संकलन : अनुजा शुक्ला तिथि : 30-01-2021
भारतीय सामाजिक सांस्कृतिक जीवन पर्वों, उपवासों, परंपराओं और पूजा से समृद्ध है। इस सामाजिक परंपरा में परिवार की कल्पना है और परिवार के भीतर रिश्तों का जाल है। मनुष्य जीवन यात्रा को बाँधने, संसार को सुव्यवस्थित और सभ्य बनाने की दिशा में हमारे पुरखों ने अनेक कार्य किए और क्रमशः समाज और संसार का एक स्वरूप गठित और व्यवस्थित किया कि अराजकता से दूर मनुष्य के को सम्मान और प्रेम से जीने की राह मिले और पृथ्वी ग्रह लंबे समय तक सजीव और समृद्ध रह सके।
सभ्यता के विकास की यात्रा में बहुत से उतार चढ़ाव आए और नदी सरीखी सभ्यता की इस यात्रा में समय और काल के अनुसार बहुत कुछ बदलता रहा। जीवन के अंतिम लक्ष्य आनंद के लिए उत्सव रचे गए । संकटों में रास्ता बनाने की मनुष्य की जिजीविषा ने अपने लिए बहुत से रास्ते ऐसे बनाए जो उसके जीवन को सुलभ कर सके। पर्व, उपवास, परंपराएं और पूजा इसी का माध्यम रहे हैं। इस सबमें एक अदम्य श्रृंखला सा ईश्वर बुना रहा । ये दीगर प्रश्न है कि उसे किसी ने बनाया या वह है...! उस पर चर्चा आज का मंतव्य नहीं है । आज का मंतव्य है अगला पर्व जो भारत के हर क्षेत्र में विभिन्न नामों और रूपों में जाना जाता है- उत्तर प्रदेश में इसे कहते हैं- सकट चैथ, गणेश चतुर्थी या संकष्ठी चतुर्थी। भारतीय पंचांग की मानें तो माघ मास की संकष्टी चतुर्थी को तिलकुटा या माही चैथ व वक्रतुंडी चतुर्थी भी कहा जाता है। मान्यता है कि जब तक चंद्र देव को अघ्र्य नहीं दिया जाता, यह व्रत पूरा नहीं होता । यह व्रत अधिकतर परिवार की महिलाएं या माताएं रखती हैं।
इस बरस जनवरी माह की अंतिम तिथि -31 जनवरी में पड़ने वाला यह इस माह का अंतिम पर्व है। हिंदी भाषी राज्यों में इसे धूमधाम से मनाया जाता है। ंिहंदी कैलेण्डर के हिसाब से हर महीने की चतुर्थी तिथि को यह पर्व होता है । इस दिन भगवान गणेश की पूजा की जाती है । इसके पर्व और व्रत के बारे में अनेक मान्यताएं हैं-
इस वर्ष संकष्टी चतुर्थी का शुभ मुहूर्त:
संकष्टी चतुर्थी व्रत पूजा विधि:
संकष्टी चतुर्थी के दिन ऐसे दें चंद्रमा को अघ्र्यः
सूर्यास्त के बाद संकष्टी चतुर्थी व्रत में चंद्रमा की पूजा का भी विशेष महत्व होता है। चंद्रमा को अघ्र्य देने के बाद ही व्रत तोड़ें। इसके लिए शहद, रोली, चंदन और दूध की आवश्यकता होगी। व्रत तोड़ने के बाद महिलाओं का शकरकंद खाने की परंपरा भी है।
संकष्ठी चतुथीं के व्रत में कथा भी पढ़ी जाती है। लोक और पुराणों पर आधारित होती हैं ये कथाएं । इसकी कथा कुछ इस प्रकार है-
संकष्ठी चतुर्थी व्रत कथा-
एक समय की बात है। विष्णु भगवान का विवाह लक्ष्मीजी के साथ निश्चित हो गया। विवाह की तैयारी होने लगी। सभी देवताओं को निमंत्रण भेजे गए, परंतु गणेशजी को निमंत्रण नहीं दिया, कारण जो भी रहा हो।
सभी तैयारियों के बाद भगवान विष्णु की बारात जाने का समय आ गया। सभी देवता अपनी पत्नियों के साथ विवाह समारोह में आए। उन सबने देखा कि गणेशजी कहीं दिखाई नहीं दे रहे हैं। तब वे आपस में चर्चा करने लगे कि क्या गणेशजी को नहीं न्योता गया है? या स्वयं गणेशजी ही नहीं आए हैं? सभी को इस बात पर आश्चर्य होने लगा। तभी सबने विचार किया कि विष्णु भगवान से ही इसका कारण पूछा जाए।
