संकलन : वीनस दीक्षित तिथि : 11-02-2021
सनातन संस्कृति में नवरात्रि सर्वाधिक प्रचलित एवं महत्वपूर्ण त्योहार अथवा व्रत है, जिसे पूरे नियम और भक्ति भाव के साथ मनाया जाता है। नवरात्रि दो प्रकार की मानी जाती है, एक प्रगट और दूसरी गुप्त। सनातनियों में मुख्यत दो नवरात्रि प्रचलन में हैं, जिसमे से एक चैत्र माह में आती है, जिसे चैती और दूसरी शरद ऋतु के समय, जिसे शारदीय नवरात्र कहा जाता है। प्रगट नवरात्रि परिवार वाले या गृहस्थ लोग मनाते हैं और गुप्त नवरात्रि का सबसे ज्यादा प्रचलन संन्यासियों और साधकों में है। गृहस्थ में इसका प्रयोग न के बराबर होता हैं। सामान्य और सामाजिक वर्ग के लोग प्रकट नवरात्रि में अपनी श्रद्धा अनुसार देवी माँ को अपने भक्ति से प्रसन्न करते हैं।
इस प्रकार से देवी माँ की साधना करने के लिये साल में चार नवरात्रि आती हैं, जिसमें दो तो सामान्य हैं, जिसके विषय में हर सनातनी को ज्ञात होता है, और दो प्रचलन मे नहीं हैं। नवरात्रि में 9 देवियों की उपासना और अर्चना होती है।
1.शैलपुत्री, 2.ब्रह्मचारिणी, 3.चंद्रघंटा, 4.कूष्माण्डा, 5.स्कंदमाता 6. कात्यायनी, 7.कालरात्रि, 8.महागौरी, 9.सिद्धिदात्री।
प्रथम गुप्त नवरात्रि माघ मास में पूजित हैं और द्वितीय आषाढ़ मास में आती हैं। माघ और आषाढ़ मास की नवरात्रि को ही अप्रकट और गुप्त नवरात्रि कहते हैं। गुप्त नवरात्रि के समय सन्यासी और साधकजन दस महाविधाओं को प्राप्त करने लिये माँ काली, मां लक्ष्मी व माँ सरस्वती के 9 स्वरुपों की भक्ति व साधना करते हैं।
गुप्त नवरात्रि में प्रकट (सामान्य) नवरात्रि के समान ही माँ भगवती की आराधना होती है, लेकिन गुप्त नवरात्रि में किये गये पूजन-पाठ को गुप्त रखा जाता है। जिससे संन्यासियों और साधकों की विद्या, शक्ति और उनका ज्ञान उनके पास सदैव सुरक्षित रहे और उचित समय आने पर उन सबका प्रदर्शन किया जा सके। गृहस्थ लोग भी गुप्त नवरात्रि कर सकते हैं, लेकिन इसे मौन रहते हुए किया जाता है। सन्यासी व साधक साम, दाम,दण्ड,भेद के माध्यम से कठिन तप कर माँ भगवती को प्रसन्न कर सिद्धि प्राप्त करते हैं।
प्रकृति में गुप्त नवरात्रि के समय पर अदृश्य शक्तियों का तेज अत्यधिक विधमान होता हैं। जिसे साधना या तप के बल पर प्राप्त अथवा सिद्ध किया जाता है। सिद्धियाँ नकारात्मक और सकारात्मक कई प्रकार की होती हैं। वातावरण में सभी प्रकार की ऊर्जा का तेज प्रभाव होता हैं। गुप्त नवरात्रि में साधक तेज को प्राप्त करने लिये घंटों तप करते हैं और साधना में लीन हो जाते हैं। तंत्र मंत्र की साधना भी इस गुप्त नवरात्रि में होती हैं। जिसकी जैसी मनोकामना होती है उसी तरह से पूजा की जाती हैं। जिसके प्रभाव से ही गुप्त नवरात्रि का महत्व प्रकट नवरात्रि से अधिक होता है, परंतु यह नवरात्रि संन्यासियों और साधकों के लिए उचित मानी गई है, क्योकि गृहस्थों को सिद्धि और साधना की आवश्यकता समान्यतः नहीं होती है। गुप्त नवरात्र संन्यासियों और साधकों के लिए विशेष है।
गुप्त नवरात्रि में देवी माँ को प्रसन्न करने के लिये घट की स्थापना के साथ सप्तशती पाठ होता है और यज्ञ इत्यादि पूर्ण कर पारण के समय सात साल से कम उम्र की बालाओं का पूजन किया जाता है। बालाओं के (पग पखारकर) चरणों को धो-पोछ कर उचित और साफ सुधरे स्थान पर बैठा फलाहार इत्यादि करने के उपरांत आलता, फीता, रोली का टीके मेंहदी आदि शृंगार भेंट करना चाहिए। गुप्त नवरात्रि में दस महाविद्याओं की अवतार १.मां ध्रूमावती, २.मां काली, ३.मां बगलामुखी, ४.मां तारा देवी, ५.मां त्रिपुर सुंदरी, ६.मां भुवनेश्वरी, ७.मां छिन्नमस्ता, ८.मां त्रिपुर भैरवी, ९.मां मातंगी और १०.कमला देवी की अराधना होती है।
गुप्त नवरात्रि में वसन्त पंचमी का पर्व भी पड़ता हैं। कथानुसार ऋषि पराशर ने वेद व्यास के जिह्वा पर वसन्त पंचमी को ही माँ सरस्वती को स्थान दिया था। इतिहास गवाह हैं कि वेदव्यास से बड़ा संसार कोई विद्वान नहीं हुआ। वसंत पंचमी के दिन विद्यार्थियों और छोटे बच्चों को उनके आचार्य व गुरु जी द्वारा उनके जिह्वा पर सरस्वती जी की स्थापना अवश्य करवाना चाहिए। विद्यार्थियों से 'ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे' मन्त्र से जप करवाना चाहिए, इसके उच्चारण से माँ प्रसन्न होती हैं और इससे इच्छा शक्ति मजबूत होती हैं और जीवन में सही निर्णय लेने में सफल होते हैं।
माँ बगलामुखी को राजनीति और विजय की प्रदाता माना जाता है। इन्हीं कारणों से गुप्त नवरात्रि में माँ बगलामुखी की पूजा का भी महत्व है। राजनैतिक अथवा प्रभावशाली लोग विशेष रूप से गुप्त नवरात्रि की प्रतीक्षा करते हैं और माता बगलामुखी की पूजा करके उन्हें प्रसन्न करने की कोशिश करते हैं। गुप्त नवरात्रि में राजनैतिक अथवा प्रभावशाली लोग किसी प्रकार से माँ भगवती प्रसन्न हों, ऐसे सारे यत्न-प्रयत्न करते हैं। साधक तंत्र विधाओं को प्राप्त करने के लिये माँ काली की पूजा करते हैं। माना जाता हैं कि माघ. मास की नवरात्रि में देवताओं ने कष्ट और विपदाओं के निवारण के लिए बगलामुखी माता का आह्वान कर उन्हें खुश करने के लिए यज्ञ किया था। साथ ही विद्या प्राप्ति के लिये माँ सरस्वती को खुश करने के लिए यज्ञ भी किया था।
इस वर्ष प्रथम गुप्त नवरात्रि का प्रारंभ 12 फरवरी 2021 से लेकर 21 फरवरी 2021 तक है और दिनांक 16 फरवरी 2021 को वसन्त पंचमी हैं। जिसमे धर्म ,अर्थ, काम, मोक्ष की प्राप्ति हेतु अनुष्ठान पूजन-पाठ किया जा सकता है।
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