संकलन : वीनस दीक्षित तिथि : 12-07-2021
श्री जगन्नाथ रथ यात्रा, लोकप्रिय भक्ति रस की यात्रा
श्री जगन्नाथ रथ यात्रा पर्व भारत वर्ष की सबसे लोकप्रिय भक्ति रस की यात्रा हैं, जिसमें ना सिर्फ भक्त बल्कि प्रकृति भी झूम झूम कर बारिश की फुहारो के साथ रथ यात्रा का आनन्द लेती है। आषाढ़ शुक्लपक्ष द्वितीया से रथ यात्रा का उत्सव प्रारम्भ होकर देवशयनी एकादशी तक अर्थात् दस दिनों तक श्री जगन्नाथ यात्रा के कई छोटे-छोटे आयोजन किये जाते हैं। इस बहुत ही अनूठी यात्रा को देखने और सम्मिलित होने के लिये भारत के सभी राज्यों से हजारों और लाखों की संख्या में लोग मीलों दूरी की यात्रा तय करके आते हैं।
भारत देश के उड़ीसा राज्य में स्थित पुरी जिले के श्री जगन्नाथपुरी मन्दिर से विशाल रथ यात्रा आयोजन किया जाता हैं। रथयात्रा के समय रथयात्रा के दर्शन करने से ही पापों मुक्ति और रथ को छूना अत्यंत पुण्यकारी माना जाता है। पुरी जिले को जगन्नाथपुरी, पुरुषोत्तम पुरी, शंख क्षेत्र, श्रीक्षेत्र के नाम से भी जाना जाता है। जगन्नाथ रथ यात्रा के लिये प्रतिवर्ष नये रथों का निर्माण कर प्रयोग में लाया जाता हैं।
जिसमें श्री बलराम का तालध्वज रथ 65 फीट लंबा, 65 फीट चौड़ा और 45 ऊंचा फीट,जगन्नाथ जी का गरुण ध्वज रथ (नन्दीघोष) 45 फीट ऊंचा, 35 फीट लम्बा 35 फीट चौड़ा तथा 16 पहियों के साथ, और सुभद्रा जी का पद्म ध्वज रथ 43 फुट ऊंचा 35 फीट लम्बा 35 फीट चौड़ा तथा 12 पहियों के साथ होता हैं श्री रथयात्रा में सबसे आगे ताल ध्वज रथ पर श्री बलराम, उसके पीछे पद्म ध्वज रथ पर सुभद्रा व सुदर्शन चक्र और अन्त में गरुण ध्वज रथ (नन्दीघोष) पर श्री जगन्नाथ चलते हैं।
रथयात्रा प्रारंभ होने से एक दिन पूर्व ही शाम को रथ पुरी जिले के गुंडीचा मन्दिर प्रांगण पहुँचता है और अगले दिन श्री कृष्ण अपने भाई बलदेव व बहन सुभद्रा के साथ मन्दिर से यात्रा निकलती है। मान्यता है कि भक्तों को दर्शन देने के लिये भगवान मन्दिर में नौ दिन तक रहते हैं। इस दर्शन विधि को आड़प-दर्शन कहा जाता है। रथयात्रा में भगवान श्री जगन्नाथ जी के लिये विशेष प्रसाद (महाप्रसाद) बनता हैं।
स्कन्द पुराण में उल्लिखित है कि जो भक्त रथ-यात्रा में श्री जगन्नाथ जी के नाम का कीर्तन करता हुआ गुंडीचा नगर तक जाता है वह पुनर्जन्म के पापों से भी मुक्त होता है और जो भक्त श्री जगन्नाथ का दर्शन हेतु धूल-कीचड़ आदि की चिंता से मुक्त रहकर मार्ग में दण्डवत् होकर जाता है, वह भक्त सीधे श्री विष्णु के उत्तम धाम को जाता हैं। और जो भक्त दक्षिण दिशा से गुंडिचा मंडप में रथ पर विराजमान श्री कृष्ण, बलराम और सुभद्रा के दर्शन करते हैं, वह भक्त मोक्ष प्राप्त करते हैं।
