संकलन : वीनस दीक्षित तिथि : 17-07-2021
बाहुड़ा गोंचा अथवा बाहड़ा गोंचा आषाढ़ शुक्ल पक्ष दशमी को कहा जाता है। जिसमें पुनः जगन्नाथ जी को रथारूढ़ कर विग्रह तीनों रथों की परिक्रमा करते हुए श्री मंदिर अर्थात जगन्नाथ मंदिर लाया जाता है। श्री जगन्नाथ मंदिर पहुंचने के बाद ‘कपाट फेड़ा’ रश्म निभाई जाती हैं।
कपाट फेड़ा - इस विधान में हेरा पंचमी को रूठी हुयी लक्ष्मी जी, भगवान जगन्नाथ को श्री मंदिर में प्रवेश करने नहीं देती। प्रतिकात्मक रूप से जगन्नाथ मन्दिर का दरवाजा बंद कर दिया जाता है और भगवान जगन्नाथ, माता लक्ष्मी जी को मनाने की कोशिश करते हैं। भगवान जगन्नाथ, लक्ष्मी जी को मनाने के लिए उन्हें उपहार भेट इत्यादि देकर प्रसन्न करने की कोशिश करते हुए उनसे क्षमा माँगते हैं।
जिस पर काफी अनुनय विनय व विनती और भेंट देने के पश्चात लक्ष्मी जी दरवाजा खोल देती हैं। इस विधान को ही ‘‘कपाट फेड़ा’’ कहा जाता है। भगवान जगन्नाथ के द्वारा लक्ष्मी जी को मना लिए जाने के विजय का प्रतीक मानते हुए ही इस तिथि को ''विजयादशमी '' और भगवान जगन्नाथ की वापसी को ''बाहुड़ा गोंचा अथवा बोहतड़ी गोंचा’’ कहा जाता है।
बाहुड़ा यात्रा - भगवान जगन्नाथ अपने बड़े भाई बलभद्र, सुदर्शन और बहन सुभद्रा के साथ गुंडिचा मंदिर से श्रीमंदिर की वापसी का प्रतीक बाहुड़ा यात्रा है। मान्यता प्रचलित है कि गुंडिचा मंदिर से श्रीमंदिर की वापसी के दौरान देवतागण रथयात्रा साथ-साथ जाते हैं, और बाहुड़ा यात्रा में सम्मिलित भक्त को सभी देवतागणों का सानिध्य और आशीर्वाद मिलता है।
इसी कारण से भक्तों में बहुसंख्या मे बाहुड़ा यात्रा में सम्मिलित होने की होड़ सी लगी रहती है और पूरी यात्रा के मध्य भगवान जगन्नाथ, बड़े भाई बलभद्र, सुदर्शन और बहन सुभद्रा के रथों को खिचते हैं, जिससे देवतागणों को अत्यधिक परिश्रम न करना पड़े। बाहुड़ा यात्रा भगवान जगन्नाथ और भाई-बहनों की गुंडिचा मंदिर से श्रीमंदिर की वापसी का प्रतीक है।
बाहड़ा गोंचा के दूसरे दिन अर्थात् आषाढ़ शुक्ल पक्ष एकादशी को देवशयनी के दिन भगवान चार्तुमास मास तक शयन करते हैं। विष्णु की देवशयनी के पश्चात् चार्तुमास तक देव विग्रहों को जागृत नही किया जाता है। सभी शुभ कार्यों को अगले चार मास तक स्थगित कर दिया जाता है। आषाढ़ शुक्ल पक्ष एकादशी को सनातन संस्कृति अनुसार देवशयनी से कार्तिक शुक्ल पक्ष एकादशी तक किसी भी प्रकार का शुभ कार्य नही किया जाता है। चार माह पश्चात हरि उत्थान एकादशी पर भगवान विष्णु जी जाग्रत होते हैं, जिसके बाद से ही समस्त शुभ व मांगलिक कार्य आरंभ हो जाते हैं।
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