिवेश और खगोलीय गणनाओं और घटनाओं से संबंध न रखता हो। इस सबंध का बहुत ही गूढ़ रहस्य भी है, जिसे सरलता से समझा जा सकता है। सहस्‍त्रो दशको पूर्व ही इन वैज्ञानिक तथ्‍यो का ज्ञान सनातनी पूर्वजों व ऋषि मुनियों को हो गया था। सनातन संस्कृति में गतिशील और परिवर्तनशील रहने वाली प्राकृति के साथ लगातार साम्जस्य बनाने का अति-दुर्लभ प्रयास सहस्त्रो वर्षो से किया जाता रहा है।

मानव और प्रकृति के संबंध को और भी अधिक सुदृढ़ बनाये रखे जाने के लिये ही अलग-अलग कालखंडों में ऐसे व्रत उपवास व पर्वों को संग्रहीत किया गया है, ताकि मानव-जाति और प्रकृति में एक लयबद्ध क्रमबद्ध व सुव्यवस्थित संबंध स्थापित रहे। इसी क्रम में प्रत्यक्ष रूप में मनुष्य को बदलते हुए प्राकृतिक परिवेश के अनुसार खुद तैयार करने का पर्वनाम सम्मुख आता है, मकर संक्रांति। खगोलिय चक्र में सूर्य का उत्तरायण भाग में गतिशील रहते हुए मकर रेखा के अक्षांश में प्रवेश के प्रथम दिवस की घटना को ही मकर राशि की संक्रांति कहा जाता है। सामान्य जनमानस के दृष्टिकोण से मकर राशि में सूर्य प्रवेश कर पूरे मास मकर राशि में ही गतिशील रहते हैं।  सनातन धर्म शास्त्रों में मकर संक्राति को लिए बहुत कुछ वर्णित है।

सामान्यतः भारतीय पंचांग के अनुसार चंद्रमा की गति को आधार मानकर समस्त तिथियाँ निर्धारित की जाती हैं,  किंतु मकर संक्रान्ति से सूर्य की गति को आधार मानकर तिथियो का निर्धारण किया जाता है। ज्योतिषीय गणनाओं में सूर्य एक राशि का काल पूर्ण कर अगली द्धितीय राशि में प्रवेश करते हैं, जिससे प्राकृतिक वायुमण्डल, वातावरणीय एवं जीवन के स्वभाव व व्यवहार में भिन्‍नता और परिवर्तन आता है,  इसी पृथ्वी पर सूर्य की उष्‍मीय त्वरित परिवर्तित स्थिति की प्रक्रिया को ही संक्रान्ति का सम्‍बोधन दिया गया है। जब सूर्य की उष्‍मीय त्वरित परिवर्तन की स्थिति के साथ ही वायुमण्डल और मौसम में भारी परिवर्तन दिखाई देने लगता हैं।

इस शुभ पर्व को सूर्य का उत्तरायण होना भी कहा जाता है, क्‍योकि मकर संक्रांति से ही सूर्य महाराज पृथ्वी के उत्तरायण भाग में संचरण करना आरम्‍भ करते हैं, जिसे शास्‍त्रीय भाषा में प्रवेश कहा जाता है। सूर्य का कर्क व मकर राशियों में प्रवेश अथवा संक्रमण क्रिया छह-छह माह के अंतराल पर होती है। इसी कारण सारे भारतवर्ष में लोग धार्मिक दृष्टि से अत्यंत फलदायी मानते हुए विविध रूपों में सूर्य की उपासना, आराधना एवं पूजन कर उनके प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट करते हैं। भारतीय पंचांग पद्धतिनुसार कर्क राशि में सूर्य के संक्रमण से भारत भूमि और सूर्य की दूरी अपेक्षाकृत अधिक होने लगती है और वही इसके विपरित मकर संक्रान्ति से ही भारत भूमि और सूर्य की दूरी अपेक्षाकृत कम होने लगती है।