श्री जगन्नाथपुरी मंदिर में वैष्णव धर्म के अनुसार स्थापित खंडित मूर्तियां राधा और श्रीकृष्ण की युगल प्रतीक स्वयं श्री जगन्नाथ हैं और उनके साथ ही श्रीकृष्ण की बहन सुभद्रा, और बड़े भाई बलभद्र स्थापित है। मान्यता इन खंडित मूर्तियों का कई बार जीर्णोद्धार करने की कोशिश की गई है लेकिन किसी न किसी कारण से जीर्णोद्धार पूर्ण नही हो पाता हैं। आज भी वे अपूर्ण और अस्पष्ट मूर्तियाँ श्री जगन्नाथ रथयात्रा में सुशोभित व प्रतिष्ठित की जाती हैं।
तीनों खंडित मूर्तियों के पीछे की प्राचीनतम् कथा :-
नीलांचल सागर (आज का उड़ीसा) के पास राजा इन्द्रद्युम्न सपरिवार रह रहे थें, उनको अकस्मात् ही समुद्र में एक विशालकाय काष्ठ मिला, जिसको देख कर राजा ने उससे विष्णु की मूर्ति निर्माण कराने का निश्चय ले लिया, जिसे बनाने के लिये विश्वकर्मा जी स्वयं ही वृद्ध बढ़ई के रूप में प्रगट हो गए। राजा के परिवारजनों को यह ज्ञात न था कि वह वृद्ध बढ़ई कौन है। विश्वकर्मा जी ने मूर्ति बनाने के लिए एक शर्त रखी कि मैं जिस घर में मूर्ति बनाऊँगा, उसमें पूर्णरूपेण मूर्ति बन जाने तक कोई नही आएगा। जिसे राजा ने स्वीकार कर लिया।
कई दिन तक घर का द्वार बंद रहने पर महारानी के मन में संसय उत्पन्न हुआ कि वह वृद्ध बढ़ई बिना खाए-पिये अब तक जीवित भी होगा या नहीं। महारानी ने महाराजा को अपनी सहज शंका से अवगत करवाया, जिसके बाद राजा इन्द्रद्युम्न ने भवन के द्वार खुलवा दिए, जहाँ उन्हें वह वृद्ध बढ़ई कहीं नहीं मिला, लेकिन वहां वृद्ध बढ़ई द्वारा अर्द्धनिर्मित श्री जगन्नाथ, सुभद्रा तथा बलराम की काष्ठ मूर्तियाँ मिली।
जिसे देख राजा-रानी दोनों व्याकुल और दुखी होने लगे, लेकिन तभी दोनों ने आकाशवाणी सुनी, 'व्यर्थ दु:खी मत हो, हम इसी रूप में रहना चाहते हैं और मूर्तियों को द्रव्य आदि से पवित्र कर यहीं स्थापित करवा दो।' आज जिस जगह पर श्रीजगन्नाथ जी का मन्दिर है, उसी स्थल पर ही मूर्ति का निर्माण हुआ था। जगन्नाथ पुरी की यात्रा का आरंभ हजारों वर्ष पूर्व हुआ था जब श्रीकृष्ण की बहन सुभद्रा ने द्वारिका भ्रमण की इच्छा प्रकट की। तब श्रीकृष्ण व बलराम ने अलग-अलग रथों में बैठकर बहन सुभद्रा की इच्छा पूर्ण करने के उद्देश्य से द्वारिका यात्रा करवाई थी। माता सुभद्रा की नगर भ्रमण की स्मृति में, यह रथयात्रा पुरी में हर वर्ष होती है।
गुप्त नवरात्रि एक ऐसी साधना का समय है, जिसमें कुछ न करके भी बहुत कुछ पाया जा सकता है। प्रथम गुप्त नवरात्रि माघ मास में पूजित हैं और द्वितीय आषाढ़ मास में आती हैं। माघ ...
ज्येष्ठ माह, शुक्ल पक्ष, पूर्णिमा को लोकप्रिय लेखक व कवि, प्रतिभाशाली व्यक्तित्व के धनी कबीर दास की जयंती मनाई जाती हैं। कबीर दास जी ने जीवन पर्यन्त सामाजिक कुरीतियो को सुधारने पर कठोरता से प्रहार ...
आधुनिक युग में आंग्लभाषा के invitation शब्द का प्रयोग सगे सम्बंधी, मित्रों, सहकर्मियों, श्रोताओं को बहुतायत भोजन, पार्टी, विवाह, सेमिनार आदि में बुलाने के संदर्भ मे किया जाता है। जिसका संक्षिप्त रूप से एक ही ...