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Gupt Navratri - गुप्त नवरात्रि - जितनी गुप्त साधना, उतना ही तेजस्वी परिणाम।।


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संकलन : वीनस दीक्षित तिथि : 10-07-2021

गुप्त नवरात्रि एक ऐसी साधना का समय है, जिसमें  कुछ न करके भी बहुत कुछ पाया जा सकता है। प्रथम गुप्त नवरात्रि माघ मास में पूजित हैं और द्वितीय आषाढ़ मास में आती हैं। माघ और आषाढ़ मास की नवरात्रि को ही अप्रकट और गुप्त नवरात्रि कहते हैं। गुप्त नवरात्रि को अप्रत्यक्ष/अप्रकट नवरात्रि भी कहा जाता हैं। गुप्त नवरात्रि में मुख्य रूप से तांत्रिक सिद्धियों को प्राप्त करने के लिए माँ भगवती की आराधना की जाती है, जिससे संन्यासी और साधक अपनी विद्या, शक्ति और ज्ञान को अपने पास सदैव सुरक्षित रख सके और उचित समय आने पर उन सबका प्रदर्शन किया जा सके।
गृहस्थ लोग भी गुप्त नवरात्रि कर सकते हैं, लेकिन इसे मौन रहते हुए किया जाता है। सन्यासी व साधक साम, दाम,दण्ड,भेद के माध्यम से कठिन तप कर माँ भगवती को प्रसन्न कर सिद्धि प्राप्त करते हैं। गुप्त नवरात्रि के समय सन्यासी और साधकजन दस महाविधाओं को प्राप्त करने लिये माँ काली, मां लक्ष्मी व माँ सरस्वती के 9 स्वरुपों की भक्ति व साधना करते हैं। गुप्त नवरात्रि तंत्र-मंत्र को सिद्ध करने वाली नवरात्रि मानी जाती है। सनातन संस्कृति में नवरात्रि सर्वाधिक प्रचलित एवं महत्वपूर्ण त्योहार अथवा व्रत है, जिसे पूरे नियम और भक्ति भाव के साथ मनाया जाता है।
गुप्त नवरात्रि में दस महाविद्याओं की अवतार माँ ध्रूमावती, माँ काली, माता बगलामुखी, तारा देवी, त्रिपुर सुंदरी, भुवनेश्वरी, माता छिन्नमस्ता, त्रिपुर भैरवी, मातंगी तथा कमला देवी की अराधना होती है।
वातावरण में सभी प्रकार की ऊर्जा का तेज प्रभाव होता हैं। सिद्धियाँ नकारात्मक या सकारात्मक अथवा कई प्रकार की होती हैं। प्रकृति में गुप्त नवरात्रि के समय पर अदृश्य शक्तियों का तेज अत्यधिक विद्यमान होता है, जिसे साधना या तप के बल पर प्राप्त अथवा सिद्ध किया जाता है। जिसकी जैसी मनोकामना होती है, साधक की साधना या पूजन भी वैसा ही होता है।  गुप्त नवरात्रि में साधक तेज को प्राप्त करने लिये घंटों तप और साधना में लीन रहते हैं। जिसके प्रभाव से ही गुप्त नवरात्रि का महत्व प्रकट नवरात्रि से अधिक होता है, परंतु यह नवरात्रि संन्यासियों और साधकों के लिए उचित मानी गई है, क्योकि गृहस्थों को सिद्धि और साधना की आवश्यकता समान्यतः नहीं होती है। गुप्त नवरात्र संन्यासियों और साधकों के लिए विशेष है।
जो लोग किसी कारणवश भगवान की आराधना नही कर पाते हैं, उनके लिये  गुप्त नवरात्रि, माँ के चरणो में समर्पित होने का एक विशेष अवसर हैं। गुप्त नवरात्रि में मन ही मन माँ दुर्गा की शक्ति रूप की उपासना करने करनी चाहिए। जो व्यक्ति आध्यत्मिक रूप से आगे बढ़ना चाह रहे हैं, जो माँ के शरण में आयेंगे, वे जरूर पायेंगे, ऐसी सोच अपनी इच्छा शक्ति को प्रबल करने के लिये गुप्त नवरात्रि पर भगवती की भक्ति में डूब जाना चाहिए।
गुप्त नवरात्रि पर्व धूमधाम उल्लास से नहीं बल्कि बहुत ही सादगी से मनाया जाता हैं। गुप्त नवरात्रि मानसिक साधना का पर्व हैं। इन नौं दिनों में देवी रूप शक्ति व परम् पिता शिव की मानसिक पूजा करनी चाहिए। ध्यान रखें कि इस समय की गयी साधना को गुप्त रखा जाना चाहिए।
जितनी गुप्त साधना, उतनी ही तेजस्वी परिणाम होंगे। गुप्त नवरात्रि  में मानसिक साधना करने से साधक को सिद्धि, कृपा, योग प्राप्त होता हैं। दैवीय शक्तियां प्राप्त होती हैं। साधक किसी विशेष परेशानियों से जूझ रहा हो तो वो भी धीरे धीरे समाप्त होती हैं। गुप्त नवरात्रि में माता दुर्गा जी के चरणों में अपनी समस्या लिखकर एक चिट्ठी माता जी के चरणों में समर्पित करने से कठिन से कठिन समस्या का निवारण हो जाता हैं।

गुप्त नवरात्रि में साधना किस प्रकार करें:-

सांसारिक नवरात्रि से गुप्त नवरात्रि बहुत भिन्न हैं।तांत्रिक सिद्धियों को प्राप्त करने के लिए भक्त इस गुप्त नवरात्रि में माँ दुर्गा की आराधना विधि-विधान से करते हैं. इसलिए गुप्त नवरात्रि में शिव और शक्ति दोनों की पूजा आराधना करनी चाहिए। सर्वप्रथम नवरात्रि के प्रथम दिवस पूजा स्थल को स्वयं साफ स्वछ करके कलश स्थापना करें। घट, घर के रोग और शोक को समाप्त करता हैं। घट में पानी भरें, उसमें सिक्के डाले, आम के पत्तों के बीच में मोली लपेटा हुआ जटा वाला नारियल, लाल कपड़े में लपेट कर रखें।

ध्यान देने योग्य तथ्य: -

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