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Ninda (Positive Way) - निंदक नियरे राखिये, ऑंगन कुटीर छवाय। (निन्दक कौन है )


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संकलन : वीनस दीक्षित तिथि : 18-07-2021

संसारिक गतिविधियों में सभी बोलने वाले जीवों में एक गुण समान है, जिसमें सभी जीव आपस में एक दूसरे से वार्तालाप अवश्य करते हैं। जिसका उद्देश्य है कि एक दूसरे से जुड़े रहकर जीवनगति को संचालित रखा जाए। परन्तु सभी जीवो में मनुष्य श्रेष्ठ और उन्नत भी है। मानवीय क्रियाकलापो में मनुष्य ने अपनी श्रेष्ठता और उन्नति के बल पर आपस में एक दूसरे से वार्तालाप करने के लिए नाना प्रकार की भाषाऐं उत्पन्न कर रखीं हैं। वार्तालाप करने के लिए नाना प्रकार की भाषाओ के बाद भी सभी मानुष, एक कार्य करना कभी नहीं छोड सकता, वो है सामने वाले की निन्दा करना और कमियाँ गिनाना।
निंदा से समाज का कोई भी वर्ग अछूता नहीं हैं। समाज में रहने वाले मानव का यह अवगुण भी है। मनुष्य के जीवन में आलोचनाओं और निंदाओ का भी बहुत महत्वपूर्ण स्थान है, इसके बिना मनुष्य अपनी कमियों को दूर नहीं कर सकता है। समाज को दर्पण दिखाने का कार्य आलोचकों और निंदको का ही होता है। निंदा एक प्रकार का रस अथवा मनुष्य के मनोरंजन का साधन है। वर्तमान के आधुनिक सामाजिक बड़े नगरों में किसी लोकप्रिय व्यक्ति की निंदा प्रचलित करके ख्याति प्राप्त करना चलन में है।
सभी प्रतियोगिता के क्षेत्रों में पक्ष और विपक्ष द्वारा एक दूसरे की कमियों को ढूंढ कर निंदा के रूप में उपयोग किया जाता है। राजनैतिक स्तर पर तो, बिना निंदा किए सफलता असम्भव ही मानी जाती है, इसलिए कोई भी राजनीतिक पार्टियां निंदा करने से अछूती नहीं है। कुछ मानुष तो निन्दा करने के इतने आदी है कि अपने अभिन्न से अभिन्न मित्रों की गोपनीय से गोपनीय बातों को सार्वजनिक करने में रत्ती भर भी संकोच नही करते हैं।

निंदा की परिभाषा :- किसी व्यक्ति या वस्तु के स्वाभाविक अथवा क्रियात्मक कमियो अथवा दोषो का सामाजिक अथवा व्यक्तिगत कथन (वर्णन) कर उनकी कमियों अथवा बुराई को प्रदर्शित करना अथवा परिलक्षित कराने को निंदा कहते हैं। इसे अन्य नामों से भी जाना जाता है। जैसे - अपवाद, जुगुप्सा, कुत्सा, बदगोई आदि आदि।  निंदा करने से व्यक्ति को स्वयं की श्रेष्ठता की अनुभूति होती है। निंदा रस ऐसा रस है जिसमें अहम की भावना कूट-कूट कर भरा होता है। मैं ही सर्वोपरि हूँ यह भाव मनुष्य को निंदा करने को व्यथित कर देता है।

निन्दा के प्रकार:1.सकारात्मक  2.नकारात्मक

1.सकारात्मक निंदा: - इसका पहला प्रभाव मानव मन और बाद में उसके ख्याति पर पड़ता है। सकारात्मक निंदा में स्वार्थ और मलीनता नहीं होती है। इसका सीधा उद्देश्य होता है कि निंदा करके किसी के अवगुणों को समाप्त कराकर गुणो को स्थापित कराना और इसमें निंदा करने वाले बहुत सार्थक भूमिका निभाते हैं। व्यक्तियों को सकारात्मक निंदा सुनने का अभ्यस्त होना चाहिये। जिसे ध्यान पूर्वक सुनकर उक्त निंदा पर विचार कर त्वरित सुधार कर लेना चाहिए।
यदि उक्त निंदा में कोई सार हो, तो उसे तत्काल ग्रहण भी कर लेने से ख्याति और गुणवत्ता दोनों ही बढ़ने लगती है। सकारात्मक निंदक और निंदा स्व:मूल्यांकन एवम स्वयं के उत्थान का कारक होता है। सकारात्मक निंदक और निंदा का सदैव सम्मान करना चाहिए क्योकि यह समाज और स्वयं दोनों के लिए हितकर होती है। कबीरदास ने भी निंदक का आभार व्यक्त करते हुए कहा था कि निंदक नियरे राखिए, ऑंगन कुटीर छवाए, बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय।
2.नकारात्मक निंदा - इसका सबसे पहला प्रभाव मानव शरीर और बाद में मन पर पड़ता है। नकारात्मक निंदा पूर्ण रूप से स्वार्थपरत और वैचारिक मलीनता से ग्रसित होती है, जिसमें दूसरों की निन्दा कर स्वयं को उचित और सही सिद्ध करने का प्रयास निहित रहता है। नकारात्मक निंदा वाले लोग समाज का और दूसरों का ध्यान किसी भी प्रकार से स्वयं पर केन्द्रित करना चाहते है। निंदा सुनने और करने से मन और बुद्धि दोनों ही दूषित होती हैं।
यदि निंदा सारहीन हो, तो उससे चिंतित और व्यथित होने की आवश्यकता नहीं है। निंदा सारहीन भी हो, तो भी निन्दा करने वाले को एक अवसर अवश्य दे। अन्यथा नकारात्मक निंदक और निंदा से स्वयं को दूर करें, और बचा लें, क्योंकि नकारात्मक निंदक स्वयं का भला भले ही न कर सके, परंतु दूसरों का अहित अवश्य करता है। ये निंदा करने वाले ही आपका सही रूप दिखा सकते है। स्वयं ईष्यालु प्रवत्ति के ज्यादातर लोग नकारात्मक निंदा होते हैं।

