संकलन : वीनस दीक्षित तिथि : 08-02-2021
सनातन संस्कृति में वर्ष के बारह मासों में से माघ मास को अतिपावन, पवित्र और पुण्यदायी माना जाता है। सनातन संस्कृति में कुछ भी बिना वैज्ञानिक तथ्यों के संभव ही नहीं है। अगर माघ मास को अतिपावन, पवित्र और पुण्यदायी माना गया है, तो अवश्य ही कोई रहस्य होगा, जिनका संज्ञान मानव के लिए लाभप्रद ही होगा।
सनातन संस्कृति के अनुसार यह मास वर्ष का ग्यारहवां महीना होता है, जो मनुष्य के लिए शुभांक भी है। इस समय पर पृथ्वी अपनी धुरी पर गति करते हुए उत्तरायण हो जाती है और उत्तरायण होते ही पृथ्वी का झुकाव ईशान कोण की ओर होता है, अर्थात् माघ मास से पृथ्वी ईशान कोण की ओर से चलना प्रारम्भ करती है। धर्म ग्रंथों और वास्तु शास्त्र के अनुसार ईशान कोण को देव शक्ति का केंद्र माना जाता है। इसी लिए माघ मास से ही दैवीय शक्तियों का प्रबल प्रभाव पृथ्वी पर बढ़ जाता है, और जलीय तत्वों में भी औषधीय गुण ओज पर होते हैं। जिसको सनातनी ऋषि मुनियों और ज्ञाताओं द्वारा पहले ही समझा जा चुका था, जिसके आधार पर ही माघ मास को अतिपावन, पवित्र और पुण्यदायी कहा गया है। पौराणिक कथानुसार माघ मास मे स्वयं भगवान विष्णु गंगा में और गंगाजल में वास करते हैं। माघ मास के मध्य मनुष्य को किसी पवित्र नदी में कम से कम एक बार स्नान अवश्य करना चाहिए।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार 27 नक्षत्रों में एक नक्षत्र मघा भी है। जिसके नाम पर इस मास को माघ मास से जाना जाता है। माघ मास को कल्पवास का मास कहा जाता है और यह मास दान-पुण्य के लिए पवित्र है। महाभारत युद्ध समाप्ति के बाद युधिष्ठिर ने माघ मास में ही युद्ध में वीरगति प्राप्त सभी सगे संबंधियों को सद्गति निमित्त कल्पवास पूर्ण किया था। कल्पवास मास में श्रीकृष्ण और शिव की आराधना की जाती है।
माघ मास में ही बसंत पंचमी भी पड़ती है, जिसे विद्या, बुद्धि, ज्ञान और सद्गति की देवी मां सरस्वती का जन्मोत्सव भी कहा गया है। इस तिथि को देवी मां सरस्वती का विद्यार्थियों के लिए विशेष महत्व का होता है। विद्यार्थी अपनी श्रद्धानुसार किताबों और कलम की पूजन के साथ माँ सरस्वती की पूजा-आराधना और दीपदान करते हैं।
माघ माह में ही शुक्ल पक्ष की सप्तमी को अचला सप्तमी का व्रत होता है, जिसे भानु सप्तमी भी कहते हैं। इस तिथि पर नियमानुसार धार्मिक कृत्य करने से मन शुभ और सद्गतिदायक बना सकता है।
माघ मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी को भीष्म पितामह ने प्राण-त्याग कर निर्वाण प्राप्त किया था, जिसे इस तिथि को भीमाष्टमी के नाम से जाना जाता है। इस तिथि को नदियों में स्नान-दान और पूजा-अर्चना करने से सभी तरह के पाप नष्ट हो जाते हैं।
माघ मास की षटतिला एकादशी को नदियों के जल में तिल डाल कर स्नान करने की परंपरा से कई तरह के पापों का नाश होता है।
माघ मास कृष्ण पक्ष में ही मौनी अमावस्या भी आती है। मौनी अमावस्या को गंगा में स्नान करते समय मौन रहकर अपने पितरों को जल तर्पण कर पूरे दिन मौन रहते हुए व्यतीत करने से पितृदेव या पितृगण प्रसन्न होते हैं।
माघ मास में माघी पूर्णिमा भी आती है। हमारे पुराणों से विदित होता है कि माघ मास की पूर्णिमा तिथि को देवी-देवतागण मानवीय रूप में स्वयं आकर गंगा और अन्य पावन नदियों में स्नान-ध्यान करते हैं और पृथ्वी पर याचक के व्याप्त दुख-संतापों से शांति और मुक्ति प्रदान करते हैं। इस माह में स्नानादि के पश्चात् विष्णु भगवान का पूजन कर पितरों को तर्पण इत्यादि कर्म से निवृत्ति के बाद तिल गुड़ अन्न वस्तुओं का दान ब्राह्मणों और जरूरतमंदों को करने से घर में सुख संपन्नता आती है।
नोट - यदि किसी कारणवश कोई व्यक्ति किसी भी नदी तक नहीं जा सकता है, तो स्नान योग्य जल में गंगाजल मिश्रित कर स्नान का पूर्णफल प्राप्त कर सकता है।
2- माघ मास में पितरों का तर्पण देने से उन्हें मोक्ष मिलता है और कुल में शांति और वैभव रहता है।
3- माघ मास में सूर्योदय से चंद्र दर्शन तक सभी तिथियों का मान माना जाता है, जिसमें व्यक्ति को नियम संयम से रहना चाहिए।
4- माघ मास में घृणित और निंदित कर्मों से बचना चाहिए, अन्यथा कुल पर विपदा आती है।
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