संकलन : वीनस दीक्षित तिथि : 15-07-2021
अषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी को ताप्ती जयन्ती और सूर्य का कर्क राशि में प्रवेश होना इस तिथि को विशेष बनाता है। मध्यप्रदेश के छोटे से नगर मुलताई से ताप्ती नदी का उदय सूर्य के कर्क राशि में प्रवेश दिवस को ही माना जाता है। इस तिथि को मूलतापी के रुप में भी जाना जाता है, जिसका अर्थ ‘तापी का मूल’ या ‘तापी माता’ है। देवी ताप्ती को ताप्ती गंगा भी कहते है।
प्रतिवर्ष अषाढ़ मास शुक्ल पक्ष की सप्तमी को मुलताई नगर में ताप्ती जन्मोत्सव मनता है। पौराणिक गंगा नदी के बराबर ही ताप्ती नदी का भी धार्मिक महत्व है। मध्यप्रदेश राज्य की दूसरी प्रमुख नदी में ताप्ती नदी भी एक है। ताप्ती नदी का धार्मिक ही नही आर्थिक और सामाजिक महत्व भी है। ताप्ती नदी का उपयोग आयात व निर्यात में किया जाता रहा हैं। यहाँ भगवान शिव का एक मन्दिर ‘केदारेश्वर’ स्थित है। यह नदी पूर्व से पश्चिम की ओर बहती है। ताप्ती नदी, अरब सागर में खम्बात की खाड़ी में गिरती है। अगस्त 1915 में भारत की इसी ताप्ती नदी के नाम पर ही थाईलैंड की तापी नदी का नाम भी रखा गया है।
सनातन संस्कृति के स्कंद पुराण अनुसार यदि कोई भक्त गंगा में स्नान करता है, नर्मदा को निहारता है और ताप्ती को याद करता है, तो किसी भी व्यक्ति को सभी पापों से मुक्ति होती है। तापी पुराण में भी ताप्ती नदी का व्यापक रूप से उल्लेख मिलता है कि ताप्ती नदी को सूर्य देव की बेटी व शनि महाराज की बहन हैं, जिनको स्वयं सूर्य देव ने अपनी प्रचंड गर्मी से खुद को शान्त व ठंडक के लिए जन्म दिया था। ताप्ती नदी का विवाह संवरण नामक राजा के साथ हुआ था, जो कि वरुण देवता के ही अवतार थे। ताप्ती अन्य नदियों की तुलना में ज्यादा पवित्र मानी गयी है। ताप्ती नदी शनि देव की बहन होने के कारण शनिग्रह के प्रकोप से परेशान लोगों की पीड़ा को हर लेती हैं। जो लोग शनि की दशा, महादशा, साढ़ेसाती आदि से परेशान है, उन्हे ताप्ती नदी में स्नान करके अपने बुरे कर्मों के लिये क्षमा मांगने से शनिग्रह शान्त होते है और कष्ट से निवारण भी हो जाता है।
ताप्ती नदी के सात धर्मिक महत्व वाले कुण्ड (1. सूर्यकुण्ड, 2. ताप्ती कुण्ड 3.धर्म कुण्ड 4.पाप कुण्ड 5.नारद कुण्ड 6.शनि कुण्ड और 7.नागा बाबा कुण्ड) हैं। यह कुंड मुल्तापी के सीमावर्ती स्थानों से जुड़े हुये हैं।
सूर्यकुण्ड - इस कुंड को लेकर मान्यता हैं कि पृथ्वी के ग्रहो के प्रथम देवता कहे जाने वाले भास्कर (सूर्य) ने अपनी रश्मियों के तेज प्रभाव के भयंकर ताप से से खुद को शान्त व ठंडक के लिए प्रतिवर्ष ताप्ती जयन्ती को स्वंय स्नान करते है। जिसका प्रभाव यह माना जाता है कि जो भक्त इस तिथि को ताप्ती नदी में स्नान करता है, उसे सूर्य के समान तेज़ प्राप्त हो जाता है।
ताप्ती कुण्ड - सूर्य की रश्मियों के तेज प्रभाव से उत्पन्न भयंकर ताप से उनके पसीने के तीन बूंदें अचानक आकाश, धरती और फिर पाताल पहुंची, जिनमें से धरती पर इस कुंड में गिरी एक बूंद से ताप्ती माता का अवतरण माना जाता है। तभी से इस कुंड को लोकहित, जनकल्याण व सभी जीवों की रक्षा करने के उद्देश्य हेतु ताप्ती नदी में स्नान की प्रथा लोक रीतियों में चली आ रही है। वर्तमान में ताप्ती कुण्ड ने एक बहती हुई नदी का रूप ले लिया है।
धर्म कुण्ड – ऐसा लोक कथाओ में प्रचलित है कि मुत्युलोक के देवता यमराज ने स्वंय यहाँ स्नान किया था, जिस कारण से यह धर्म कुण्ड कहलाता है। जिसका प्रभाव यह माना जाता है कि जो भक्त इस तिथि को ताप्ती नदी में स्नान करता है, उसे कर्मफल के फलदाता यमराज के आशीर्वाद से जन्म जन्मांतरों के पापक विचार व कर्म नष्ट होकर धार्मिक एवं लोक कल्याणकारी विचार व कर्म जन्म लेते हैं और अंत मे सद्गति और स्वर्ग प्राप्ति कि संभावना बनती है।
पाप कुण्ड – किवदंती है कि मुत्युलोक के देवता यमराज के स्नान के पश्चात उनके यमदूतों ने पाप कुण्ड में स्नान किया था, जिस कारण से यह कुण्ड पाप कुण्ड कहलाता है। पाप कुण्ड में स्नान करने से सभी प्रकार के सहस्त्रों पापों से मुक्ति मिलती है। पापी व्यक्ति यदि शुद्ध अन्तःकरण या मन से माता ताप्ती का स्मरण करके स्नान करने से मन के सारे पाप नष्ट और धुल जाते हैं।
नारद कुण्ड – पौराणिक शास्त्रानुसार देवर्षि नारद को पुराण की चोरी करने के अपराध में कोढ़ रूपी श्राप से मुक्ति नारद कुण्ड पर ही प्राप्त हुई थी। नारद कुण्ड के पास ही बारह वर्षों तक देवर्षि नारद ने माँ ताप्ती की तपस्या करके उनसे वर माँग कोढ़ रूपी श्राप से मुक्ति प्राप्त की थी। पापी व्यक्ति यदि शुद्ध अन्तःकरण या मन से माता ताप्ती का स्मरण करते हुए स्नान करता है तो उक्त मनुष्य के रोग, ताप, श्राप और कर्ज से मुक्ति हो जाती है।
शनि कुण्ड - धार्मिक एवं पौराणिक मतानुसार शनि देव पहले इस कुंड में स्नान कर शुद्ध अन्तःकरण से अपनी बहन ताप्ती से मिलने गए थे और आज भी बहन ताप्ती से मिलने आते हैं। इस कुण्ड में स्नान करके मनुष्य को प्राप्त शनि की महादशा का बुरा प्रभाव समाप्त होता है और शनिदेव की स्वयं कृपा भी मिलती है।
नागा बाबा कुण्ड - यह नागा सम्प्रदाय के नागा बाबाओं का कुण्ड है। सदियों वर्ष पूर्व नागा बाबाओं ने यहाँ के तट पर कठोर तपस्या करके भगवान शिव को प्रसन्न किया था। इसका साक्षात प्रमाण इस कुण्ड के पास स्थित सफेद जनेऊधारी शिवलिंग आज भी विधमान है।
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