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वसंत पंचमी या श्री पंचमी या सरस्वती पंचमी को नया ज्ञान और विज्ञान आरंभ होता है


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संकलन : वीनस दीक्षित तिथि : 15-02-2021

सनातन संस्कृति में नव सृजन और नव निर्माण द्योतक वसंत ऋतु में ही माघ मास शुक्ल पक्ष की पंचमी को नव सृजन और नव निर्माण की देवी माँ सरस्वती का अवतरण माना गया है। भारत में इसे ही वसंत पंचमी का त्यौहार कहा गया है। वसंत पंचमी को श्री पंचमी या सरस्वती पंचमी भी कहते हैं। इस दिन को अबूझ मुहर्त भी कहा जाता हैं। वसंत पंचमी का दिन इतना शुभ होता हैं कि कोई भी महत्वपूर्ण काम के लिए विशेष मुहूर्त देखने की जरूरत नहीं होती हैं।

विश्व के सभी देशों में जलवायु की भिन्नता के कारण वसंत ऋतु का आगमन भी अलग-अलग दिखता है, परंतु भारत पर ईश्वरीय कृपा अद्भुत है, यहाँ वसंत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, हेमंत और शिशिर सभी ऋतुओ का समान प्रभाव मिलता है।  वसंत पंचमी को वसंत ऋतु अपने चरम पर होती है, पशु-पक्षियों में भी आनंद महसूस किया जा सकता है। प्रकृति आनंद के साथ घोषणा करती है कि वसंत चल रहा है - इसमें कोयल गाना गाती है, रंग बिरंगे फूलों की खुशबू और रोमांच दिखता है, पेड़ों पर नए पत्ते आते हैं,  आसमान सुंदर दिखता हैं, सरोवरों में कमल के फूल खिलते हैं, सरसों के पीले-पीले फूल खिलखिला कर ख़ुशी व्यक्त करते हैं। प्रकृति में सुन्दरता और खुशियाँ चारों ओर अनुभूत होती है।

नया ज्ञान और विज्ञान सीखने के लिए इस दिन का विशेष महत्व हैं। बच्चों की शिक्षा प्रारंभ के लिए वसंत पंचमी का दिन अतिविशिष्ट हैं। वसंत पंचमी के दिन सभी पूजन के पीछे का एक ही अर्थ है कि माँ सरस्वती की कृपा बनी रहे, जिससे कला और विज्ञान में उन्नति हो, क्योंकि सनातन संस्कृति में माँ सरस्वती विद्या, ज्ञान और शिक्षा-दीक्षा की देवी मानी गई हैं, और विद्या का अर्थ सिर्फ कापी-किताब से नहीं है, बल्कि संसार के ज्ञान-विज्ञान को व्यवस्थित तरीके से दूसरे मनुष्यों को देना या दक्ष करना, जिसका लाभ स्वयं तो हो, साथ ही चराचर जगत का हित और कल्याण हो सके। विद्या को साहित्य और कला का ही हिस्सा माना गया है। 

पौराणिक प्रथम कथानुसार ब्रह्मांड रचना के उपरांत ब्रम्हा जी ने पाया कि यह सृष्टि सूनी-सूनी, तथ्यहीन व रसविहीन है। मानव व अन्य प्राणी बिना शब्दों के इशारों में संवाद कर रहे हैं। मनुष्य में एक दूसरे से संवाद के स्वर ही नहीं हैं। तब ब्रम्हा जी ने इस संसार में रस और तथ्यों की देवी, विद्या प्रदाता, माँ देवी सरस्वती की रचना की। माँ सरस्वती के अवतरण के समय उनके एक हाथ में वीणा और दूसरे हाथ में पुस्तक और माला थी। 

द्वितीय पौराणिक कथानुसार ऋषि पराशर ने वेद व्यास की जिह्वा पर वसंत पंचमी को ही माँ सरस्वती को स्थान दिया था। कहते हैं वसंत पंचमी के दिन ही मनुष्य को बोलने की शक्ति और स्वर प्राप्त हुआ था और नाद व अनाद की उत्पत्ति वीणा से हुई, इसलिये सरस्वती जी को वीणावादनी भी कहते है। नाद तबला, ढोलक वीणा, गिटार, और सितार इत्यादि से निकलता हैं और ऐसा स्वर जिसके प्रभाव से अंतर आत्मा, तन-मन और रोम रोम झूमने लगे उसे अनाद कहते है।

चूंकि स्वर की रचना वसंत ऋतु के माघ मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी को हुई थी, इसी कारण से इस दिवस को वसंत पंचमी के रूप में मनाया जाता हैं। इस दिन कृष्ण भगवान की पूजा भी की जाती हैं। माना जाता हैं कि भगवान कृष्ण ने सरस्वती नामक नदी का रख रखाव आरंभ किया था।

वसंत पंचमी के दिन विद्यार्थियों और छोटे बच्चों को उनके आचार्य व गुरु जी के द्वारा उनकी जिह्वा पर सरस्वती जी की स्थापना अवश्य करवानी चाहिए। विद्यार्थियों से 'ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे' मन्त्र से जप करवाना चाहिए। इसके उच्चारण से माँ प्रसन्न होती हैं और इससे इच्छा शक्ति मजबूत होती हैं और वे जीवन में सही निर्णय लेने में सफल होते हैं। शिशुओं को प्रथम अक्षर लिखवाने या बोलने का अभ्यास करवाना चाहिए। विद्यार्थी को अपने पुस्तक और कलम का पूजन करना चाहिए, संगीत वादक को अपने स्वरयंत्रो - गिटार, ढोलक, तबला सितार इत्यादि का भी पूजन करना चाहिए, व्यापारियों को अपने तराजू- बाँट का भी पूजन करना चाहिए।

माँ सरस्वती का पूजन – स्वयं सफेद या पीले पोषाक में कलश स्थापन करते हुए सरस्वती जी की प्रतिमा या चित्र का पूर्ण श्रृंगार कर सफेद या पीला पुष्प का अलंकरण करने के उपरांत सिंदूर, गुलाल, आल्ता, फल, मिष्ठान, खिचड़ी का भोग लगाने के बाद मंत्रों से स्तुति और हवन इत्यादि करना चाहिए।

भारत के कई हिस्सों में श्री पंचमी के दिन पितर तर्पण भी किया जाता हैं और कई हिस्सों में कामदेव की भी पूजा होती हैं। पूर्वी भारत, पश्चिमोत्तर  बांग्लादेश,  नेपाल  और कई राष्ट्रों में बड़े उल्लास से सरस्वती पूजन (वसंत पंचमी) मनाया जाता है।

वसंत पंचमी को सरस्वती पूजन का शुभ मुहूर्त 16 फरवरी, 2021 प्रातः 3.36 से 17 फरवरी को प्रातः 5,36 तक रहेगा।

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