निन्दक कौन है - स्वयं पर आवश्यकता से ज्यादा आत्मविश्वास अथवा आत्मविश्वास आवश्यकता से ज्यादा क्षीण होने पर स्वयं के तर्कों और विचारों को दूसरों के सामने उचित और सही सिद्ध करने का प्रयास की कोशिश करने वाले को ही निन्दक कहा जाता है। निन्दक सदैव दूसरों का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित करना चाहता है। कुछ निन्दक ईर्ष्या द्वेष की भावना के वशीभूत होकर दूसरों को नीचा दिखाने के लिए निंदा करता है। दूसरे की प्रगति न देख पाने से ये प्रवृत्ति ज्यादा प्रभावी हो जाती है। निंदा का दूसरा पहलू ईर्ष्या है, जो समानतः सभी व्यक्ति मे पायी जाती है। स्वयं कुछ ना कर पाने का दर्द भी निन्दक मेँ देखा जा सकता है।

 निंदा के लाभ :–

  1. मानव समाज के लिये निंदा करना नगर की तुलना में पिछड़े इलाकों में एक मनोरंजन का अच्छा साधन है।
  2. कुछ व्यक्ति खाली वक्त में किसी की भी निंदा करने में अपना समय व्यतीत करते हैं।
  3. सकारात्मक निंदा में स्वार्थ और मलीनता नहीं होती है।
  4. सकारात्मक निंदा किसी के भी अवगुणों को समाप्त कराकर गुणों को स्थापित कराता है।
  5. निंदा करने वाले बहुत सार्थक भूमिका निभाते हैं।
  6. सकारात्मक निंदा को ध्यान पूर्वक सुनकर उक्त निंदा पर विचार कर त्वरित सुधार किया जा सकता है।
  7. सकारात्मक निंदा सुनने का अभ्यासी होने पर हानि की संभावनाए कम रहती है।  
  8. सकारात्मक निंदा से ख्याति, गुणवत्ता और व्यक्तित्व दोनों में ही वृद्धि होती है।
  9. सकारात्मक निंदक और निंदा का सदैव सम्मान का अधिकार है, क्योंकि वह समाज और स्वयं दोनों का ही हित करता है।
  10. निंदा करने वाले निन्दा करते ही आपका वास्तविक और सही रूप दिखाते है।

निंदा की हानियाँ:

  1. किसी भी व्यक्ति या वस्तु के विषय में दुर्गुण, दोष, कमियाँ, और तुच्छता इत्यादि प्रकट करता है।
  2. छोटी सी बात को तूल देकर उससे बड़ा बखेड़ा खड़ा किया जाता है।
  3. देहातों के स्थानीय निवासी चटकारे लेते हुए अपने विपक्षियों को नीचा दिखाते है।
  4. नकारात्मक निंदक और निंदा का प्रभाव मानव शरीर और बाद में मन पर पड़ता है।
  5. नकारात्मक निंदा पूर्ण रूप से स्वार्थपरत और वैचारिक मलीनता से ग्रसित होती है।
  6. निन्दक स्वयं को उचित और सही सिद्ध करने का प्रयास में दूसरों की निन्दा करता है।
  7. निंदा सुनने और करने से मन और बुद्धि दोनों ही दूषित होती हैं।
  8. नकारात्मक निंदक और निंदा से स्वयं के दूर करें, और बचा लें।
  9. नकारात्मक निंदक स्वयं का भला भले ही न कर सके, परंतु दूसरों का अहित अवश्य करता है।
  10. स्वयं ईर्ष्यालु प्रवत्ति के ज्यादातर लोग नकारात्मक निंदक होते हैं।

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