सभी ने विष्णु भगवान से इसका कारण पूछा । कारण पूछने पर उन्होंने कहा कि हमने गणेशजी के पिता भोलेनाथ महादेव को न्योता भेजा है। यदि गणेशजी अपने पिता के साथ आना चाहते तो आ जाते, अलग से न्योता देने की कोई आवश्यकता भी नहीं थीं। दूसरी बात यह है कि उनको सवा मन मूंग, सवा मन चावल, सवा मन घी और सवा मन लड्डू का भोजन दिनभर में चाहिए। यदि गणेशजी नहीं आएंगे तो कोई बात नहीं। दूसरे के घर जाकर इतना सारा खाना-पीना अच्छा भी नहीं लगता।
यह बातचीत चल ही रही थी कि किसी एक ने सुझाव दिया- यदि गणेशजी आ भी जाएं तो उनको द्वारपाल बनाकर बैठा देंगे कि आप घर की याद रखना। आप तो चूहे पर बैठकर धीरे-धीरे चलोगे तो बारात से बहुत पीछे रह जाओगे। यह सुझाव भी सबको पसंद आ गया, तो विष्णु भगवान ने भी अपनी सहमति दे दी।
होना क्या था कि इतने में गणेशजी वहां आ पहुंचे और उन्हें समझा-बुझाकर घर की रखवाली करने बैठा दिया। बारात चल दी] तब नारदजी ने देखा कि गणेशजी तो दरवाजे पर ही बैठे हुए हैं, तो वे गणेशजी के पास गए और रुकने का कारण पूछा। गणेशजी कहने लगे कि विष्णु भगवान ने मेरा बहुत अपमान किया है। नारदजी ने कहा कि आप अपनी मूषक सेना को आगे भेज दें, तो वह रास्ता खोद देगी जिससे उनके वाहन धरती में धंस जाएंगे, तब आपको सम्मानपूर्वक बुलाना पड़ेगा।
अब तो गणेशजी ने अपनी मूषक सेना जल्दी से आगे भेज दी और सेना ने जमीन पोली कर दी। जब बारात वहां से निकली तो रथों के पहिए धरती में धंस गए। लाख कोशिश करें, परंतु पहिए नहीं निकले। सभी ने अपने-अपने उपाय किए, परंतु पहिए तो नहीं निकले, बल्कि जगह-जगह से टूट गए। किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि अब क्या किया जाए।
तब तो नारदजी ने कहा- आप लोगों ने गणेशजी का अपमान करके अच्छा नहीं किया। यदि उन्हें मनाकर लाया जाए तो आपका कार्य सिद्ध हो सकता है और यह संकट टल सकता है। शंकर भगवान ने अपने दूत नंदी को भेजा और वे गणेशजी को लेकर आए। गणेशजी का आदर-सम्मान के साथ पूजन किया, तब कहीं रथ के पहिए निकले। अब रथ के पहिए निकल को गए, परंतु वे टूट-फूट गए, तो उन्हें सुधारे कौन?
पास के खेत में खाती काम कर रहा था, उसे बुलाया गया। खाती अपना कार्य करने के पहले ’श्री गणेशाय नमः’ कहकर गणेशजी की वंदना मन ही मन करने लगा। देखते ही देखते खाती ने सभी पहियों को ठीक कर दिया।
सभी देवता आश्चर्यचकित थे । तब खाती ने कहा कि हे देवताओं! आपने सर्वप्रथम गणेशजी को नहीं मनाया होगा और न ही उनकी पूजा की होगी इसीलिए तो आपके साथ यह संकट आया है। हम तो मूरख अज्ञानी हैं, फिर भी पहले गणेशजी को पूजते हैं, उनका ध्यान करते हैं। आप लोग तो देवतागण हैं, फिर भी आप गणेशजी को कैसे भूल गए? अब आप लोग भगवान श्री गणेशजी की जय बोलकर जाएं, तो आपके सब काम बन जाएंगे और कोई संकट भी नहीं आएगा।
ऐसा कहते हुए बारात वहां से चल दी और विष्णु भगवान का लक्ष्मीजी के साथ विवाह संपन्न कराके सभी सकुशल घर लौट आए।
कथा के अंत में गणेश की जय बोलने का रिवाज है।
संकष्ठी चतुर्थी का व्रत आप सबके जीवन में शुभता और मंगल लाए ।
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