भारत देश पृथ्वी के उत्तरी गोलार्ध में स्थित है,  इसीलिये सूर्य के दक्षिणी गोलार्ध में प्रवेश (कर्क संक्राति) के साथ ही भारत की भूमि पर शीतता का आरम्‍भ होने लगता है और रात्रि की अवधि में वृद्धि और दिन की अवधि में घटत होने लगती हैं। अर्थात दिन लघु और रात्रि दीर्घ होने के साथ ही शीतता का प्रकोप भी शनै शनै बढ़ता जाता है और धीरे धीरे शीत ऋतु अपने चरम तक पहुचती है, किंतु मकर संक्रान्ति से सूर्य के उत्तरी गोलार्ध में प्रवेश के साथ ही विपरित प्रक्रिया होने लगती है। अर्थात जैसे जैसे सूर्य उत्तरी गोलार्ध में बढ़ता जाता है, वैसे वैसे ही रात्रि लघु और दिन दीर्घ होने लगता है और शीतता कम होने के साथ उष्‍णता में तेजी आने लगती है, जिससे फिर से भूमि पर गर्मी का प्रभाव बढ़ने लगता है।

सूर्य के दक्षिणायन से उत्तरायण में प्रवेश के साथ ही धीरे-धीरे सर्दी कम होने लगती है और मकर संक्रान्ति से गरमी का मौसम आरम्‍भ हो जाता है। दिन के वातावरण में तापमान धीरे-धीरे बढ़ने लगता है और वातावरणीय बदलाव से प्राणियों में नई ऊर्जा का संचार शुरू होता है। मकर संक्रान्ति से अंधकार से प्रकाश की ओर गति की प्रक्रिया होने लगती है, जो मानवीय जीवन में चेतना, उर्जा, जैवीक विकास की वृद्धि को दर्शाता है। एैसा इसलिये क्‍योकि दिन बड़ा और प्रकाशवान हो जाता है तथा रात्रि छोटी और अंधकार न्‍यूतम रह जाता है। यह परिवर्तन सम्‍पूर्ण प्राणि जगत के लिये ही अति महत्‍वपूर्ण और जैवीक चेतना से जाग्रत करने वाली होती है।

खगोलिय संरचनाओ में सौरमंडल सर्वाधिक चमकदार, उर्जावान व प्रकाशवान ग्रह सूर्य ही है, जिसकी उर्जा से ही पृथ्वी पर जीवन चक्र गतिमान है। ज्योतिषीय गणनाओं में सूर्य का सभी राशि पर समान प्रभाव रहता है, किन्‍तु उन राशियो की प्रवृति अनुसार अलग अलग प्रभाव दिखता है। मकर राशि को स्थिर, शान्‍त, संतुलित और दीर्घ सूत्री माना गया है, इस राशि में सूर्य प्रवेश के साथ ही प्राणी की उर्जा में स्थिर, शान्ति संतुलन और दीर्घ सूत्री कार्यप्रणाली विकसित होने लगती है, जो प्राणियो की जैवीक संरचना में सर्वाधिक महत्‍व रखती है। 

परंतु पिछले कुछ कालखंड में इस पर्व को लेकर बहुत असमंजस की स्थिति रहती है। वर्तमान कालखंड में इस पर्व को लेकर यह संशय की स्थिति क्यो होती है, जिसका ज्ञान न केवल संसय समाप्त करेगा, बल्कि मस्तिष्क में छाए संशय के बादल भी हटा देगा। समान्य रूप मे 14 जनवरी को मकर संक्रांति निश्चित रहती है, किन्तु कभी-कभी भ्रम की स्थिति मे 15 जनवरी को भी यह पर्व मनाया जाता है। वस्तुत: अलग अलग स्‍थलो के अक्षांश-रेखांश के अनुसार सूर्योदय के परिणामस्वरूप सूर्य के राशि परिवर्तन में समयांतर हो जाता है। पंचांग पद्धति से अधिकतर भागों में संक्रांति पर्व निर्विवाद रूप से 14 जनवरी को ही मनाये जाने की प्रथा प्रचलन में है। इस प्रकार सूर्य के मकर राशि में प्रवेश की उद्या तिथि को ही मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाता है। मकर संक्राति आंग्ल नववर्ष का सर्व प्रथम पडने वाला भारतीय पर्व है, जिसका धार्मिक, ज्योतिषीय, स्वास्थ्य एवं वैज्ञानिक उद्देश्यो से मकर संक्रांति पर्व सर्वाधिक महत्व है। सभी सनातनी पवित्र नदियों में स्नान के साथ ही ढोल-नगाड़े, गायन, नृत्य और पतंगबाजी जैसे विभिन्न आनंद दायक कार्यों के साथ सनातनी इस त्यौहार का आनंद उठाते हैं।

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